लेवेलिन ह्यूजेस और फियोना जे बेक, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी
कैनबरा, तीन फरवरी (द कन्वरसेशन) ऊर्जा व्यापार में ऑस्ट्रेलिया और जापान की लंबी साझेदारी के केंद्र में कोयला है। लेकिन जापान चूंकि आने वाले दशकों में अपने उत्सर्जन को कम करना चाहता है, तो दोनो देशों का यह संबंध बदल जाएगा।
जापान का लक्ष्य 2050 तक शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तक पहुंचना है। जापान की योजना के अनुसार इसे हासिल करने का एक तरीका यह है कि कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में कोयले के साथ-साथ अमोनिया भी जलाया जाए।
अमोनिया हाइड्रोजन और नाइट्रोजन को मिलाकर बनाया जाता है। जब अमोनिया को ऊर्जा के लिए जलाया जाता है, तो इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्पादन नहीं होता है, और इससे जापान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है।
ऑस्ट्रेलिया अमोनिया का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनने की स्थिति में है। लेकिन जापान के बदलाव से जलवायु लाभ इस बात पर निर्भर करेगा कि ऑस्ट्रेलिया में अमोनिया का उत्पादन कैसे होता है।
कोयला संयंत्रों के लिए एक नया तरीका?
जापान को ऑस्ट्रेलिया के थर्मल कोयले के निर्यात का मूल्य 2020 में लगभग सात अरब डॉलर तक पहुंच गया – यह हमारे उस वर्ष के थर्मल कोयला निर्यात के कुल मूल्य का 40%था।
जापान का लक्ष्य 2050 तक शुद्ध-शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तक पहुंचना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए, उसने 2013 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन को 46% कम करने का संकल्प लिया है।
ऊर्जा क्षेत्र जापान के कुल उत्सर्जन का अब तक का सबसे बड़ा हिस्सा है। 2020 के वित्तीय वर्ष में, थर्मल कोयले ने जापान को लगभग 31% बिजली प्रदान की।
ऊर्जा उत्सर्जन को कम करने के लिए, जापान अक्षम कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चाहता है। इसके अलावा, यह शेष संयंत्रों में कोयले के साथ-साथ अमोनिया को जलाने की योजना पर काम कर रहा है।
जापान में बड़े पायलट परीक्षणों में 20% अमोनिया के साथ कोयले के दहन मिश्रण की व्यवहार्यता का प्रदर्शन किया है। जापान का सबसे बड़ा बिजली संयंत्र संचालक, जेईआरए, अब 50% अमोनिया मिश्रण की व्यवहार्यता प्रदर्शित करने के लिए एक परियोजना में निवेश कर रहा है। जापान सरकार इस परियोजना को धन देने में मदद कर रही है।
यह मायने रखता है कि अमोनिया कैसे बना है
अमोनिया का उपयोग जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कैसे बना है।
वर्तमान में, तथाकथित ‘‘हैबर बॉश’’ प्रक्रिया का इस्तेमाल करके हाइड्रोजन और नाइट्रोजन को मिलाकर औद्योगिक पैमाने पर अमोनिया का उत्पादन किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त हाइड्रोजन एक ऐसी विधि का उपयोग करके गैस से उत्पन्न होता है जो बहुत अधिक सीओ2 छोड़ता है।
हाइड्रोजन को अक्षय बिजली द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलिसिस के साथ भी उत्पादित किया जा सकता है – जिसे ‘‘ग्रीन’’ हाइड्रोजन के रूप में जाना जाता है। यह प्रक्रिया वर्तमान में गैस विधि से अधिक महंगी है।
यदि नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग हवा से नाइट्रोजन निकालने और इसे हाइड्रोजन के साथ संयोजित करने वाली प्रक्रिया में किया जाता है, तो ग्रीन हाइड्रोजन से बने अमोनिया को लगभग शून्य उत्सर्जन के साथ उत्पादित किया जा सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के प्रचुर ऊर्जा संसाधनों और मौजूदा व्यापार संबंधों का मतलब है कि यह अपने ऊर्जा स्रोतों को डीकार्बोनाइज़ करने वाले देशों के लिए अमोनिया का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सकता है।
ऑस्ट्रेलिया में, अमोनिया मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन से बनाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप 2019 में 20 लाख टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हुआ।
हालांकि, मौजूदा सुविधाओं में ग्रीन हाइड्रोजन को इंजेक्ट करने के लिए परियोजनाएं चल रही हैं, और अन्य बड़े पैमाने पर ग्रीन अमोनिया का उत्पादन करने की मांग कर रहे हैं।
गैस से अमोनिया बनाने की ऐसी परियोजनाओं का भी विकास किया जा रहा है, जहां कार्बन उत्सर्जन को रोक कर संग्रहीत कर लिया जाता है।
क्या जापान की योजना से जलवायु को मदद मिलेगी?
अपने कोयला संयंत्रों में अमोनिया जलाने से जापान अपने राष्ट्रीय उत्सर्जन को कम करेगा। हम गणना करते हैं कि 2030 तक यदि जापान अपने यहां जलाए जाने वाले कुल कोयले में से 20% को अमोनिया से बदल देता है तो उससे प्रति वर्ष चार करोड़ टन सीओ2 का उत्सर्जन नहीं होगा।
लेकिन क्या होगा अगर जापान ऑस्ट्रेलिया में जीवाश्म-ईंधन आधारित हाइड्रोजन से बने अमोनिया को जला दे? उस स्थिति में, जापान में होने वाली उत्सर्जन बचत ऑस्ट्रेलिया में अमोनिया के उत्पादन के समय होने वाले उत्सर्जन से बराबर हो जाएगी। ग्रह को कोई लाभ नहीं होगा और उत्सर्जन केवल राष्ट्रों के बीच स्थानांतरित हो जाएगा। पहले जो उत्सर्जन जापान में होता था वह अब आस्ट्रेलिया में होगा।
ऑस्ट्रेलिया में होने वाले कुछ उत्सर्जन को कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) विधि का उपयोग करके टाला जा सकता है। हालांकि, इस तकनीक की व्यवहार्यता संदेह में है। और सीओ2 की महत्वपूर्ण मात्रा फिर भी ऑस्ट्रेलिया के वातावरण में बनी रहेगी – जो उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कैप्चर होने से बच जाएगी – क्योंकि सीसीएस पूरी सीओ2 को कैप्चर नहीं करता है।
तो स्पष्ट रूप से, केवल नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित प्रक्रिया से होने वाला अमोनिया उत्पादन जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों में सीओ2 उत्सर्जन को कम करेगा।
यह ध्यान देने योग्य है कि उल्लिखित परिदृश्य के तहत, जापान को हमारे थर्मल कोयले के निर्यात में कमी से ऑस्ट्रेलिया में कोयला खनन से होने वाले आशुलोपी उत्सर्जन में कमी आएगी।
हम अनुमान लगाते हैं कि 2030 तक हर साल 10 लाख से एक करोड़ टन के बीच आशुलोपी उत्सर्जन में कमी आएगी, जापान को कोयले के निर्यात में एक-एक करके कमी आएगी। यह गिरावट ऑस्ट्रेलिया में स्वच्छ अमोनिया उत्पादन के लिए आवश्यक अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने से हुए उत्सर्जन की भरपाई करेगी।
क्या करें
राष्ट्रीय उत्सर्जन रिपोर्टिंग की वर्तमान वैश्विक प्रणाली के तहत, जापान को ऑस्ट्रेलिया या अन्य जगहों से अधिक महंगा, शून्य-उत्सर्जन अमोनिया खरीदने से कोई फायदा होने वाला नहीं है।
इसलिए यदि अमोनिया में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ता है, तो राष्ट्रीय सरकारों को अमोनिया आपूर्ति श्रृंखला के साथ उत्सर्जन को कम करने के लिए नीतियां लागू करनी चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया में, इसका मतलब एक कठिन राष्ट्रीय उत्सर्जन लक्ष्य हो सकता है – और एक विस्तृत रोडमैप यह बताता है कि वहां तक कैसे पहुंचा जाए – व्यवसायों के लिए नए प्रदूषणकारी अमोनिया उत्पादन में निवेश करना कठिन होगा।
जापान अपने कोयला बिजली क्षेत्र के पर्यावरणीय बोझ को कम करने के लिए अमोनिया का उपयोग करने में सफल हो सकता है। लेकिन जब तक अमोनिया का उत्पादन कम या बिना उत्सर्जन के नहीं होता है, तब तक यह नयी व्यवस्था जलवायु के लिए कुछ खास फायदेमंद नहीं होगी।
द कन्वरसेशन एकता एकता
एकता
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