(डैन लुबमैन, मोनाश विश्वविद्यालय और क्रिस्टा फिशर, साइमन राइस और जैक सीडलर, मेलबर्न विश्वविद्यालय)
मेलबर्न, 27 मई (द कन्वरसेशन) पांच में से एक ऑस्ट्रेलियाई पुरुष अपने जीवन में किसी न किसी मोड़ पर चिंता या तनाव से पीड़ित होता है। लेकिन इस स्थिति को अक्सर पूर्ण रूप से समझा नहीं जाता और न ही इसके निदान के लिए उचित प्रयास किए जाते हैं।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में चिंता विकार(एंग्जाइटी) का पता लगने की संभावना लगभग आधी होती है। कुछ लोग निडर होने और अपनी भावनाओं को छिपाने का दबाव महसूस करते हैं। अन्य लोग तनाव के लक्षणों को समझ नहीं पाते या अपनी समस्या को किस तरह व्यक्त करें, ये जान नहीं पाते।
इसके गंभीर परिणाम हैं। हमारे नवीनतम शोध से पता चलता है कि युवक तब अस्पताल का रुख कर रहे हैं जब उनके लक्षण अत्यधिक गंभीर हो जाते हैं, कुछ को तो यह भी लगता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ रहा है।
तो फिर इतने सारे पुरुष आपातकालीन सेवाओं को बुलाने की जरूरत होने तक इंतजार क्यों करते हैं, बजाय इसके कि वे पहले किसी सामान्य चिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से मदद लें?
ऐसे पुरुषों को अस्पताल जाने के लिए क्या प्रेरित करता है? हमने यह जानने के लिए विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया में 15 से 25 साल की उम्र के 694 युवकों के पैरामेडिक नोट की समीक्षा की।
युवकों ने दूसरों को मदद मांगते नहीं देखा। युवकों को साहस, शक्ति और आत्म-विश्वास को महत्व देना तथा कमजोरियों को दबाना सिखाया जाता है।
जब माता-पिता भावनाओं को प्रकट करने के बजाय लड़कों को ‘‘अपने डर का सामना करने’’ के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तो चिंता और पुरुषत्व का आमना-सामना होता है। इससे युवकों को दूसरों से मिलने वाले समर्थन और उन्हें जिस समर्थन की आवश्यकता होती है या जिसकी उन्हें अपेक्षा होती है, के बीच विसंगति पैदा होती है।
इसका मतलब यह भी है कि लड़के अपने ‘आदर्श’ पुरुष के रूप में पिता, भाई, दादा आदि पर भरोसा करके बड़े होते हैं, जिससे लड़के और पुरुष मदद लेने से कतराने लगते हैं। नतीजतन, चिंता या अवसाद का पता नहीं चल पाता और शुरुआती हस्तक्षेप के अवसर चूक जाते हैं।
हाल ही में, हमने कुछ सकारात्मक बदलाव देखे हैं। इसके तहत पुरुषों में अवसाद के बारे में जागरूकता बढ़ी है, बातचीत शुरू हुई है, मदद मांगने को सामान्य बनाया गया है और पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और संसाधनों के विकास को बढ़ावा मिला है।
जब पुरुषों को तनाव या चिंता के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो वे कई तरह की चुनौतियों का वर्णन करते हैं, जिसमें लगातार चिंतित रहना, आपा खोना और तीव्र शारीरिक लक्षण शामिल हैं। इसमें तेज हृदय गति, सांस फूलना, शरीर में दर्द, कंपन और सिरदर्द शामिल हैं।
आस्ट्रेलिया की एक जानी मानी हस्ती जैक स्टीली ने एक पॉडकॉस्ट में अपनी एंग्जाइटी को लेकर बात की।
उन्होंने बताया, ‘‘ मुझे नहीं पता था कि एंग्जाइटी क्या होती है। मुझे तो लगता था कि मैं तो एंग्जाइटी का एकदम उलट हूं। ये कुछ ऐसा है कि आपका पूरा शरीर सुन्न हो जाता है… मेरा गला घुटने लगता था, ऐसा लगता था कि मैं एकदम अकेला हूं, कोई मेरी मदद नहीं कर सकती। आपको सच में ही लगता है कि दुनिया खत्म होने वाली है और कोई रास्ता नहीं है।’’
ये शारीरिक लक्षण पुरुषों में आम हैं, लेकिन इन्हें एंग्जाइटी या पैनिक अटैक के रूप में पहचानने के बजाय अक्सर अनदेखा किया जा सकता है। हमारे शोध में पाया गया है कि, जब इन लक्षणों पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो ये लक्षण आम तौर पर बदतर हो जाते हैं और अधिक से अधिक संदर्भों में उभर कर सामने आते हैं।
तनावग्रस्त पुरुष एम्बुलेंस को कॉल क्यों करते हैं?
हमारे नए अध्ययन में पुरुषों के तनाव को अनदेखा किए जाने के परिणामों की जांच की गई। सबसे पहले, हमने युवकों द्वारा अनुभव की जाने वाली चिंता के प्रकारों की पहचान करने और उनका वर्णन करने के लिए राष्ट्रीय एम्बुलेंस निगरानी प्रणाली के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
संकट में घिरे और सहयोग की कमी के कारण, कई युवा एम्बुलेंस की ओर रुख करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए अब एम्बुलेंस के लिए कॉल करने वाले 10 प्रतिशत युवकों में तनाव या चिंता की समस्या है, जो अवसाद और मनोविकार का रूप ले लेती है।
(द कन्वरसेशन) शफीक नरेश
नरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.