नई दिल्ली: जैसा कि कनाडा ने भारत पर सिख चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया है, कनाडा की बलूच मानवाधिकार परिषद (BHRC) ने निर्वासित बलूच मानवाधिकार कार्यकर्ता करीमा बलूच के अपहरण और कथित हत्या की “धीमी कार्रवाई” पर सवाल खड़ा किया है. हालांकि, भारत ने निज्जर की हत्या के लेकर कनाडा के आरोपों से इनकार किया है.
BHRC ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर राजनीति करने और करीमा बलोच की हत्या को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है. बलोज पाकिस्तान में आतंकवाद के आरोपों के बाद कनाडा में निर्वासन में रह रही थीं. वह कथित तौर पर बलूचिस्तानी लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करती थीं. मानवाधिकार कार्यकर्ता उनकी हत्या का आरोप पाकिस्तानी इंटेलिजेंस आईएसआई और पाकिस्तानी सेना पर लगाते है.
BHRC ने शनिवार को ट्रूडो को लिखे एक पत्र में बताया कि दिसंबर 2020 में टोरंटो में “बलूचिस्तान अधिकार कार्यकर्ता और संरक्षित व्यक्ति, करीमा बलोच की रहस्यमय मौत” पर कनाडाई सरकार की प्रतिक्रिया में कई “कथित विसंगतियां” थीं. दिप्रिंट के पास पत्र की एक प्रति है.
पत्र में कहा गया है कि करीमा बलूच का शव 22 दिसंबर, 2020 को टोरंटो द्वीप स्थित लेक ओंटारियो के पास टोरंटो पुलिस ने बरामद किया था.
निज्जर की हत्या पर कनाडाई सरकार की कार्रवाइयों के साथ “काफी विरोधाभास” दिखाते हुए, पत्र में कहा गया है कि ट्रूडो की “एक हाई-प्रोफाइल” एक्टिविस्ट करीमा बलोच की हत्या पर चुप्पी और हाउस ऑफ कॉमन्स में उनके जोशीले भाषण के बीच काफी अंतर देखने को मिल रहा है. कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या के संबंध में ट्रूडो के भाषण को काफी मीडिया कवरेज मिला था.
BHRC ने कनाडाई सरकार की स्थिरता और निष्पक्षता पर सवाल उठाया है, खासकर बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा कथित तौर पर चल रहे मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने के संबंध में.
निज्जर की 18 जून को कनाडा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उन्हें जुलाई 2020 में भारत द्वारा “आतंकवादी” घोषित कर दिया गया था.
पिछले हफ्ते कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में एक इमरजेंसी स्पीच में, ट्रूडो ने कहा कि देश की सुरक्षा एजेंसियां ”भारत सरकार के एजेंटों और निज्जर की मौत के बीच संभावित संबंधों के बीच जांच कर रही है और साथ ही इस आरोप का सक्रिय रूप से पीछा कर रही हैं”.
हालांकि भारत ने ट्रूडो के आरोपों से साफ इनकार किया है.
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‘चुनावी जुमला’
बलूच की मौत पर निष्पक्ष जांच को लेकर कनाडाई सरकार की “स्पष्ट अनिच्छा” पर बात करते हुए, BHRC के पत्र में दावा किया गया कि यह “निष्पक्ष रूप से एक चुनावी जुमला हो सकता है”.
पत्र में आरोप लगाया गया है, “कनाडा में बलूच समुदाय अपेक्षाकृत छोटा है और संसदीय चुनावों में एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए उतना ताकतवर नहीं है.”
इसमें आगे कहा गया है कि पिछले दो वर्षों में इसको लेकर सरकार को कई पत्र लिखे गए और अपीलें भी कई गई, लेकिन उसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया. इसका सीधा अर्थ है कि इसपर इसलिए विचार नहीं किया गया क्योंकि “संभवतः इससे कोई चुनावी फायदा नहीं मिलता”.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीमा बलूच पांच सालों से कनाडा में रह रही थीं. वह पश्चिमी पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र को लेकर सवाल उठाती थी और मानवाधिकार के लिए काम करती थीं. साथ ही वह पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी सरकार की मुखर आलोचक थीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवाद का आरोप लगने के बाद उन्होंने पाकिस्तान छोड़ दिया और बलूच छात्र संगठन (BSO) की पहली महिला प्रमुख बनीं. यह एक एक्टिविस्ट ग्रुप था जिसे पाकिस्तान ने प्रतिबंधित कर दिया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ग्रुप को 2013 में सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन इसका अस्तित्व जारी रहा और बलूच 2015 में इसकी अध्यक्ष बनीं.
(संपादनः ऋषभ राज)
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