नई दिल्ली: 2007 से गाजा पट्टी पर नियंत्रण रखने वाले फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास ने शनिवार को इज़राइल में रॉकेटों की बौछार कर दी. यह एक अभूतपूर्व घटना थी. रॉकेट हवाई और जमीनी, दोनों हिस्सों से दागे गए थे, जिसे ‘ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड’ नाम दिया गया था.
हमास की सैन्य शाखा के कमांडर मोहम्मद दीफ ने घोषणा की कि यह ऑपरेशन जेरूसलम में टेम्पल माउंट पर स्थित अल-अक्सा मस्जिद को इजरायल द्वारा “अपवित्र” करने का परिणाम है. यह जेरूसलम स्थित एक स्थान है जो यहूदी धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के लिए एक पवित्र स्थल है.
4 अक्टूबर को दर्जनों इजरायली “निवासियों” ने अल-अक्सा मस्जिद में जबरन प्रवेश किया था. इसे पूरी दुनिया की मीडिया ने रिपोर्ट किया था. जॉर्डन, जिसके पास जेरूसलम वक्फ काउंसिल और अल-अक्सा परिसर का प्रबंधन है, ने पुलिस सुरक्षा में लापरवाही और पवित्र अल-अक्सा मस्जिद में “कट्टरपंथियों तथा नेसेट के मेंबर्स द्वारा घुसपैठ” के खिलाफ अम्मान स्थित इजरायली दूतावास को एक “विरोध ज्ञापन” भेजा था. इसे जॉर्डन के विदेश मंत्री ने शेयर भी किया था.
विरोध ज्ञापन में इजरायली पुलिस बलों द्वारा मस्जिद में मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ पूर्वी जेरूसलम में ईसाइयों पर बढ़ते हमलों का मुद्दा भी उठाया गया था.
अप्रैल में, इज़रायली पुलिस बलों ने रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान और यहूदी फसह की छुट्टी की पूर्व संध्या पर, मस्जिद परिसर पर दो बार हमला किया और कथित तौर पर 350 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया था. साथ ही वहां मौजूद अन्य लोगों को हटा दिया गया था. जेरूसलम वक्फ काउंसिल ने आरोप लगाया था कि पुलिस मस्जिद में घुसी और रबर की गोलियां चलाकर तथा स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल करके नमाजियों को बाहर निकालने की कोशिश की.
वहीं, इजराइली पुलिस ने कहा कि दर्जनों युवा मस्जिद में पत्थर और पटाखे लेकर आ गए थे और अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे.
इस घटना के कारण दुनिया भर के हजारों नेताओं ने इजरायली पुलिस की कार्रवाई की निंदा की, जिनमें 1967 से कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत और कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जैसे कुछ बड़े नाम शामिल हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका ने भी स्थिति को समान्य करने की बात कही थी. इसके अलावा जॉर्डन, मिस्र और तुर्किये जैसे देश ने इस घटना की कड़ी निंदा की.
दिप्रिंट अल-अक्सा मस्जिद के इतिहास के बारे में बात कर रहा है और बता रहा है कि इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल और यहूदी धर्म का सबसे पवित्र आज इजरायल-फिलिस्तीनी तनाव का सबसे बड़ा विषय कैसे बन गया.
इस्लाम, यहूदी धर्म में अल-अक्सा मस्जिद का महत्व
1967 में, छह दिवसीय युद्ध के बाद इज़राइल ने सिनाई प्रायद्वीप, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया. इसके बाद उसने अपने पड़ोसी अरब देशों से अल-अक्सा परिसर का नियंत्रण छीन लिया. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इस क्षेत्र को कब्ज़ा किया गया क्षेत्र माना जाता है, जबकि इज़राइल इसे विवादित क्षेत्र के रूप में बताता है.
मुसलमानों के लिए अल-हरम अल-शरीफ (नोबल सैंक्चुअरी) के रूप में जाना जाने वाला यह परिसर अल-अक्सा मस्जिद के साथ-साथ डोम ऑफ द रॉक – सुनहरे शीर्ष वाला गुंबद – का घर भी है. इसके अलावा यह दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात मस्जिदों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि यहीं से पैगंबर मुहम्मद ‘स्वर्ग की ओर चढ़े’ थे. मक्का स्थित ग्रैंड मस्जिद और मदीना में पैगंबर की मस्जिद के बाद अल-अक्सा मस्जिद को इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है.
जबकि यह परिसर यहूदियों द्वारा उस स्थान के रूप में माना जाता है जहां यहूदियों के पहले और दूसरे मंदिर थे. इसके बार में माना जाता है कि इनका निर्माण लगभग 3,000 साल पहले हुआ था. माना जाता है कि अपने वर्तमान स्वरूप में, दूसरा मंदिर पहली बार 516 ईसा पूर्व में खोला गया था और 20 से 18 ईसा पूर्व के बीच राजा हेरोदेस द्वारा इसका विस्तार किया गया था. यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल को 70 ईस्वी में रोमनों द्वारा नष्ट कर दिया गया था. माना जाता है कि रोमनों द्वारा नष्ट किए जाने के बाद मंदिर का केवल पश्चिमी दीवार का एक हिस्सा ही बच पाया था.
यहूदी लोगों से जुड़े मुद्दे को पूरी दुनिया में उठाने वाले संगठन अमेरिकी यहूदी समिति (AJC) के अनुसार यह क्षेत्र सदियों से यहूदी धर्म के आध्यात्मिक घर के रूप में काम करता रहा है और साथ ही यहूदी धर्म और उनकी सामूहिक पहचान का वर्षों से “केंद्र बिंदु” बना हुआ है.
अल-अक्सा परिसर का प्रबंधन जेरूसलम वक्फ परिषद द्वारा किया जाता है, जिसे पहली बार 1187 ई. में प्रसिद्ध मुस्लिम सैन्य नेता और अय्यूबिद खलीफा के संस्थापक सलादीन ने स्थापित किया था. होली वॉर के दौरान मुसलमानों द्वारा जेरूसलम पर कब्जा करने के बाद इसकी स्थापना हुई थी. वक्फ परिषद का अभी प्रबंधन जॉर्डन साम्राज्य द्वारा किया जा रहा है.
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अल-अक्सा कॉम्प्लेक्स किसके नियंत्रण में है
AJC के मुताबिक 1967 के युद्ध के बाद इज़राइल ने जेरूसलम पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन तत्कालीन रक्षामंत्री मोशे दयान ने यह सुनिश्चित किया था कि अल-अक्सा कॉम्प्लेक्स के प्रशासन का नियंत्रण इस्लामिक वक्फ के हाथों में ही रहेगा.
युद्ध के बाद दशकों तक जिस “यथास्थिति” का पालन किया गया वह यह है कि अल-अक्सा कॉम्प्लेक्स की सुरक्षा का नियंत्रण इज़राइल द्वारा किया जाता है, जबकि प्रबंधन और प्रशासन जॉर्डन और फिलिस्तीन के वक्फ बोर्ड हाथों में रहता है. वक्फ बोर्ड परिसर के दैनिक प्रबंधन के साथ-साथ साइट की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है.
गैर-मुस्लिम आगंतुकों को निश्चित समय पर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को दिन में किसी भी समय मस्जिद में जाने की अनुमति है. साथ ही पूजा की अनुमति भी केवल मुसलमानों को ही है.
हालांकि, यह बताया जाता है कि इज़रायली सुरक्षा बलों ने कई महत्वपूर्ण अवसरों पर मस्जिद परिसर में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. और जैसा कि इस साल अप्रैल में भी देखा गया था, जब सुरक्षा बलों ने वहां से मुस्लिम उपासकों को जबरन हटा दिया था.
दूसरा इंतिफ़ादा (विद्रोह) और 2021 टकराव
2000 में लिकुड पार्टी के तत्कालीन नेता एरियल शेरोन, जो उस समय विपक्ष में थे, ने पार्टी के सांसदों के साथ सैकड़ों इजरायली दंगा पुलिस द्वारा संरक्षित अल-अक्सा परिसर का दौरा किया.
लगभग 45 मिनट बाद वह डोम ऑफ द रॉक से नीचे आए, जिससे हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. माना जाता है कि शेरोन की यात्रा अन्य कारणों के साथ-साथ दूसरे फ़िलिस्तीनी इंतिफ़ादा (विद्रोह) का कारण बनी.
उस समय के कई मीडिया रिपोर्ट्स में उनके हवाले से कहा गया था, “टेम्पल माउंट हमारे हाथ में है और हमारे हाथ में रहेगा. यह यहूदी धर्म में सबसे पवित्र स्थल है और टेम्पल माउंट पर जाना हर यहूदी का अधिकार है.”
दूसरा इंतिफ़ादा (विद्रोह), जिसे अल-अक्सा इंतिफ़ादा भी कहा जाता है, 2005 तक चला और इसमें कई नागरिक मारे गए तथा हजारों फिलिस्तीनियों को हिरासत में लिया गया.
2021 में, अल-अक्सा मस्जिद में झड़पें हुई, जिसके कारण इजरायली पुलिस प्रदर्शनकारियों के धरने को समाप्त करने के लिए परिसर के अंदर दाखिल हुए, गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच 11 दिनों तक चलने वाले सैन्य संघर्ष में बदल गया.
(संपादनः ऋषभ राज)
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