पोर्ट्समाउथ (ब्रिटेन), 16 जून (द कन्वरसेशन) मुश्किल विकल्पों का जब हमें सामना करना पड़ता है, तब हम अक्सर उन्हें अलग-अलग क्रम पर रखकर उनके बीच तुलना करते हैं।
यह दृष्टिकोण सर्वव्यापी है, जिसका उपयोग प्रमुख व्यावसायिक और नीतिगत निर्णयों से लेकर व्यक्तिगत विकल्पों को चुनने के लिए किया जाता है, जैसे कि आप किसी विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम, रहने के स्थान या राजनीतिक मतदान करने में वरीयता का चयन करते हैं।
आमतौर पर, विकल्पों को पहचाना जाता है और प्रत्येक को उसके महत्व के अनुसार ‘‘वरीयता’’ क्रम में रखा जाता है। इसके बाद हर विकल्प को उसके महत्व के अनुसार अंक दिए जाते हैं। लेकिन, यह सामान्य दृष्टिकोण अक्सर त्रुटिपूर्ण होता है और उतना तर्कसंगत नहीं होता, जितना पहली नजर में लगता है।
निर्णय लेने में आमतौर पर सीमित विकल्पों में से चयन करना शामिल होता है। जब विचार करने के लिए केवल एक मानदंड होता है, जैसे लागत, तो निर्णय लेना आसान होता है।
हालांकि, आमतौर पर, प्रत्येक विकल्प के लिए संतुलन बनाने के पक्ष और विपक्ष में तर्क हैं। बहु-मापदंड निर्णय विश्लेषण के रूप में जानी जाने वाली एक प्रक्रिया का उपयोग अक्सर इस तरह से विकल्पों के बीच तुलना करने के लिए किया जाता है।
इसके कई रूप हैं, लेकिन ‘भार-योग पद्धति’ सबसे आम है। यह तकनीक सतही रूप से सरल, तार्किक और सहज प्रतीत होती है। सामान्य तौर पर, निर्णय लेने वाला किसी भी ऐसे विकल्प को समाप्त करने से अपनी चयन प्रक्रिया शुरू करता है, जो एक या अधिक आवश्यक ‘‘जरूरतों’’ को पूरा करने में विफल रहता है।
दूसरे चरण में वरीयता के अनुसार शेष विकल्पों को क्रमबद्ध करना शामिल है। यह वरीयता क्रम इस बात पर आधारित है कि विकल्प कितनी अच्छी तरह से अन्य ‘‘प्राथमिकताओं’’ को पूरा करते हैं।
ऐसे में विकल्पों का चयन करने के दौरान ‘‘जरूरतें’’ पूरी होना सबसे अहम है जबकि अधिक से अधिक ‘‘प्राथमिकताएं’’ भी निर्णय लेने को प्रभावित करती हैं।
‘‘जरूरतों’’ को पूरा करने में विफल रहने वाले विकल्पों को खत्म करना बेहद आसान होता है, लेकिन ‘‘प्राथमिकताओं’’ के बीच तुलना करना अधिक जटिल है।
‘‘जरूरतों’’ और ‘‘प्राथमिकताओं’’ का चयन करने के दौरान इन्हें शून्य से 10 अंकों दिए जाते हैं ताकि इनके कुल अंकों के आधार पर निर्णय लेने में आसानी हो सके।
पारंपरिक दृष्टिकोण में त्रुटि:
इन बहु-मापदंडों के निर्णय विश्लेषणों में से अधिकांश में एक कमी यह है कि मानवीय मूल्यांकन पर आधारित विचारों को व्यक्त करने के लिए संख्या भारांक पर उनकी निर्भरता है।
‘‘प्राथमिकताओं’’ को अधिक महत्व दिए जाने की सूरत में निर्णय लेने के दौरान इसकी महत्ता बढ़ जाती है और इनका भारांक अधिक होता है। इसी तरह, ‘‘प्राथमिकताओं’’ को कम महत्व दिए जाने पर इनका भारांक काफी नीचे आ जाता है।
ऐसे में विकल्पों को वरीयता सूची से हटाने या तरजीह देने में हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए।
एक बेहतर दृष्टिकोण:
इन समस्याओं को ऐसे अंक मापदंड का उपयोग करके संबोधित किया जा सकता है, जिसमें नकारात्मक अंक शामिल हैं। ‘वैकल्पिक निष्कर्ष तंत्र’ (एआईएम) विधि, शून्य से 10 जैसे अंकों की सहज सीमा को बरकरार रखते हुए आवश्यक समायोजन करती है।
एआईएम का पहले एक विशेष इंजीनियरिंग पत्रिका में उल्लेख किया गया था। हालांकि, इसे व्यापक रूप से अपनाने से पूरे समाज में निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार हो सकता है।
(द कन्वरसेशन) शफीक सुभाष
सुभाष
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