(टेलर स्ज़िज़्का और यू हेंग लाउ, सिडनी विश्वविद्यालय तथा डेविन साविरो विजया, ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय)
सिडनी, एक नवंबर (द कन्वरसेशन) जैसे-जैसे पृथ्वी की जनसंख्या बढ़ेगी, हमें अधिक भोजन की आवश्यकता होगी। एक अनुमान के अनुसार अगली शताब्दी में हमें अपनी फसल की पैदावार को लगभग दोगुना करना पड़ेगा।
साथ ही, जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के कारण खाद्यान्नों का उत्पादन पहले से भी अधिक कठिन हो गया है। हम एक जटिल समस्या का सामना कर रहे हैं, लेकिन एक बात निश्चित है: हमें भविष्य में बेहतर, अधिक उत्पादक फसलें उगानी होंगी।
फसलें पहले ही विकास के युगों और मानव चयन की सहस्राब्दियों से गुजर चुकी हैं, इसलिए उनकी वृद्धि में और सुधार करना आसान नहीं है।
यहीं पर कृत्रिम जीवविज्ञान की भूमिका आती है : बेहतर जैविक प्रणालियों के निर्माण के लिए इंजीनियरिंग सिद्धांतों का इस्तेमाल करना।
प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ में आज प्रकाशित एक नए अध्ययन में, हम अधिक उत्पादक फसलों की दिशा में एक कदम प्रस्तुत करते हैं : प्रोटीन से बना एक सरल, छोटा सा बॉक्स जो पौधों को नाइट्रोजन और पानी का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग करने में मदद कर सकता है।
एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्षम एंजाइम—
स्कूल में आपने संभवतः प्रकाश संश्लेषण के बारे में पढ़ा होगा: यह सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली एक प्रक्रिया है, जिसमें पौधे हवा से कॉर्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और उसे ग्लूकोज (शर्करा) में परिवर्तित करते हैं। इस ग्लूकोज का उपयोग पौधे ऊर्जा के लिए करते हैं। वे इस ऊर्जा का उपयोग फसल उगाने के लिए करते हैं (और फसलों के लिए, इसका मतलब है हमारे लिए भोजन उपलब्ध कराना)।
रुबिस्को नामक एक एंजाइम प्रकाश संश्लेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कॉर्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करके ग्लूकोज बनाने के पहले चरण के लिए जिम्मेदार है।
रुबिस्को शायद पृथ्वी का सबसे महत्वपूर्ण एंजाइम है। हालांकि, यह धीरे-धीरे काम करता है और कभी-कभी कॉर्बन डाइऑक्साइड के बजाय ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे बहुमूल्य संसाधन बर्बाद हो जाते हैं।
इन कमियों का अर्थ है कि रुबिस्को पौधों की वृद्धि में एक महत्वपूर्ण बाधा है।
क्षतिपूर्ति के लिए तथाकथित सी-3 फसलें (एक समूह जिसमें गेहूं, चावल, कैनोला और कई अन्य शामिल हैं) प्रकाश संश्लेषण में सहायता के लिए रुबिस्को का बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं। इससे भारी लागत आती है तथा ऊर्जा, पानी और नाइट्रोजन की बर्बादी होती है।
शैवाल से सीखना—
दूसरी ओर, सायनोबैक्टीरिया (जिसे नीला-हरा शैवाल भी कहा जाता है) ने अधिक सुंदर दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने एक ‘कॉर्बन-सांद्रण तंत्र’ विकसित किया है, जिससे रुबिस्को के आसपास कॉर्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वह अपना काम जारी रख पाता है।
इस प्रणाली के एक हिस्से के रूप में, वे रुबिस्को को कार्बोक्सिसोम नामक विशेष कक्षों में रखते हैं। यह एक आदर्श स्थान बनाता है जहां एंजाइम अधिक कुशलता से कार्य कर सकता है – एक सूक्ष्म कार्यालय की तरह जहां कोई व्यवधान नहीं होता।
अगर सी-3 फसलों में भी ऐसी ही प्रणाली हो, तो इससे फसल की पैदावार 60 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। वैज्ञानिक कई वर्षों से इन फसलों में ऐसी प्रणाली विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह जटिल है।
एक सरल कंटेनर—
कार्बोक्सिसोम कक्ष में ही कई अलग-अलग प्रोटीन होते हैं, और इन सभी को एक सटीक तरीके से सहयोग करना चाहिए। एक सरल कक्ष जो यही काम करता है, उसके साथ काम करना आसान होगा।
कृत्रिम जीवविज्ञानी के रूप में हम अक्सर जैविक भागों को नयी भूमिकाएं निभाने के लिए पुनः उपयोग में लाते हैं।
हम कार्बोक्सिसोम जैसी चीज बनाने के लिए एनकैप्सुलिन की इंजीनियरिंग कर रहे हैं जो सी-3 फसलों के साथ संगत है।
रुबिस्को को और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करना—
हमारा पहला कदम सक्रिय रूबिस्को को एक एनकैप्सुलिन कक्ष में पैक करना था। हमने तुरंत महसूस किया कि समय बहुत महत्वपूर्ण था। अगर हम रूबिस्को और एनकैप्सुलिन दोनों को एक साथ बनाने की कोशिश करते, तो पैक किया गया रूबिस्को सक्रिय नहीं होता। हालांकि, अगर हम पहले रूबिस्को और फिर एनकैप्सुलिन बनाते, तो पैक किया गया रूबिस्को सक्रिय होता।
द कन्वरसेशन रवि कांत नेत्रपाल
नेत्रपाल
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