नई दिल्ली: दक्षिण एशिया में तेजी से कमजोर होती अर्थव्यवस्थाओं – खासतौर पर श्रीलंका के दिवालिया होने और बांग्लादेश के विश्व बैंक के दरवाजे पर दस्तक देने– को देखते हुए भूटान अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कई ‘कदम’ उठा रहा है, उनमें से एक हिमालयी साम्राज्य को पूरी तरह पर्यटन के लिए फिर से खोलना है. दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में भूटान के विदेश मंत्री ने यह बात कही.
दोरजी ने कहा, हालांकि भूटान की अर्थव्यवस्था अन्य देशों की तुलना में ‘छोटी’ है. लेकिन कोविड -19 ने इसे भी काफी प्रभावित किया है. मार्च 2020 में महामारी की शुरुआत के बाद से, थिम्पू ने सख्त सीमा नियंत्रण उपायों और सुरक्षा प्रोटोकॉल को लागू किया, जिसके चलते पर्यटन, निर्माण और विनिर्माण जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्र ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ हुए.
दोरजी बताते हैं, ‘पर्यटन सेक्टर सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ जो धीरे-धीरे अपने संबद्ध क्षेत्रों जैसे परिवहन, निर्माण और विनिर्माण क्षेत्रों में फैल गया. भूटान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है।’ वह आगे कहते हैं, ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की संभावना को देखते हुए हमें सबसे खराब स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, सार्वजनिक ऋण में बढ़ोतरी और मुद्रास्फीति सरकार के लिए प्रमुख चिंताएं हैं.
भूटान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहे टूरिज्म सेक्टर पर पड़े नकारात्मक प्रभाव ने भी बड़े पैमाने पर नौकरियों का नुकसान किया है.
उन्होंने कहा कि विदेशों से लौटने वाले भूटानियों की बढ़ती संख्या, कर्मचारियों के विस्थापन और रोजगार बाजार में नए लोगों की बढ़ती संख्या ने देश में बेरोजगारी की स्थिति को और बढ़ा दिया है.
वह बताते हैं कि 2020 में भूटान में बेरोजगारी ने 5 फीसदी के शिखर को छू लिया था, जबकि युवा बेरोजगारी 22.6 फीसदी तक पहुंच गई.
दोरजी ने कहा, ‘हालांकि हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, लेकिन हम इस स्तर पर एक आरामदायक स्थिति में हैं. चूंकि भूटान कम से कम एक वर्ष की आवश्यक आयात की लागत को पूरा करने के लिए सवैंधानिक जरूरत के मुताबिक भंडार बनाए रखने में सक्षम है.’
उनके मुताबिक, जितना संभव हो सके देश आयात कम करने के लिए स्थानीय उत्पादों के इस्तेमाल को तेजी के साथ बढ़ावा दे रहा है.
दोरजी के अनुसार, थिम्फू नगुलट्रम (भूटान की मुद्रा) के मुकाबले अमरीकी डालर के तेजी से बढ़ने को लेकर भी चिंतित है. इससे मुद्रास्फीति और ऋण सेवा की लागत में वृद्धि हुई है.
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा आर्थिक स्थिति के बने रहने से व्यापक आर्थिक अस्थिरता पैदा होगी जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था को उच्च मुद्रास्फीति और लगातार आर्थिक मुद्दों का सामना करना पड़ेगा.’
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भूटान और भारत हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट
दोरजी ने कहा कि देश जहां मुश्किल आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहा है, वहीं उसे भारत का समर्थन मिल रहा है.
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘ भारत सरकार द्वारा समर्थित, देश के लिए राजस्व सृजन का मुख्य स्रोत रहे हाइड्रो पॉवर सेक्टर ने घरेलू राजस्व में कमी को दूर करने में बहुत बड़ी राहत दी है.’
लेकिन उन्होंने उन परियोजनाओं के बारे में भी बात की जो अब तक अटकी हुई हैं.
पिछले महीने भूटान के आर्थिक मामलों के मंत्री लोकनाथ शर्मा की हाल ही में भारत की यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने आपस में हाइड्रो पॉवर कोऑपरेशन, बाजार की स्थितियों और बढ़ते ऊर्जा संकट के कारण उन्हें फिर से कैसे नियोजित किया जाए, इस पर चर्चा की.
दोरजी ने कहा, ‘खोलोंगछू जवाइंट वैंचर कंपनी को लेकर दोनों पक्ष जेवी कंपनी को बंद करने की दिशा में काम करने के लिए सहमत हुए क्योंकि इसने उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया’
वह बताते हैं, ‘खोलोंगछु के लिए उपयुक्त कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर चर्चा करने और समग्र हाइड्रो पॉवर कोऑरेशन की समीक्षा करने के लिए जल्द ही भूटान में दो देशों के बिजली सचिवों के बीच बैठक की उम्मीद है.’
2014 में अपनी भूटान यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 600 मेगावाट की खोलोंगछु जलविद्युत परियोजना की आधारशिला रखी, जो भारत के एसजेवीएन लिमिटेड और भूटान के ड्रक ग्रीन पावर कॉरपोरेशन का एक ज्वाइंट वैंचर है. 600 मेगावाट की खोलोंगछु हाइड्रोइलैक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए कन्सेशन एग्रीमेंट पर 29 जून 2020 को वर्चुअली हस्ताक्षर किए गए थे.
उन्होंने कहा, ‘पुणत्संगछु-आई हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (HEP) पर, भूटानी सरकार फिलहाल बैराज और बांध विकल्पों दोनों का अध्ययन कर रही भारत सरकार की इंडिपेंडेट कमेटी के निष्कर्षों का इंतजार कर रही है.’
भारत-भूटान हाइड्रोपॉवर कूपरेशन 1961 में जलधाका समझौते पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुआ था.
हाइड्रोपॉवर की बिक्री भूटान के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. यह सबसे महत्वपूर्ण निर्यात वस्तु भी है, जो देश के कुल निर्यात में लगभग 63 प्रतिशत का योगदान करती है.
चीन के साथ संबंध, सीमा वार्ता
पिछले अक्टूबर में चीन और भूटान ने तीन चरणों वाले रोडमैप के आधार पर अपने बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को निपटाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो नई दिल्ली की चिंता का विषय है.
मौजूदा समय में वार्ता की स्थिति पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए मंत्री दोरजी ने कहा कि चूंकि बातचीत चल रही है, इसलिए वह विवरण नहीं दे पाएंगे. लेकिन कहा कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की अनुपस्थिति के बावजूद संबंध काफी गर्मजोशी भरे और सौहार्दपूर्ण हैं.’
वह बताते हैं, ‘भूटान और चीन आपसी हित और सरोकार के मुद्दों पर निकटता से जुड़े हैं. दोनों देशों ने कोविड -19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक-दूसरे का साथ दिया था. सद्भावना और दोस्ती के चलते कोविड -19 के खिलाफ भूटान की लड़ाई में सहयोग देने के लिए चीनी सरकार ने टीके, पीपीई किट और अन्य मेडिकल स्पलाई दान की थी.’
भूटान और चीन 1984 से आपस में 477 किलोमीटर की सीमा तय करने के मुद्दे पर चर्चा करते आ रहे हैं. इसके लिए अब तक 24 दौर की सीमा वार्ता और विशेषज्ञ समूह के स्तर पर 10 दौर की बैठक की जा चुकी हैं.
डोकलाम क्षेत्र पर चीनी दावों के कारण बीजिंग और थिम्पू के बीच सीमा वार्ता भारत के लिए चिंता का विषय है.
भूटान अब तक, चीनियों को दूर रखने में सक्षम रहा है और नई दिल्ली और बीजिंग के बीच एक संतुलन बनाए रखा है.
पिछले महीने भारतीय सेना प्रमुख मनोज पांडे ने भूटान का दौरा किया. उन्होंने भूटानी राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से मुलाकात की और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की.
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