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Thursday, 28 August, 2025
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पाकिस्तान में बाढ़ राहत की आड़ में लश्कर कैसे बढ़ा रहा है अपना वेलफेयर नेटवर्क

चंदा जुटाने और संगठनात्मक काम की गतिविधियां मरकज़ी मिल्ली मुस्लिम लीग के बैनर तले चल रही हैं, जिसे भारत और अमेरिका दोनों ने लश्कर-ए-तैयबा की फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन बताकर प्रतिबंधित किया है.

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नई दिल्ली: लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के बड़े-बड़े दल पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा और पंजाब के बाढ़ प्रभावित इलाकों की ओर जा रहे हैं. ये दल हाल ही में आई भारी बाढ़ से विस्थापित परिवारों के लिए राहत सामग्री लेकर पहुंचे हैं.

भारतीय खुफिया अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि लश्कर की यह राहत कवायद 2005 के कश्मीर भूकंप के बाद से अब तक की सबसे बड़ी है. उसी भूकंप के दौरान लश्कर क्षेत्र में एक अहम राजनीतिक ताकत के रूप में उभरा था.

धन जुटाने और संगठनात्मक कामकाज की यह पूरी गतिविधि ‘मरकज़ी मिल्ली मुस्लिम लीग’ के बैनर तले चल रही है, जिसे भारत और अमेरिका दोनों ने लश्कर-ए-तैयबा का फ्रंट-ऑर्गेनाइजेशन मानते हुए बैन कर रखा है.

सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो में बड़े काफिले नज़र आ रहे हैं जो बाढ़ पीड़ितों के लिए 20 किलो आटे की बोरियां और 5 किलो घी के पैकेट जैसी सामग्री ले जा रहे हैं. कुछ वीडियो में लश्कर के वॉलंटियर गंभीर रूप से बीमार लोगों को पहाड़ी रास्तों से ‘चारपाई’ पर लादकर निकालते हुए भी दिखे.

अमेरिकी वित्त मंत्रालय के अनुसार, मरकज़ी मिल्ली मुस्लिम लीग के सात मुख्य नेता — सैफुल्लाह खालिद, मुज़म्मिल इकबाल हाशमी, मुहम्मद हारिस दर, तबिश कय्यूम, फैयाज़ अहमद, फैसल नदीम और मुहम्मद एहसान — सभी लश्कर के पूर्व सदस्य हैं और अब भी उसी के लिए काम कर रहे हैं.

लश्कर के प्रोपेगेंडा को साझा करने वाला ‘ज़र्ब-ए-अज़्ब’ नामक फेसबुक पेज ने अगस्त की शुरुआत में कश्मीर के कुलगाम के जंगलों में भारतीय सैनिकों और आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ की खबर दी थी. एक पोस्ट में इस पेज ने झूठा दावा किया कि लड़ाई में दर्जन से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए, लेकिन यह भी कहा कि आतंकियों ने इलाके पर हावी रिजलाइन पर अपना नियंत्रण बनाए रखा.

पहले इस फेसबुक पेज ने दावा किया था कि कुलगाम में चल रही मुठभेड़ खत्म करने के लिए भारतीय अधिकारी बातचीत की कोशिश कर रहे हैं.

2018 में जब पाकिस्तान को आतंकवाद की फंडिंग रोकने में नाकाम देशों की ग्रे लिस्ट में डाला गया था, उससे पहले की तरह लश्कर ने अब फिर अपने चैरिटेबल अस्पतालों और एम्बुलेंस सेवाओं के बड़े नेटवर्क का प्रचार शुरू कर दिया है.

इन गतिविधियों का खर्च ज़्यादातर ईद पर कुर्बान किए गए जानवरों की खाल बेचकर उठाया जाता है. ये खालें चमड़े की फैक्ट्रियों को बेची जाती हैं. पिछले साल, उदाहरण के तौर पर, लश्कर ने इस्लामाबाद में कई जगहों पर जानवरों की खाल इकट्ठा करने के केंद्र बनाए थे.

हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने जमात-उद-दावा से जुड़े 10 चैरिटेबल फ्रंट-ऑर्गेनाइजेशनों को खाल इकट्ठा करने से बैन कर दिया था, लेकिन किसी अजीब वजह से पाकिस्तान मरकज़ी मुस्लिम लीग उस सूची में शामिल नहीं थी.

इस आय से लश्कर ने कई नई सुविधाएं तैयार की हैं, जैसे लाहौर के बाहर कसूर में एक आधुनिक थैलेसीमिया अस्पताल. यह आनुवंशिक रक्त रोग (जो क़रीबी रिश्तेदारों, खासकर चचेरे भाइयों-बहनों की शादियों से जुड़ा है) पंजाब और मीरपुर की कई समुदायों पर भारी आर्थिक और सामाजिक बोझ डाल रहा है.

लश्कर लंबे समय से चैरिटेबल गतिविधियों को अपने संप्रदायवादी विचारों और विचारधारा को फैलाने का ज़रिया बनाता रहा है, खासकर उन जगहों पर जहां उसकी मौजूदगी पहले नहीं थी.‘फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन’, जिसे 2019 में बंद कर दिया गया था, अक्सर अधिकारियों के साथ मिलकर काम करता था. इसके वॉलंटियर्स ने 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर आतंकी हमले के दौरान बच्चों को बचाने में भी मदद की थी.

राहत कार्यों के साथ-साथ यह फाउंडेशन पाकिस्तान के भीतर लश्कर की मुहिमों में भी शामिल था, जिनमें एक पानी की मुहिम थी जिसमें दावा किया गया था कि भारत पाकिस्तान का सिंधु नदी का हिस्सा रोक रहा है और दूसरी एक ‘धर्म-निंदा विरोधी आंदोलन’.

दिप्रिंट को एक भारतीय खुफिया सूत्र ने जानकारी दी, पाकिस्तान के ग्रे-लिस्ट में आने के बाद सरकार ने लश्कर से जुड़े कई सामाजिक ढांचे, जैसे मस्जिदें, मदरसे, स्कूल और अस्पताल अपने कब्ज़े में ले लिए थे, लेकिन अब ये सुविधाएं फिर से मिली मुस्लिम लीग चला रही है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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