नई दिल्ली: विश्व के उन 11 पॉपुलिस्ट शासित देशों में भारत भी है जो कोविड-19 महामारी का प्रबंधन ठीक से नहीं कर पाया. स्वीडन के गोटेनबर्ग विश्वविद्यालय के तहत आने वाले वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित किए गए वर्किंग पेपर में ये बात दर्ज की गई है.
वी-डेम एक स्वतंत्र शोध संस्थान है जिसकी स्थापना 2014 में की गई थी. ये संस्थान 2007 से हर साल लोकतंत्र पर रिपोर्ट जारी करता है. वी-डेम का पूरा नाम ‘वैराएटीज़ ऑफ डेमोक्रेसी ‘ है यानि लोकतंत्र की विविधता.
2020 में कोविड महामारी के समय में पॉपुलिस्ट और नॉन-पॉपुलिस्ट सरकारों के प्रदर्शन का मूल्यांकन इस पेपर में किया गया है. इसमें 42 विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों को शामिल किया गया जिसमें 11 ऐसे देश हैं जो पॉपुलिस्ट शासित हैं.
इन देशों में- भारत, ब्राजील, चेक गणतंत्र, हंगरी, इजरायल, मेक्सिको, पौलेंड, स्लोवाकिया, तुर्की, यूके और यूएसए शामिल है. इस रिपोर्ट में इन देशों के नेताओं जिसमें नरेंद्र मोदी, जायर बोलसोनारो, बेंजामिन नेतन्याहू, आर्दोगन, बोरिस जॉनसन और डोनाल्ड ट्रंप को शामिल किया गया.
इस महामारी के दौरान फ्रांस, तुर्की, रूस और यूके के बाद यूएस, भारत और ब्राजील में कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले सामने आए. अमेरिका के बाद भारत में कोविड के सबसे ज्यादा मामले आए हैं. इस बीच भारत कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है और हर दिन तीन लाख से ज्यादा मामले आ रहे हैं. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था एकदम दबाव में है और कुछ राज्यों में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है.
पेपर ने अपने निष्कर्ष में कहा कि पॉपुलिस्ट शासित देशों में महामारी को लेकर जो नीति बनाई गई वो उतनी ठीक नहीं है और ऐसे देशों में नॉन पॉपुलिस्ट देशों के मुकाबले मृत्यु दर भी काफी ज्यादा है.
नॉन पॉपुलिस्ट देशों में ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, चिली, चीन, कोलंबिया, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीक, आइसलैंड, आयरलैंड, इटली, जापान, लातविया, लिथोनिया, लग्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नार्वे, पुर्तगाल, रूस, स्लोवेनिया, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, स्वीडन और स्विट्जरलैंड शामिल हैं.
'Populism & #COVID19: How #Populist Governments (Mis)Handle the #pandemic', new @vdeminstitute Working Paper by V-Dem researcher @BoeseVanessa and coauthors @m_bayerlein, @Scott__Gates, @katrin_kamin, & Syed Mansoob Murshed https://t.co/LTX44TcGmx #openaccess pic.twitter.com/kdzn5QGGcp
— V-Dem Institute (@vdeminstitute) May 20, 2021
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पॉपुलिस्ट सरकारों की नीति
डच राजनीतिक वैज्ञानिक कैस मडे के हवाले से पेपर में पॉपुलिज्म को एक ऐसी संकीर्ण विचारधारा के तौर पर परिभाषित किया गया है जो समाज को दो हिस्सों में बंटा हुआ मानती है- ‘शुद्ध लोग’ बनाम ‘भ्रष्ट अभिजात वर्ग’. और इस तर्क पर बल देती है कि राजनीति लोगों की सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति होनी चाहिए.
प्रकाशित पेपर के मुताबिक पॉपुलिस्ट सरकारों द्वारा अपनाई गई नीति का मुख्य जोर समस्या को केवल कुछ समय के लिए हल करने का होता है. इसका मतलब ये है कि ‘वायरस की रोकथाम के लिए दूरगामी नीति बनाकर प्रयास नहीं किए गए.’ पॉपुलिस्ट सरकारों का रवैया गैर-वैज्ञानिक होता है और ऐसे में वहां के नागरिक ‘वायरस और सार्वजनिक स्वास्थ्य के दिशानिर्देशों का पालन करने में कोताही बरतते हैं’.
पॉपुलिस्ट और नॉन-पॉपुलिस्ट सरकारों के बीच का फर्क बताने के लिए पेपर में ऑक्सफोर्ड कोविड-19 रिस्पांस ट्रैकर, गूगल कोविड-19 मोबिलिटी रिपोर्टेस और मृत्यु दर के आधार पर देशों में महामारी के भयावहता का विश्लेषण किया गया है.
इसी साल वी-डेम ने अपनी पांचवी वार्षिक लोकतंत्र रिपोर्ट जारी की थी जिसका शीर्षक था- ऑटोक्रेटाइज़ेशन गोज़ वायरल. इसमें भारत को विश्व के ‘सबसे बड़े लोकतंत्र’ से ‘चुनावी निरंकुशता’ वाले देश की श्रेणी में डाल दिया गया जिसके लिए मीडिया की ‘दशा’, मानहानि और राजद्रोह कानून का अधिक इस्तेमाल का हवाला दिया गया.
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