(योषिता सिंह)
न्यूयॉर्क, 10 जून (भाषा) हार्वर्ड में पढ़ रहे भारतीय छात्रों का कहना है कि वे ट्रंप प्रशासन की विश्वविद्यालय के खिलाफ लगातार लड़ाई के बीच अनिश्चितता और चिंता के दौर से गुजर रहे हैं। साथ ही नौकरी के अवसरों की कमी को लेकर भी फिक्रमंद हैं।
हार्वड केनेडी स्कूल से पिछले महीने स्नातक हुए एक भारतीय छात्र ने नाम जाहिर नहीं होने की गुजारिश पर कहा, “यह ऐसा समय है जब हम समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें, क्या हमें घर लौट जाना चाहिए, या फिर यहीं कुछ उपाय निकालने की कोशिश करनी चाहिए।”
हार्वर्ड में कुछ भारतीय छात्रों ने नाम नहीं जाहिर करने के आग्रह पर ‘पीटीआई’ से बात करते हुए पिछले कुछ महीनों के अपने अनुभवों और चिंताओं को साझा किया, जिस दौरान प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को ट्रंप प्रशासन के लगातार हमलों का सामना करना पड़ा है।
प्रशासन की कार्रवाई में 2.2 अरब अमेरिकी डॉलर के अनुदान पर रोक लगाना, अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने की विश्वविद्यालय की पात्रता को रद्द करना तथा हार्वर्ड में अध्ययन या आदान-प्रदान कार्यक्रमों में भाग लेने के इच्छुक विदेशी नागरिकों के प्रवेश को निलंबित करना शामिल है।
आंतरिक सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने कहा है कि हार्वड नेतृत्व ने अमेरिका विरोधी और आतंकवाद समर्थक लोगों को प्रवेश की अनुमति देकर परिसर में असुरक्षित माहौल पैदा किया है। उसके मुताबिक, ये लोग यहूदी विद्यार्थियों समेत अन्य व्यक्तियों पर हमले करते हैं जिससे परिसर का अध्ययन वातावरण बाधित हुआ है।
हार्वर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ डिजाइन से दो वर्षीय पाठ्यक्रम करने वाली एक अन्य भारतीय छात्रा ने कहा कि छात्र इस योजना के साथ यहां आते हैं कि वे अमेरिकी संस्थानों में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में कुछ वर्षों तक काम कर सकें।
मगर उसने पिछले कुछ महीनों की स्थिति को उतार-चढ़ाव वाला बताया।
छात्रा ने कहा, ‘इतनी सारी अनिश्चितताओं के बीच मैं कह सकती हूं कि जो लोग अभी नौकरियां दे रहे हैं, वे आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय छात्रों को लेकर झिझक महसूस कर रहे हैं। पहले शायद हावर्ड का नाम इस झिझक को दूर कर देता था, लेकिन इस समय, खासकर अभी की स्थिति में, ऐसा नहीं है।”
हार्वर्ड केनेडी स्कूल की छात्रा ने बताया कि वह इस समय ‘नौकरी की तलाश में जुटी’ है। उसने बताया कि वर्तमान परिवेश में नौकरी पाना कितना कठिन है।
छात्रा ने बताया, ‘नियोक्ताओं ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी को काम पर रखना बंद कर दिया है। हार्वर्ड के अंतरराष्ट्रीय छात्रों की तो बात ही छोड़िए, क्योंकि हमारी वीज़ा स्थिति इतनी अस्थिर है।”
छात्रा ने कहा कि उसे नहीं पता कि वह भारत वापस जाएगी, यहीं रहेगी या किसी दूसरे देश में जाएगी।
छात्रों ने यह भी बताया कि ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू की गई निधि कटौती से नीतिगत क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्रों में नौकरियों पर असर पड़ रहा है।
डिजाइन स्कूल की छात्रा ने बताया कि पिछले महीने स्नातक होने से कुछ ही दिन पहले, छात्रों को पता चला कि ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड के छात्र और आदान प्रदान आगंतुक कार्यक्रम (एसईवीपी) प्रमाणन को समाप्त कर दिया था, जिसका मतलब था कि विश्वविद्यालय अब विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता है और मौजूदा विदेशी छात्रों को स्थानांतरित होना होगा या अपनी कानूनी स्थिति खोनी होगी।
हालांकि उसने विदेशी छात्रों से आग्रह किया कि वे वर्तमान स्थिति से निराश न हों।
कई छात्रों का कहना है कि उन्होंने अंततः भारत वापस जाने की योजना बनाई है, लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे शुरुआती कुछ वर्षों तक अमेरिका में काम करें, ताकि अमेरिकी बाजार में अनुभव प्राप्त कर सकें और साथ ही अपने छात्र ऋण को चुकाने के लिए धन भी कमा सकें।
एक अन्य छात्र ने कहा, “मैंने देखा है कि बहुत से लोग वापस (भारत) जा रहे हैं। उन्होंने मन बना लिया है कि यहां रहना अब किसी काम का नहीं है।”
हार्वर्ड इंटरनेशनल ऑफिस की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 शैक्षणिक वर्ष के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंतर्गत सभी स्कूलों में भारत के 788 छात्र हैं।
हार्वर्ड ग्लोबल सपोर्ट सर्विसेज ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि हर साल 500-800 भारतीय छात्र हार्वर्ड में अध्ययन करने आते हैं।
भाषा नोमान वैभव
वैभव
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