नई दिल्ली: ढाका यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र निलय कुमार बिस्वास को शेख हसीना के बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद से पूरी रात नींद नहीं आई है.
26-वर्षीय बिस्वास ढाका में रहते हैं, जहां उनका कहना है कि वे अपेक्षाकृत सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश की राजधानी के बाहर से परिवार और दोस्तों से आने वाली संकटपूर्ण कॉल उन्हें रात में जगाए रखती हैं. उनके अनुसार, अंतरिम सरकार के गठन से पहले सड़कों पर अराजकता के कारण बांग्लादेशी नागरिकों, खासकर हिंदुओं को एक-दूसरे का ख्याल रखना पड़ रहा है.
ढाका से फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए बिस्वास ने कहा, “अधिकांश पुलिस स्टेशन खाली रहते हैं. जब हत्यारी भीड़ उत्पात मचाती है, तो आम बांग्लादेशी असहाय होकर देखता है. अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय ऐसे समय में विशेष रूप से असहाय महसूस करता है क्योंकि हम आसान लक्ष्य होते हैं. मैं अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता में रातों को सो नहीं पाता.”
पिछले साल ढाका यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन और पत्रकारिता विभाग से सामाजिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने वाले बिस्वास ने कहा कि कई हिंदू छात्र कोटा सुधार विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए थे, जिसका अंत शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के रूप में हुआ.
उन्होंने कहा, “सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि कई हिंदू छात्र चाहते थे कि सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली में सुधार किया जाए. वे अपने साथी मुस्लिम छात्रों के साथ चले, उम्मीद के गीत गाए, फांसीवाद के खिलाफ नारे लगाए और पुलिस की लाठी और गोली का सामना किया. हिंदू छात्रों ने एक ऐसे मकसद के लिए खून बहाया है जिसने पूरे देश को एकजुट किया है. आज, जब बांग्लादेश में अराजकता फैल रही है, हिंदू मंदिरों पर हमला किया जा रहा है, हमारे घरों को लूटा जा रहा है, आग लगाई जा रही है, हमारी जान को खतरा है.”
कोटा सुधार, ‘हसीना आउट’ से लेकर अराजकता तक
बांग्लादेश के सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों के लाखों छात्रों ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे पर देश को ठप्प कर दिया था.
वह 1971 के मुक्ति संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और नाती-नातिनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत कोटे के खिलाफ थे.
विवादास्पद कोटा प्रणाली के तहत, सरकारी नौकरियों में 56 प्रतिशत पद विशिष्ट “हकदार” वर्गों के लिए आरक्षित थे.
इसमें स्वतंत्रता सेनानियों की संतानों के लिए 30 प्रतिशत, महिलाओं और अविकसित जिलों के नागरिकों के लिए 10-10 प्रतिशत, जातीय अल्पसंख्यकों के लिए 5 प्रतिशत और विकलांग लोगों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण शामिल था. इसका मतलब यह हुआ कि जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार देश की 44 प्रतिशत सरकारी नौकरियों के लिए ही आवेदन कर सकते थे.
स्वतंत्रता सेनानियों के लिए इसे 1972 में शुरू किया गया जिसे 1997 में उनके बच्चों और 2010 में पोते-पोतियों तक बढ़ा दिया गया, जिलेवार कोटा को 2018 में राष्ट्रव्यापी विरोध के मद्देनज़र हसीना के नेतृत्व वाली सरकार ने रद्द कर दिया था. इस साल जून में हाई कोर्ट ने 2018 के आदेश को रद्द कर दिया और पुरानी कोटा प्रणाली को बहाल कर दिया, लेकिन 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए कोटा 30 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया.
बिस्वास ने कहा कि कई छात्रों को लगा कि यह एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था है और उन्होंने लोकप्रिय विद्रोह में भाग लिया.
बिस्वास ने कहा, “विरोध प्रदर्शनों में कई हिंदू भी शामिल थे. हसीना प्रशासन द्वारा बांग्लादेश को डिजिटल अंधकार में धकेलने और छात्रों तथा अन्य प्रदर्शनकारियों के खिलाफ क्रूर पुलिस कार्रवाई के बाद, आम नागरिक, कलाकार और यहां तक कि फिल्मी सितारे भी सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन किया. तब यह सिर्फ कोटा सुधारों के बारे में नहीं था, बल्कि पूरी व्यवस्था में बदलाव के बारे में था, लेकिन आज, जब हर जगह हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए हैं, तो बांग्लादेशी हिंदू अपने साथी नागरिकों से एक साधारण सवाल पूछ रहे हैं: क्या यह हमारा देश भी नहीं है?”
जबकि बांग्लादेश भर से हिंदुओं पर हमलों की खबरें वैश्विक सुर्खियां बन रही हैं, बिस्वास का कहना है कि इस समय हिंदू साथी मुसलमानों की ओर रुख कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “मेरे मुस्लिम दोस्त मंदिरों और हिंदू घरों के बाहर पहरा दे रहे हैं ताकि भीड़ उन्हें लूटने और आग लगाने से रोक सके. सोशल मीडिया पर नेकदिल मुस्लिम नागरिकों की अपील है कि देश को अंधकार में न घसीटें. यह साथी मुसलमान ही हैं जो हमारी रक्षा कर सकते हैं. हम और किसकी ओर रुख करें.”
लेकिन बिस्वास को चिंता है कि अगर अंतरिम सरकार जल्द ही नहीं बनी और स्थिति को नियंत्रण में नहीं लाया गया, तो और अधिक जानें जाएंगी और अधिक नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि कुछ गुस्सा इस तथ्य के कारण भी हो सकता है कि आमतौर पर यह माना जाता है कि हिंदुओं ने चुनावों के दौरान शेख हसीना और उनकी पार्टी का समर्थन किया है, उन्होंने जोर देकर कहा कि उनमें से कई विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए थे, जिसके कारण अंततः उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा.
उन्होंने कहा, “बांग्लादेश को मुसलमानों, हिंदुओं और सभी अन्य धर्मों के नागरिकों के साथ एक नई शुरुआत की ज़रूरत है. लोग सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित जिलों की सूची को अपडेट करने का प्रयास कर रहे हैं. मैं केवल यही प्रार्थना कर सकता हूं कि सूची और लंबी न हो. पहले ही बहुत कुछ खो दिया जा चुका है.”
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