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मंगलवार, 29 अप्रैल, 2025
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फेस पेरिडोलिया: गर्भवती महिलाएं यह समझने में मदद कर सकती हैं कि निर्जीव वस्तुओं में चेहरे क्यों दिखते हैं

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(रॉबिन क्रेमर लिंकन विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान स्कूल में वरिष्ठ व्याख्याता)

लिंकन (यूके), 29 सितंबर (द कन्वरसेशन) कभी-कभी हम ऐसे चेहरे देखते हैं जो वास्तव में होते ही नहीं। हो सकता है कि आप किसी कार के सामने या जले हुए टोस्ट के टुकड़े को देख रहे हों, तभी आपको एक चेहरे जैसा पैटर्न दिखाई देता है। इसे फेस पेरिडोलिया कहा जाता है और यह मस्तिष्क के चेहरे का पता लगाने वाली प्रणाली द्वारा की गई एक गलती है।

लेकिन यह एक त्रुटि है जो हमें मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझने में मदद कर सकती है। एक हालिया अध्ययन में तर्क दिया गया है कि बच्चा होने से हमारे मस्तिष्क के इस पहलू पर असर पड़ सकता है, यह सुझाव देता है कि यह हमारे जीवनकाल में भिन्न हो सकता है।

कई वैज्ञानिक अध्ययन गर्भवती महिलाओं को इस चिंता से बाहर रखते हैं कि उनके हार्मोन के स्तर में नाटकीय परिवर्तन परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।

लेकिन ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने महसूस किया कि ये हार्मोनल परिवर्तन हमें दिलचस्प अंतर्दृष्टि दे सकते हैं।

उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं ने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है, उनमें गर्भवती महिलाओं की तुलना में चेहरे जैसे पैटर्न देखने की अधिक संभावना थी।

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि ऐसा ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बदलते स्तर के कारण हो सकता है। हालाँकि, पूरी तस्वीर अधिक जटिल हो सकती है।

लोग जन्म से ही चेहरों और चेहरे जैसी आकृतियों के प्रति संवेदनशील होने के लिए विकसित हुए हैं, शायद इसलिए कि चेहरों पर ध्यान देना हमारे सामाजिक संबंधों को रेखांकित करता है और हमें सुरक्षित रहने में भी मदद कर सकता है (इस तरह हम अजनबियों और दोस्तों तथा परिवार में फर्क बताते हैं)।

बंदरों में चेहरे का पेरिडोलिया होता है, जिससे पता चलता है कि हम अपने चेहरे का पता लगाने वाली प्रणाली की विशेषताओं, जिसमें इससे होने वाली गलतियाँ भी शामिल हैं, को अन्य प्रजातियों के साथ साझा करते हैं।

यह अच्छी तरह से स्थापित है कि मस्तिष्क में रासायनिक संदेशवाहक हमारे सामाजिक संबंधों में भूमिका निभाते हैं।

उदाहरण के लिए, सामाजिक जुड़ाव और प्रजनन से जुड़े होने के कारण ऑक्सीटोसिन को अक्सर ‘लव हार्मोन’ कहा जाता है।

अध्ययनों से पता चला है कि स्प्रे का उपयोग करके कृत्रिम रूप से ऑक्सीटोसिन के स्तर को बढ़ाने से लोगों को चेहरे के आंखों के क्षेत्रों को देखने में अधिक समय लगता है और चेहरे के सकारात्मक भावों की पहचान बढ़ती है।

गर्भवती महिलाओं में और बच्चे को जन्म देने के बाद ऑक्सीटोसिन का स्तर स्वाभाविक रूप से बदलता है।

पिछले शोध में महिलाओं की गर्भावस्था और प्रसवोत्तर के विभिन्न चरणों की तुलना में पाया गया है कि ऑक्सीटोसिन और अन्य हार्मोन का स्तर नाटकीय रूप से भिन्न होता है।

ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने यह परीक्षण करने का निर्णय लिया कि क्या ऑक्सीटोसिन का स्तर (चेहरे की धारणा में इसकी भूमिका को देखते हुए) और चेहरे जैसे पैटर्न देखने की संभावना एक दूसरे से संबंधित हैं।

उन्होंने भविष्यवाणी की कि प्रसवोत्तर महिलाओं में गर्भवती महिलाओं की तुलना में ऑक्सीटोसिन का स्तर अधिक होगा, इसलिए उनके लिए चेहरे जैसे पैटर्न की आकृतियां देखना आसान हो जाएगा।

वस्तुओं में चेहरे देखना

शोधकर्ताओं ने फेस पेरिडोलिया के परीक्षण पर महिलाओं के दो समूहों की तुलना की। एक समूह गर्भवती महिलाओं का था, जबकि दूसरे समूह ने पिछले 12 महीनों में बच्चे को जन्म दिया था।

परीक्षण के दौरान, सभी महिलाओं को तीन प्रकार की छवियां दिखाई गईं: मानव चेहरे, सामान्य वस्तुएं और भ्रामक चेहरे (चेहरे जैसे पैटर्न वाली वस्तुएं)।

महिलाओं को शून्य (नहीं, मुझे कोई चेहरा नहीं दिखता) से दस (हां, मुझे निश्चित रूप से एक चेहरा दिखता है) तक 11-बिंदु पैमाने का उपयोग करके छवियों पर प्रतिक्रिया देने के लिए कहा गया था।

परिणामों से पता चला कि प्रसवोत्तर महिलाओं ने वास्तव में गर्भवती महिलाओं (5.30 की औसत प्रतिक्रिया) की तुलना में भ्रामक चेहरे की छवियां (औसत प्रतिक्रिया 7.08) देखने की सूचना दी थी।

जैसा कि अपेक्षित था, ये समूह मानव चेहरों और सामान्य वस्तुओं की छवियों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं में बहुत भिन्न नहीं थे।

लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि महिलाओं में चेहरे के पेरिडोलिया के स्तर के प्रति संवेदनशीलता मां बनने के शुरूआती दिनों के दौरान बढ़ सकती है, और सामाजिक बंधन को प्रोत्साहित कर सकती है, जो स्पष्ट रूप से माताओं और उनके शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, संवेदनशीलता में यह वृद्धि, जन्म देने के बाद के महीनों में ऑक्सीटोसिन के बढ़े हुए स्तर के कारण होती है।

अध्ययन के लेखकों ने नोट किया कि उन्होंने वास्तव में अपने प्रतिभागियों के ऑक्सीटोसिन स्तर को नहीं मापा। इसके बजाय, उन्होंने मान लिया कि ऑक्सीटोसिन के अंतर के कारण चेहरे के पेरिडोलिया में अंतर होता है।

हालाँकि, इसका मतलब यह है कि यह दोनों समूहों के बीच अन्य मतभेदों का परिणाम हो सकता है।

शायद गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाओं की चिंता, तनाव या थकान का स्तर अलग-अलग होता है, जो कार्य पर उनके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।

यह भी हो सकता है कि गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाएं जो ऑनलाइन मनोविज्ञान प्रयोगों को पूरा करने का विकल्प चुनती हैं, वे किसी तरह से भिन्न होती हैं जिसके बारे में हमें जानकारी नहीं होती है।

एक अनुवर्ती अध्ययन जिसमें गर्भावस्था के दौरान और जन्म देने के बाद उन्हीं महिलाओं की तुलना की गई, इनमें से कुछ विकल्पों को खारिज करता है।

यह मानने में भी एक और समस्या है कि ऑक्सीटोसिन अंतर चेहरे के पेरिडोलिया परिणाम का आधार है।

जबकि अध्ययन के लेखकों का यह तर्क कि गर्भावस्था के दौरान ऑक्सीटोसिन का जो स्तर था, प्रसवोत्तर उससे अधिक होगा, यह विचार पिछले शोध द्वारा स्पष्ट रूप से समर्थित नहीं है।

वास्तव में, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ऑक्सीटोसिन का स्तर गर्भावस्था से प्रसवोत्तर तक भिन्न नहीं होता है, प्रसवोत्तर में कम होता है, या गर्भावस्था के दौरान बढ़ता है लेकिन फिर प्रसवोत्तर अवधि के दौरान गिर जाता है। कम से कम, ये अध्ययन इस बात से सहमत प्रतीत होते हैं कि महिलाएं जो पैटर्न दिखाती हैं उसमें बहुत भिन्नता होती है।

कुछ दूसरों से अधिक

जबकि ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाओं पर केंद्रित था, हम जानते हैं कि ज्यादातर लोगों को चेहरे जैसे पैटर्न देखने का अनुभव होता है। हालाँकि, आप कितने संवेदनशील हो सकते हैं, इससे बहुत फर्क पड़ता है।

उदाहरण के लिए, अध्ययनों से पता चला है कि महिलाएं इन भ्रामक चेहरों को पुरुषों की तुलना में अधिक बार देखती हैं, जबकि असाधारण घटनाओं और धर्मों में दृढ़ विश्वास रखने वाले संशयवादियों में गैर-विश्वासियों की तुलना में इसका अधिक बार अनुभव होता हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि अकेलेपन के कारण लोगों को चेहरे जैसी आकृतियाँ अधिक बार दिखाई देने लगती हैं।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार वाले लोगों के साथ-साथ विलियम्स सिंड्रोम और डाउन सिंड्रोम जैसे आनुवंशिक विकारों वाले कुछ समूहों में फेस पेरिडोलिया का अनुभव भी कम होता है।

और हम जानते हैं कि कुछ लोग ‘फेस ब्लाइंड’ (प्रोसोपेग्नोसिक) होते हैं और उन्हें अपने परिवार और करीबी दोस्तों को भी पहचानने में कठिनाई हो सकती है। ये लोग चेहरे जैसे पैटर्न के प्रति भी कम संवेदनशीलता दिखाते हैं।

प्रारंभिक अध्ययन के रूप में, इस टीम की नई खोज कि प्रसवोत्तर महिलाओं में चेहरे पर पेरिडोलिया में वृद्धि देखी जाती है, निश्चित रूप से दिलचस्प है।

यदि चेहरे जैसे पैटर्न के प्रति संवेदनशीलता हमारे जीवनकाल में बदलती है, और अंतर्निहित हार्मोन के स्तर से भी निर्धारित होती है, तो चेहरे के पेरिडोलिया को मापना अधिक जटिल आंतरिक परिवर्तनों की निगरानी के लिए एक उपयोगी उपकरण का प्रतिनिधित्व कर सकता है जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण हो सकता है।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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