scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमविदेशCIA ने अपने ईरानी मुखबिरों को कैसे किया ‘नाकाम’, रॉयटर्स की रिपोर्ट ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी को बताया लापरवाह

CIA ने अपने ईरानी मुखबिरों को कैसे किया ‘नाकाम’, रॉयटर्स की रिपोर्ट ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी को बताया लापरवाह

‘अमेरिकाज थ्रोअवे स्पाईज’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट उन नागरिकों के प्रति अमेरिकी खुफिया एजेंसी के रवैये की पड़ताल करती है जिन्हें वह अपने जासूसी नेटवर्क का हिस्सा तो बनाती है लेकिन अक्सर ‘त्रुटिपूर्ण’ सिस्टम की वजह से वे पकड़ लिए जाते हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: रॉयटर्स के खोजी पत्रकारों जोएल स्केक्टमैन और बोजोर्गमेहर शारफेडिन ने करीब एक साल तक पड़ताल के बाद गुरुवार को जो रिपोर्ट जारी की है, वह बताती है कि अमेरिका ने ईरान में अपने मुखबिरों के प्रति कैसे बेरुखी अपनाई. रिपोर्ट के मुताबिक ईरानी मुखबिरों के मामले में केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) की तरफ से ‘लापरवाही’ बरतने का एक पैटर्न सामने आया है.

‘अमेरिकाज थ्रोअवे स्पाईज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट उन नागरिकों के प्रति अमेरिकी खुफिया एजेंसी की जवाबदेही की कथित कमी की पड़ताल करती है, जिन्हें वह अपने जासूसी नेटवर्क के हिस्से के तौर पर काम पर रखती है, और उस ‘दोषपूर्ण’ सिस्टम का भी पता लगाती है जो अक्सर उन्हें गिरफ्तारी के करीब ले जाता है.

रिपोर्ट में इस पूरी पड़ताल को ‘अप्रत्याशित फर्स्टहैंड जानकारी’ बताते हुए दावा किया गया है कि कई ईरानी मुखबिरों को एक बार पकड़े जाने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. कुछ मुखबिरों ने तो यह संदेह तक जताया कि शायद एजेंसी ने ही उन्हें ‘बेच दिया’ था.

रॉयटर्स ने 2009 और 2015 के बीच महमूद अहमदीनेजाद सरकार के दौरान अमेरिका के लिए जासूसी करने के दोषी छह ईरानी नागरिकों से बात की, सरकारी रिकॉर्ड खंगाला और पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारियों के साथ भी बात की.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में शुरू किए गए अभियान ‘काउंटर-इंटेलिजेंस पर्ज’ के तहत इन लोगों को जेल में डाल दिया गया था, जब ईरान ने दर्जनों सीआईए मुखबिरों को पकड़ लेने का दावा किया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में पाया गया कि सीआईए ने अपने मुखबिरों के साथ कम्युनिकेशन के लिए 350 से अधिक फर्जी वेबसाइट इस्तेमाल कीं. सीआईए के दो पूर्व अधिकारियों ने रायटर को बताया, ‘हर एक नकली वेबसाइट की जिम्मेदारी केवल एक एजेंट को सौंपी गई थी ताकि किसी भी एक मुखबिर के पकड़े जाने की स्थिति में पूरे नेटवर्क को कोई जोखिम न हो.’

लेकिन जांच में यह भी पाया गया कि कैसे ‘सीआईए ने उन साइटों की पहचान करना आसान बना दिया.’

‘त्रुटिपूर्ण’ कम्युनिकेशन चैनल

रिपोर्ट में पाया गया कि इन फर्जी वेबसाइटों में ‘एक ही गुप्त संदेश प्रणाली’ का इस्तेमाल किया गया था और उनमें से कई के आईपी एड्रेस एक सीक्वेंस में थे. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इस तरह के फीचर का मतलब है कि यदि ईरानी अधिकारी ‘इन वेबसाइटों में से किसी एक का इस्तेमाल कर रहे एजेंट का पता लगा लें तो सीआईए के अन्य मुखबिरों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अतिरिक्त पेजों के बारे में पता लगाते देर नहीं लगेगी.’


यह भी पढ़ेंः तमिलनाडु के पादरी से राहुल की मुलाकात के वीडियो पर बवाल, BJP का दावा- ‘हिंदू भावनाओं’ को ठेस पहुंचाई


रिपोर्ट के मुताबिक, ‘एक बार उन साइटों की पहचान हो जाने के बाद, उनका उपयोग करने वालों को पकड़ना आसान होता. ईरानी अधिकारियों को बस इंतजार करना था और देखना था कि कौन नजर आता है. दूसरे शब्दों में कहें तो सीआईए ने दुनियाभर में अपने एजेंटों को झाड़ियों की एक ही कतार में छिपा रखा था. जासूसी के मामले में उसका कोई भी सजग प्रतिद्वंद्वी उन सभी को खोज निकालने में सक्षम था.’

रॉयटर्स ने जिन पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से बात की वे इससे ‘पूरी तरह अवगत नहीं थे’ कि 2013 तक इसकी गोपनीय संदेश प्रणाली किस तरह जोखिम के दायरे में होती थी.

लेकिन साथ ही रिपोर्ट में सीआईए के एक पूर्व अधिकारी के हवाले से यह भी कहा गया है कि ‘बड़े पैमाने पर चलने वाली’ ये साइटें उन मुखबिरों के लिए थीं जिनके बारे में सीआईए का मानना था कि उनके लिए ‘उन्नत टेक्नोलॉजी पर बहुत खर्च करना व्यर्थ’ है.

‘जासूसों’ का क्या हुआ

रायटर्स ने जिन छह ईरानियों से बात की, उन्होंने ‘पांच से दस साल’ तक जेल की सजा काटने की बात कही. 2010 में दोषी ठहराए गए लोगों में से एक घोलमरेज़ा हुसैनी ने तेहरान की एविन जेल में एक दशक तक सजा काटी है. सालों के कारावास और ‘कड़ी यातना’ ने उन्हें अपने करीबी लोगों तक से ठीक से बातचीत करने लायक नहीं छोड़ा है.

उन्हें यह कहते उद्धृत किया गया है, ‘जब कोई मुझसे सवाल पूछता है, तो मुझे लगता है कि मैं फिर से इंटरोगेशन रूम में आ गया हूं.’

हुसैनी सहित चार मुखबिर तो ईरान में ही रह रहे हैं, जबकि दो अन्य अब ‘बिना घर-बार वाले शरणार्थी’ बन चुके हैं, जिन्हें दोस्तों, परिवार या उनके पूर्व नियोक्ताओं की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.

रिपोर्ट के मुताबिक, कई लोग अमेरिका में बसने की संभावना देखते हुए मुखबिर बनने को तैयार हो गए थे लेकिन यह सपना दूर की कौड़ी ही था. क्योंकि जैसा रायटर्स से बातचीत करने वाले तीन खुफिया अधिकारियों ने बताया कि सीआईए ‘दुनियाभर में अपने एजेंटों को इस तरह का लालच देता है लेकिन ऐसे मुखबिरों को अमेरिका पहुंचाने के लिए उसे प्रति वर्ष केवल 100 वीजा’ ही आवंटित होते हैं.

सीआईए के पूर्व काउंटर-इंटेलिजेंस चीफ जेम्स ओल्सन के हवाले से कहा गया, ‘अगर लोगों ने जानकारी साझा करने के लिए हम पर भरोसा करने की कीमत चुकाई और उन्हें दंड भुगतान पड़ा तो हम नैतिक रूप से विफल हो गए हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: ‘रोहिंग्या विरोधी सामग्री का इको चेंबर’: एमनेस्टी ने कहा, Meta ने म्यांमार की हिंसा को बढ़ावा दिया


share & View comments