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गुरूवार, 5 जून, 2025
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औपनिवेशिक शहरों के लिए एशियाई विकल्प की तलाश

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(सिद्ध सिंतुसिंघा, मेलबर्न विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, नौ जनवरी (360 इंफो) दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशियाई शहरों में कई समानताएं हैं और वे एक दूसरे के इतिहास, विकास की गति और अनुभवों से सीख सकते हैं।

यह विरोधाभास है कि कई एशियाई देशों से औपनिवेशिक शक्तियों को उखाड़ फेंकने के बाद सत्ताधारी अभिजात वर्ग विरासत में मिला जिसने नव स्वतंत्र राष्ट्र में औपनिवेशिक शासन प्रणाली और परंपरओं को बनाए रखा। इसका विस्तार उनके देशों और शहरों के आधुनिकीकरण और आर्थिक विकास में किया गया ताकि ‘उच्च आय’ और ‘विकसित’ राष्ट्र बन सके। यह आश्चर्यचकित करने वाला नहीं है क्योंकि अभिजात वर्ग का दिमाग औपनिवेशिक या स्व उपनिवेशित है या था।

स्व उपनिवेश : 19वीं और 20 वीं सदी में स्याम (मौजूदा थाईलैंड) और फारस (मौजूदा ईरान) ने प्रत्यक्ष यूरोपीय उपनिवेश बनने से बचने की कोशिश की थी, लेकिन दोनों की राजधानी क्रमश: बैंकॉक और तेहरान का विकास यूरोपीय शहरी नगर योजना के तहत किया गया।

कई यूरोपीय विशेषज्ञों की सेवा इन स्व उपनिवेश और आधुनिकीकरण परियोजना में ली गई, जिसका विस्तार बाद में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित और शिक्षित कर किया गया।

इस बीच, स्थानीय तरीके और औपनिवेशिक प्रथाओं के विस्तार से संकर रूप में प्रथाएं और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हो गईं । वहीं, नेताओं को पश्चिमी संस्थानों में शिक्षा के लिए भेजने की परंपरा ने स्व उपनिवेशीकरण को ही बढ़ावा दिया।

इससे नेताओं की मानसिकता और स्व कल्पना उनके शहरों की ऊपर से लेकन नीचे तक नीतियों और रोजमर्रा की जिंदगी पर थोपी गई।

उष्णकटिबंधीय दक्षिण पूर्व एशिया में इसका दीर्घकालिक असर ‘जलवायु स्व उपनिवेशीकरण’ है जहां पर मध्य और उच्च वर्ग अपने 24/7 वातानुकूलित रहने वाले शयनकक्ष, निजी कार (रेल परिवहन में भी विस्तार), कार्यालयों और मनोरंजन स्थल (शॉपिंग मॉल) में रहता है।

इस विभाजन को मजबूत करते हुए शहरों को विकसित देशों (यूरोप, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया) के शहरों की छवि के आधार पर समाज के इस वर्ग के लिए नियोजित किया गया, जिसका प्रभाव यह है कि शहरों की बड़ी आबादी ‘अनियोजित’ है।

यह अलगाव मूल पहचान और पंरपरा को दबाने के उपनिवेशिक पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करती है जिसने ‘स्थानीय विकास’ पर कब्जा कर लिया है।

स्थानीय विकास, आधुनिकीकरण है जिसकी व्याख्या जनता द्वारा की गई है और वही समानंतर शहर में विनियोजित करती है जो जलवायु, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के प्रति उत्तरदायी है।

यह व्यापक ‘शहर में गांव’ की ‘अनौपचारिक’ प्रथाओं में समाहित है (उदाहरण के लिए कम्पुंग बस्तियां जो पुराने समुदायों और नई अवैध बस्तियों को शामिल करती हैं) और कई दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों की वाणिज्यिक सड़क।

इनकी विशेषता कम ऊंची इमारते, अधिक जनसंख्या घनत्व और सार्वजनिक और नीजि स्थान में अंतर की कमी, करीबी व्यक्तिगत और सौहार्द्रपूर्ण संबंध, विश्वास और सामाजिक आर्थिक संबंध है।

हालांकि, यह संभव नहीं है कि पुरानी पंरपराओं को वापस बहाल कर दिया जाए और कई पहलुओं में जनसंख्या का अधिक घनत्व समस्या वाला और स्वास्थ्य के लिहाज से खराब होता है। यह नगर नियोजकों और प्रशासकों के लिए सबक है फिर चाहे छोटे पैमाने पर बदलाव करने हे या मौजूदा ताने-बाने का पुन:निर्माण हो या पूरे शहर का निर्माण हो।

स्थानीय आधुनिकता जरूरत और सहमति से उभरती है और गैर औपनिवेशिक मानसिकता को गले लगाती है। यह अस्थायी या जरूरत या पसंद के हिसाब से पीढ़ियों तक रह सकती है।

हालांकि, दक्षिण पूर्वी एशियाई समाज को, जिसके भीतर तक जगह बना चुके औपनिवेशिक विचार को, इससे मुक्त करना चुनौतिपूर्ण है क्योंकि इन समाजों की आदत हो गई है कि बाहर के विकास मॉडल को देखना बजाय अंदर की ओर झांकना।

(360इंफो डॉट ओआरजी) धीरज माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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