नई दिल्ली: वाशिंगटन, डीसी स्थित जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के नॉन-प्रॉफिट रिसर्च इंस्टीट्यूट नेशनल सिक्योरिटी अर्काइव की तरफ से जारी दस्तावेज बताते हैं कि जॉन एफ. कैनेडी प्रशासन ने मिसाइलों की वापसी को लेकर सोवियत संघ के साथ की गई उस म्यूचुअल डील को ‘छिपाया’ था जो क्यूबा मिसाइल संकट खत्म करने के लिए ‘क्विड-प्रो-क्वो’ (किसी फेवर के बदले में किया जाने वाला फेवर) सौदेबाजी का नतीजा थी.
‘क्विड-प्रो-क्वो’ काफी समय से प्रचलित इस थ्योरी को ही पुष्ट करता है कि अमेरिका ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के एक सहयोगी तुर्की से अपनी मिसाइलों को तब हटाया था, जब सोवियत संघ ने क्यूबा से अपने प्रोजेक्टाइल हटाए थे.
1962 में गहराते संकट के बीच राष्ट्रपति कैनेडी की अगुआई में अमेरिका और निकिता ख्रुश्चेव के शासनकाल वाला सोवियत संघ परमाणु हथियार तैनाती के करीब पहुंच गए थे. मामला उस साल अक्टूबर में उस समय चरम पर पहुंच गया जब अमेरिकी हमले को रोकने की कोशिश में मास्को और क्यूबा के प्रमुख फिदेल कास्त्रो के बीच एक करार के तहत द्वीप पर सोवियत मिसाइल साइटों के निर्माण की जानकारी मिलने पर वाशिंगटन ने क्यूबा के खिलाफ नौसैनिक घेरेबंदी का आदेश जारी कर दिया.
संकट टलने का आधिकारिक कारण यह बताया गया था कि सोवियत संघ ने अपनी मिसाइलों को हटाने का फैसला किया है क्योंकि अमेरिका ने घोषणा की है कि वह क्यूबा पर आक्रमण नहीं करेगा.
हालांकि, ऐसा लगता है पर्दे के पीछे काफी कुछ चल रहा था. व्हाइट हाउस और जस्टिस डिपार्टमेंट के बीच पत्राचार, मेमोरेंडम और रिकॉर्डिंग के अलावा अंग्रेजी में अनूदित क्रेमलिन और सोवियत दूतावास की आधिकारिक सोवियत विज्ञप्तियों और पत्रकारों के बीच पत्र व्यवहार इस थ्योरी को ही पुष्ट करते हैं कि शीत युद्ध के चरम पर होने के दौरान पर्दे के पीछे सौदेबाजी चल रही थी. इन दस्तावेजों को नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव ने पिछले सप्ताह ही जारी किया है.
हालांकि, कैनेडी प्रशासन यह सौदेबाजी सार्वजनिक तौर पर स्वीकारने से इनकार करता रहा था. नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव ने बताया, ‘राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने सोवियत प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव के इस गोपनीय सौदे को औपचारिक रूप देने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.’
नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव्स क्यूबा डॉक्यूमेंटेशन प्रोजेक्ट के निदेशक पीटर कोर्नब्लू ने कहा, ‘मिसाइल संकट सुलझाने के पीछे की असली कहानी को छिपाकर रखना अमेरिकी विदेश नीति के इतिहास में एक ऐसा कवर-अप है जिसके नतीजे काफी असरदायक रहे थे.’ हालांकि, उन्होंने कहा कि क्यूबा मिसाइल संकट के 60 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पूरी दुनिया को जानना चाहिए क्योंकि आज के घटनाक्रम के लिहाज से भी यह प्रासंगिक है.
आर्काइव से जारी दस्तावेजों में ख्रुश्चेव की तरफ से राष्ट्रपति कैनेडी को 28 अक्टूबर 1962 को लिखा गया एक पत्र शामिल है जो बताता है कि सोवियत संघ के क्यूबा में मिसाइल साइटों पर काम रोकने और पहले से ही द्वीप पर तैनात मिसाइलों को हटाने के बदले में ही अमेरिका तुर्की से मिसाइलें हटाने पर सहमत हुआ था.
पत्र इसकी भी पुष्टि करता है कि राष्ट्रपति कैनेडी के भाई और तत्कालीन अमेरिकी अटॉर्नी जनरल रॉबर्ट कैनेडी ने संकट सुलझाने में एक अहम भूमिका निभाई. पत्र के मुताबिक, वह रॉबर्ट कैनेडी ही थे जिन्होंने अमेरिका में तत्कालीन सोवियत राजदूत अनातोली फेडोरोविच डोब्रिनिन को यह जानकारी दी थी कि तुर्की से मिसाइल ठिकानों को हटाने में चार से पांच महीने का समय लगेगा.
ख्रुश्चेव ने अपने अमेरिकी समकक्ष को लिखे पत्र में कहा था ‘इस बातचीत के दौरान रॉबर्ट कैनेडी ने बताया है कि मौजूदा हालात में तुर्की में अमेरिकी मिसाइल ठिकाने खत्म करने के सवाल पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करना आपके लिए (राष्ट्रपति कैनेडी) थोड़ा मुश्किल है क्योंकि तुर्की में ये ठिकाने स्थापित करने का फैसला नाटो परिषद की बैठक में औपचारिक तौर पर लिया गया था.’
फिर 28 अक्टूबर 1962 का दिन आया जब ख्रुश्चेव ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी करके कहा कि क्यूबा में उनकी सेना की तरफ से तैनात की गई परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों को हटा दिया जाएगा.
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संयुक्त राष्ट्र राजदूत पर कैनेडी का राजनीतिक हमला
नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव की ओर से जारी दस्तावेज बताते हैं कि कैसे राष्ट्रपति कैनेडी ने इस थ्योरी को गलत ठहराने के भरसक प्रयास किए कि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोई ‘क्विड प्रो क्वो’ सौदा हुआ था. इस कोशिश के तहत ही कैनेडी ने दिसंबर 1962 के शुरू में सैटरडे मॉर्निंग पोस्ट में प्रकाशित एक लेख के जरिये संयुक्त राष्ट्र में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत एडलाई स्टीवेन्सन पर राजनीतिक हमला बोला था.
स्टीवेन्सन ने तनाव घटाने के लिए सार्वजनिक तौर पर मास्को और वाशिंगटन के बीच एक समझौते की वकालत की थी, जिसमें निश्चित तौर पर अमेरिका को तुर्की और सोवियत संघ को क्यूबा से अपनी मिसाइलों को हटाने की सलाह शामिल थी.
‘इन टाइम ऑफ क्राइसिस’ शीर्षक वाले लेख में लेखक स्टीवर्ट अलसॉप और चार्ल्स बार्टलेट ने एक ‘नॉन-एडमायरिंग (यूएस) अधिकारी’ के हवाले से कहा, ‘एडलाई तो म्यूनिख एग्रीमेंट जैसी स्थिति चाहते हैं. वह क्यूबा के ठिकानों के लिए तुर्की, इटली और ब्रिटिश मिसाइल अड्डों की सौदेबाजी करना चाहते हैं.’
अधिकारी का ज़िक्र इस तरह करने के पीछे उद्देश्य इस बात को पुष्ट करना था कि क्यूबा मिसाइल संकट सुलझाने के लिए अमेरिकी मिसाइलों को हटाने लिए कोई सौदा नहीं किया गया है.
पिछले हफ्ते जारी दस्तावेजों में सैटरडे मॉर्निंग पोस्ट के संपादक क्ले ब्लेयर जूनियर और उक्त लेख के दो लेखकों में से एक स्टीवर्ट अलसॉप का मार्च 1964 का एक पत्र शामिल है, जिसमें संकेत दिया गया है कि लेख में उद्धृत ‘नॉन-एडमायरिंग अधिकारी’ कोई और नहीं दरअसल, राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ही थे.
पत्र में ब्लेयर जूनियर ने अलसॉप से पूछा था कि क्या ऑन-रिकॉर्ड पुष्टि कर सकते हैं कि ‘जेएफके ने इस लेख को स्वीकृति दी है.’ ब्लेयर जूनियर को भेजे अपने जवाब में अलसॉप ने लिखा, ‘अगर मैंने इसका संकेत भी दिया कि जेएफके किसी भी तरह इसमें शामिल हैं, तो मुझे शहर से बाहर निकाल दिया जाएगा.’
नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव ने कहा, ‘लेख ने कैनेडी को यह तथ्य छिपाने में मदद की कि उन्होंने मिसाइल संकट के दौरान स्टीवेन्सन की निजी सलाह को माना था और क्यूबा से सोवियत मिसाइलें हटाए जाने के बदले तुर्की से अमेरिकी मिसाइलों को वापसी पर गोपनीय करार किया था.’
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