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Monday, 18 November, 2024
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रूस के साथ बदलते रिश्ते : दिल्ली-मास्को के बीच राजनयिक संबंध समय के साथ कमजोर क्यों हो रहे हैं

वैसे सामान्य तौर पर तो स्थितियां एकदम सामान्य ही नजर आती है, यहां तक कि रिश्तों में कुछ मिठास की झलकती है. पुतिन के दिसंबर में दिल्ली के लिए उड़ान भरने को भी इसी का संकेत माना जा सकता है. लेकिन फाल्टलाइन उभर रही हैं और रिश्तों में दरार बढ़ती जा रही है.

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नई दिल्ली: भारत और रूस के बीच दशकों पुरानी पारंपरिक दोस्ती इस समय अप्रत्याशित तनाव से गुजर रही है, क्योंकि बीजिंग के साथ मॉस्को की नजदीकी बढ़ रही और उनके इस टैंगो में इस्लामाबाद भी गलबहियां कर रहा है.

वैसे सामान्य तौर पर तो स्थितियां एकदम सामान्य ही नजर आती है, यहां तक कि रिश्तों में कुछ मिठास की झलकती है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के दिसंबर में कुछ घंटों के लिए दिल्ली आने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शिखर वार्ता में हिस्सा लेने को इसी का संकेत माना जा सकता है, जो कि महामारी के इस दौर में उनकी अप्रत्याशित यात्रा कही जा सकती है. दोनों देशों ने अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच 2+2 वार्ता भी शुरू की है.

लेकिन राजनयिक पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों का कहना है कि गौर से देखें तो फाल्टलाइन उभर रही हैं और रिश्तों में दरार गहराने लगी है, जिसमें एक इतना आगे निकल गया है कि रिश्तों में ‘लगातार बढ़ती दूरी’ को साफ तौर पर देखा जा सकता है. विश्लेषकों का कहना है कि इसका ताजा उदाहरण पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच नवीनतम बैठक है, जहां दोनों नेताओं ने इंडो-पैसिफिक रणनीति के ‘नकारात्मक प्रभाव’ पर जोर दिया.

रूस और चीन के संयुक्त बयान पर गौर करने के बाद भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इंडो-पैसिफिक रणनीतिक ढांचा ही उसकी विदेश नीति का आधार रहा है और आगे भी रहेगा.

कूटनीतिक और रणनीतिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंध परंपरागत रूप से रणनीतिक के बजाये परस्पर लेन-देन से ज्यादा जुड़े रहे हैं.

नाम जाहिर न करने की शर्त पर शीर्ष स्तर के एक सूत्र ने कहा, ‘शीत युद्ध काल भारत की विदेश नीति से बहुत पहले बाहर हो चुका है. उसकी छाया ही रह गई थी. आज, दुनिया की स्थिति बहुत ही अलग है जहां भू-रणनीतिक बदलावों के मद्देनजर वैश्विक व्यवस्था बनाए रखने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के लिए पारस्परिक समूह बनाना बहुत ज्यादा मायने रखता है.

संयुक्त बयान के मुताबिक, जब दोनों राष्ट्रपति पुतिन और शी बीजिंग 2022 विंटर ओलंपिक के मौके पर मिले, तो उन्होंने ‘सुरक्षा संबंधी गंभीर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों’ पर अपनी चिंता साझा की, साथ ही रूस-भारत-चीन फ्रेमवर्क के भीतर सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी जताई.

साउथ ब्लॉक को गंभीरता से ध्यान देने पर बाध्य कर देने वाले इस संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि रूस और चीन दोनों ‘एशिया-प्रशांत क्षेत्र में छोटे-छोटे समूह बनने और विरोधी खेमे तैयार होने के खिलाफ हैं.’ साथ ही इसमें क्वाड पर निशाना साधते हुए विभिन्न देशो से आग्रह किया गया कि ‘क्षेत्र में शांति और स्थिरता पर अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के नकारात्मक प्रभाव को लेकर बेहद सतर्क रहे.’

क्वाड के मुखर आलोचक

रूस और चीन दोनों ही क्वाड समूह के मुखर आलोचक रहे हैं जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. अगला क्वाड शिखर सम्मेलन अगले कुछ महीनों में जापान में होने की उम्मीद है.

रूस में भारत के पूर्व राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पी.एस. राघवन ने दिप्रिंट को बताया, ‘अमेरिका-चीन-रूस रिश्तों की प्रकृति भारत के लिए महत्वपूर्ण है. जब अमेरिका-रूस के बीच गतिरोध बढ़ता है, तो रूस-चीन गलबहियां करने लगते हैं. जहां तक भारत का सवाल है, तो हम हमेशा रूस-चीन संबंधों के रणनीतिक स्तर तक पहुंचने को लेकर चिंतित रहे हैं, क्योंकि इससे हमारे मूल हित प्रभावित हो सकते हैं.’

तत्कालीन यूएसएसआर, ब्रिटेन और पोलैंड में राजनयिक जिम्मेदारी संभालने का अनुभव रखने वाले राघवन ने कहा, “राष्ट्रपति पुतिन हमेशा हमारे नेतृत्व को भरोसा दिलाते रहे हैं कि रूस-चीन संबंधों को कभी भारत के मूल हितों के लिए खतरा नहीं बनने देंगे. लेकिन हमें इस पर हमेशा थोड़ा सतर्क रहना होगा, खासकर अगर रूस के प्रति अमेरिकी शत्रुता उसके पास चीन के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ती है तो.’

हालांकि, साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘रूस भी जानता है कि भारत और चीन के बीच संतुलन को बेहतर ढंग से कायम रखने के लिए उसे बेहद सावधानी बरतनी होगी.’

उन्होंने कहा, ‘वैसे देखा जाए तो यह बात भी सच है कि रूस अपने हितों को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति को आगे बढ़ाएगा और मॉस्को के साथ संबंधों को लेकर हमारा कोई विशेषाधिकार नहीं है. अमेरिका के साथ भारत की घनिष्ठता और क्वाड और इंडो-पैसिफिक पहल के साथ जुड़ाव को देखते हुए रूस के पास ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह अपनी तरफ से कोई गहन दक्षिण एशियाई नीति नहीं अपना सकता.’

रैंड कॉर्पोरेशन के वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक डेरेक जे. ग्रॉसमैन के मुताबिक, भारत-रूस संबंधों में ‘दूरी लगातार बढ़ रही है.’
ग्रॉसमैन ने कैलिफोर्निया से दिप्रिंट को बताया, ‘जब पुतिन ने दिसंबर में भारत का दौरा किया, तब मैंने एस-400 पैकेज की फाइनल डिलीवरी के अलावा कोई ठोस नीतिगत फैसला होते नहीं देखा. मेरा मानना है कि रिश्तों में दूरी लगातार बढ़ रही है. फिर भी, चूंकि भारत रूसी और सोवियत सैन्य उपकरणों पर निर्भर है और इसलिए नई दिल्ली का मानना है कि उसके साथ रिश्ते बनाए रखने के जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘अजीब बात तो यह है कि नई दिल्ली का मानना है कि मास्को के साथ उसकी घनिष्ठता बीजिंग के साथ रिश्तों को बिगाड़ सकती है, लेकिन अभी तक ऐसा होता नहीं दिखता. बल्कि इसका उल्टा ही हो रहा है, जो कि हाल में बीजिंग विंटर ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में पुतिन और शी की मुलाकात से रेखांकित होता है.’


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इमरान खान का रूस दौरा भारत के लिए चिंता का विषय

इस माह के शुरू में रूस भारत में सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर आ गया जब यहां एक न्यूज मीडिया आउटलेट रेडफिश मीडिया- जो रूसी मीडिया कंपनी आरटी से संबद्ध है- ने कश्मीर पर एक डॉक्यूमेंट्री का ट्रेलर जारी किया, जिसमें वहां की स्थिति की तुलना फिलिस्तीन से की गई थी.

हालांकि, बाद में धमकियों का हवाला देते हुए डॉक्यूमेंट्री की रिलीज को टाल दिया गया, और रूसी सरकार ने डैमेज कंट्रोल के तौर पर डॉक्यूमेंट्री से अपना कोई लेना-देना न होने की बात कही.

यह डॉक्यूमेंट्री ऐसे समय पर सुर्खियों में आई जब भारत ने बढ़ते यूक्रेन संकट पर तटस्थ रुख अपनाने का फैसला किया है, और वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान मास्को जाने की तैयारी कर रहे हैं जो कि पिछले 23 सालों में द्विपक्षीय यात्रा पर रूस जाने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री होंगे.

सूत्रों के अनुसार, भारत इस यात्रा पर गहन नजर रखेगा, क्योंकि नई दिल्ली का मानना है कि इसमें क्वाड के ‘जवाब’ में रूस-चीन-पाकिस्तान के बीच भू-रणनीतिक नजदीकी के उद्देश्य से एक नया चैनल खुलने के पूरे आसार हैं.’

हालांकि, यात्रा की तारीखों की आधिकारिक घोषणा तो अभी नहीं हुई है, क्रेमलिन ने 7 फरवरी को जारी एक बयान में कहा था कि ‘ऐसी यात्रा की तैयारी हो रही है.’ यात्रा की योजना इस साल जनवरी में पुतिन और इमरान खान के बीच फोन पर बातचीत के बाद बनी है.

ग्रॉसमैन का माना है कि चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंध इस समय ‘शायद सबसे करीबी’ हैं, जो ‘कथित अमेरिकी वर्चस्व और निरंकुश सरकारों के खिलाफ अमेरिका प्रेरित ‘कलर रिवोल्यूशन’ से मुकाबले की साझा इच्छा से उपजे हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि चीन-रूस के घनिष्ठ संबंध रूस-पाकिस्तान मित्रता को सुगम बना रहे हैं, और हमें इस बारे में और स्पष्ट तस्वीर इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री इमरान खान की मास्को यात्रा के बाद ही नजर आएगी. मुझे लगता है कि पुतिन जल्द ही पाकिस्तान की यात्रा करने वाले पहले रूसी नेता बन जाएंगे और जाहिर है यह भारत के लिए खुशी की बात नहीं होगी.’

रूस सैन्य हार्डवेयर में भारत का मुख्य स्रोत

भारत अपने सैन्य हार्डवेयर के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है—यह नई दिल्ली के लिए सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है. देश में हथियारों के कुल आयात में रूस की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है.

काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट (सीएएटीएसए)—जिसमें रूस से हथियार खरीदने वाले देशों पर अमेरिकी प्रतिबंध का प्रावधान है—के खतरे के बावजूद नई दिल्ली और मॉस्को ने सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली एस-400 ट्रायम्फ की पहली रेजिमेंट की तैनाती को अंतिम रूप दे दिया है.

भारत और रूस ने 2021 में दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रालयों के बीच पहली 2+2 वार्ता आयोजित करके अपने रक्षा सहयोग को बढ़ाया था.

दोनों देशों ने सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम को अगले 10 सालों के लिए बढ़ा दिया है और कई अन्य सौदे भी पाइपलाइन में हैं. इसमें कामोव-31 और एमआई-17 हेलीकॉप्टर और मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर स्मर्च की आपूर्ति शामिल है.

दिसंबर में पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने एक संयुक्त बयान जारी किया था जिसमें 99 प्वाइंट शामिल थे. हालांकि, इन सब पर कोई ठोस नतीजे बेहद सीमित ही थे.

बहरहाल, रणनीतिक तौर पर दोनों देश अभी भी एक-दूसरे से काफी दूर बने हुए हैं.

ग्रॉसमैन ने कहा, ‘तो, भारत रूस के साथ क्यों खड़ा हुआ है? मुझे लगता है कि इसकी एक बड़ी वजह तो यही है कि यह खुलकर स्वीकारा नहीं जा रहा कि परिस्थितियां बदल गई हैं. साथ ही कुछ हद तक इसका कारण मोदी सरकार द्वारा सख्त गुटनिरपेक्षता के बजाये बहुआयामी नीति अपनाना भी हैं, जिसके तहत भारत का समर्थन करने वाली सभी शक्तियों के साथ संबंधों को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा—और अब भी उनकी राय है कि रूस हमारे लिए मददगार हो सकता है.’

अब, जब पाकिस्तान रूस के साथ दीर्घकालिक संबंधों पर नजरें गड़ाए है, तो उनके बीच किसी हथियार कार्यक्रम की संभावना ने भारत की चिंता बढ़ा दी है.

राघवन ने कहा, ‘आज बदली परिस्थितियों में बहुत संभव है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जल्द मास्को का दौरा करें. लेकिन मुझे नहीं लगता कि रूस कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन करेगा. जब भी पाकिस्तान ऐसी कोई कोशिश करता है, रूस शिमला और लाहौर समझौते की अहमियत का हवाला देकर पीछे हट जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन फिर भी हमें सतर्क रहना होगा कि वे हमारी लक्ष्मण रेखा को पार न करें, खासकर सैन्य सहयोग पर. क्योंकि निश्चित तौर पर पुतिन एकमात्र रूसी नेता हैं जिनके पास किसी भी स्तर पर रक्षा निर्यात के संबंध में कोई निर्णय लेने का अधिकार सुरक्षित है.’

अफगानिस्तान में तालिबान एक बड़ा फैक्टर

रूस को पाकिस्तान के साथ नजदीकी बढ़ाने पर बाध्य कर रहा एक अन्य बड़ा फैक्टर अफगानिस्तान की बदली शासन व्यवस्था भी है, जहां अब तालिबान काबिज हो चुका है.

राघवन का मानना है कि इस्लामाबाद और मॉस्को ने द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग बढ़ाया है क्योंकि ‘रूस को अफगानिस्तान में तालिबान के साथ कुछ संपर्क कायम करने में’ पाकिस्तान की मदद मिल रही है.

सूत्रों ने बताया, यहां तक कि तालिबान के सत्ता में आने से पहले से ही रूस इस्लामिक समूह के साथ बातचीत के लिए पाक के साथ मिलकर काम कर रहा था.

ग्रॉसमैन ने कहा, ‘अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो चुके तालिबान के संदर्भ में चीन, रूस और पाकिस्तान सभी आमतौर पर समान स्थिति में है. तीनों स्थिरता चाहते हैं और संभवत: तब तक चरमपंथी शासन के खिलाफ कोई कदम उठाने के इच्छुक नहीं है जब तक कि उन्हें निशाना बनाने के लिए उपयुक्त स्थिति न बन जाए, जैसा 9/11 हमले के पूर्व में हुआ था.’

उन्होंने चीन द्वारा पाकिस्तान को 50 नए जेएफ-17 लड़ाकू विमान बेचने का हवाला देते हुए कहा, ‘भारत की बढ़ती ताकत को नाकाम करने के लिए चीन-पाकिस्तान संबंध लगातार गहराते जा रहे हैं.’


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यूक्रेन संकट की भी एक बड़ी भूमिका

इस बीच, यूक्रेन संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है और एक संभावित रूसी आक्रमण को लेकर अमेरिका की चेतावनी से पूरे यूरोप में दहशत का माहौल बना हुआ है, इसे लेकर भी भारत-रूस संबंध फिर सुर्खियों में हैं कि युद्ध होने की स्थिति में नई दिल्ली का रुख किस पक्ष में होगा.

भारत ने यूक्रेन मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाया है और संकट सुलझाने के लिए राजनयिक समाधान पर जोर दिया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर पिछले हफ्ते क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान यूक्रेन पर रूस की कार्यवाही को लेकर किसी तरह की आलोचना में घिरने से बचते नजर आए.

राघवन ने कहा, ‘यूक्रेन की सीमाओं पर अभी जो कुछ चल रहा है वह एक तरह का नाटक है जिसे जल्द खत्म होना चाहिए, इससे पहले कि इसके गलत आकलन के नतीजे सामने आने लगें. राष्ट्रपति बाइडेन ने पिछले साल जून में स्पष्ट तौर पर संकेत दिया था कि रूस की तरफ से अत्यधिक दबाव वाले घरेलू एजेंडे और उनके प्रमुख बाहरी चुनौती चीन पर ज्यादा फोकस किए जाने के मद्देनजर वह मॉडस विवेंडी (उपयुक्त व्यवस्था) अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. और पुतिन शायद यूक्रेन संकट को बाइडेन के साथ सौदेबाजी के एक अच्छे मौके के तौर पर भुनाना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक यह तनातनी कहीं और किसी बड़ी समस्या की वजह बने, इससे पहले ही हमें किसी फेस सेविंग पैकेज में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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