संयुक्त राष्ट्र, 28 फरवरी (भाषा) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की सहायक संस्थाओं के कामकाज में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए भारत ने कहा है कि आतंकवादी संस्थाओं को काली सूची में डालने के अनुरोधों को अस्वीकार करने या स्थगित करने के विवरण सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं और इनकी जानकारी चुनिंदा देशों को होती है जो ‘‘छद्म वीटो’’ के समान है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश ने बृहस्पतिवार को यहां ‘अंतर-सरकारी वार्ता पूर्ण अधिवेशन – कार्य पद्धतियों पर सामूहिक बहस’ कार्यक्रम के दौरान 15 देशों की सुरक्षा परिषद और इसकी कार्य पद्धतियों में तत्काल सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने अपने संबोधन में यूएनएससी की सहायक संस्थाओं के कामकाज में अधिक पारदर्शिता से लेकर शांति स्थापना जनादेश के कार्यान्वयन के विषय में बात की।
हरीश ने कहा, ‘‘संस्था में सुधारों की मांग जोरदार और स्पष्ट है। यह आह्वान ऐसे समय में अधिक महत्व रखता है जब दुनिया विभिन्न हिस्सों में मानवता के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों-विशेष रूप से शांति एवं सुरक्षा के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के सार्थक हस्तक्षेप करने की क्षमता के संबंध में आशंका व्यक्त कर रही है।’’
परिषद की कार्य पद्धतियों के संबंध में विशिष्ट क्षेत्रों में तत्काल सुधार की मांग करते हुए हरीश ने कहा कि परिषद की सहायक संस्थाओं के कामकाज में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘सूचीबद्ध करने (आतंकवादी संगठनों को काली सूची में डालने) संबंधी निर्णय जब सार्वजनिक किए जाते हैं, तब सूचीबद्ध करने के अनुरोधों को अस्वीकार करने या तकनीकी रोक लगाने से संबंधित विवरण कुछ चुनिंदा लोगों के पास ही होते हैं। यह वास्तव में एक छद्म वीटो है।’’
आतंकवादी संस्थाओं और व्यक्तियों को काली सूची में डालने के अनुरोधों को लेकर परिषद की ‘1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति’ समेत उसकी सहायक संस्थाओं की कार्यपद्धति पर भारत ने कई बार चिंता व्यक्त की है।
भाषा सुरभि सिम्मी
सिम्मी
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