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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
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स्ट्रोक, मिर्गी से ज्यादा आम ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’, पर अक्सर पकड़ में नहीं आता

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(बेंजामिन स्क्रीवेनर, पीएचडी छात्र, चिकित्सा और स्वास्थ्य विज्ञान संकाय, वाइपापा ताउमाता राउ, ऑकलैंड विश्वविद्यालय)

ऑकलैंड, 24 अप्रैल (द कन्वरसेशन) अगर आप अचानक अपने हाथ-पैर हिलाने, चलने-फिरने या बोलने में असमर्थता महसूस करने लगें, तो आप शायद इसे ‘मेडिकल इमरजेंसी’ समझकर तुरंत अस्पताल का रुख करेंगे।

अब कल्पना कीजिए कि अस्पताल में डॉक्टर आपकी कुछ जांच कराएं और रिपोर्ट देखने के बाद कहें, “अच्छी खबर है! आपकी सभी रिपोर्ट सामान्य है, किसी भी जांच में कोई भी दिक्कत सामने नहीं आई है। सब कुछ ठीक है। आप घर जा सकते हैं!” हालांकि, आपको लक्षणों में कोई राहत महसूस नहीं होती और आप इस डरावने एहसास से घिरने लगते हैं कि आप जल्द बिस्तर पकड़ सकते हैं।

दुर्भाग्य से, ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ (कार्यात्मक तंत्रिका संबंधी विकार) से पीड़ित कई लोग इसी तरह के अनुभव से दो-चार होते हैं। कई बार तो उन्हें यह भी सुनना पड़ता है कि वे लक्षणों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं।

तो आइए जानें कि ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ क्या है और इसकी पहचान एवं इलाज इतना मुश्किल क्यों है?

स्ट्रोक समझने की गलती

-तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) तंत्रिका तंत्र के काम करने के तरीके को प्रभावित करते हैं। तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्सों के बीच संदेशों के आदान-प्रदान के लिए जिम्मेदार होती हैं, जिससे व्यक्ति उठने, बैठने, चलने, बोलने, देखने, सुनने, स्वाद महसूस करने और खाना पचाने जैसे अहम काम कर पाता है।

आम लोगों को ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लक्षण स्ट्रोक, मिर्गी या ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के समान लग सकते हैं।

‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में मौजूद तंत्रिका कोशिकाओं के सुरक्षात्मक आवरण (मायलिन) पर हमला करती है, जिससे मस्तिष्क और शरीर के बाकी हिस्सों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान प्रभावित होता है।

स्ट्रोक, मिर्गी या ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ के विपरीत ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लक्षण तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली क्षति या विकार का नतीजा नहीं होते हैं। इसका मतलब यह है कि ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ सामान्य मस्तिष्क स्कैन और अन्य जांच में पकड़ में नहीं आते।

‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ मस्तिष्क से जुड़ी विभिन्न प्रणालियों के बीच सूचनाओं के प्रसंस्करण की प्रक्रिया प्रभावित होने के कारण उभरते हैं। सरल भाषा में कहें तो ये मस्तिष्क के हार्डवेयर नहीं, सॉफ्टवेयर से जुड़े विकार होते हैं।

अलग-अलग लक्षणों से भ्रम

-‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ में अलग-अलग तरह के लक्षण सता सकते हैं, जो समय के साथ बदलते भी रहते हैं। इससे मरीजों में भ्रम की स्थिति पैदा होती है और रोग निदान में मुश्किलें पेश आती हैं।

‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लक्षणों में लकवा या मांसपेशियों में असमान्य कंपन, झटके और खिंचाव की शिकायत शामिल हो सकती है, जिससे मरीज को चलने-फिरने और अन्य सामान्य गतिविधियां करने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

इस विकार में संवेदी लक्षण भी उभर सकते हैं, जिनमें अंगों का सुन्न पड़ना, झुनझुनी या रोशनी कमजोर होना शामिल है। हृदयगति अनियंत्रित होने, आंखों के सामने धुंधलापन छाने, मुंह सू्खने, याददाश्त-तर्क शक्ति में कमी जैसे लक्षण भी आम हैं। मरीज को इन लक्षणों के साथ थकान और दर्द की शिकायत भी सता सकती है।

‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लक्षण गंभीर, लाइलाज और परेशान करने वाले हो सकते हैं। हल्के में लेने पर ये वर्षों तक बने रह सकते हैं और मरीज व्हीलचेयर पर आश्रित हो सकता है।

प्रति एक लाख में 10-22 मामले

-आपातकालीन देखभाल और बाह्य रोगी तंत्रिका विज्ञान क्लीनिक में सबसे ज्यादा मामले ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के आते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, ये विकार हर साल प्रति 1,00,000 लोगों में से 10-22 को प्रभावित करते हैं। यानी ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के मामले ‘मल्टीपल स्क्लेरोसिस’ से कहीं ज्यादा आम हैं।

महिलाएं ज्यादा संवेदनशील

-यूं तो कोई भी ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ की चपेट में आ सकता है, लेकिन महिलाएं और कम उम्र के लोग इस विकार के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील माने जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ की लगभग दो-तिहाई मरीज महिलाएं हैं।

व्यक्ति की आनुवंशिकी, जीवन के दर्दनाक अनुभव, चिंता और अवसाद ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ का जोखिम निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। तनावपूर्ण घटनाएं, बीमारी, शारीरिक चोटें और किसी प्रियजन की मौत लक्षणों को बढ़ावा दे सकती है।

समय रहते इलाज जरूरी

-समय रहते सही इलाज न मिलने पर ‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लगभग आधे मरीजों में लक्षण समय के साथ और गंभीर हो सकते हैं। हालांकि, शुरुआती दौर में अनुभवी तंत्रिका तंत्र की मदद लेने पर कई मरीजों की स्थिति में तेजी से सुधार भी संभव है।

‘फंक्शनल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर’ के लिए कोई विशिष्ट दवा उपलब्ध नहीं है। इसके इलाज के लिए अनुभवी चिकित्सकों की देखरेख में मरीज के लक्षणों और क्षमता के हिसाब से ऐसी देखभाल प्रक्रिया एवं गतिविधियां निर्धारित की जाती हैं, जिससे उसे विकार से उबरने और सामान्य जीवन की ओर लौटने में मदद मिले।

कई मरीजों को अलग-अलग विभागों के चिकित्सकों की टीम की जरूरत पड़ सकती है, जिनमें फिजियोथेरेपिस्ट, ‘ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट’, मनोवैज्ञानिक और ‘स्पीच थेरेपिस्ट’ आदि शामिल हैं।

(द कन्वरेशन) पारुल मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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