(यी यांग, जॉर्ज डिज्नी और कर्स्टन डीन, मेलबर्न विश्वविद्यालय)
मेलबर्न, 30 मई (द कन्वरसेशन) हमारे अध्ययन से पता चलता है कि दिव्यांगता से ग्रस्त लोग उन जांच (स्क्रीनिंग) कार्यक्रमों से वंचित रह जाते हैं, जिनसे प्रारंभिक अवस्था में ही कैंसर का पता लगाने में मदद मिल सकती है तथा निदान के बाद उनके बचने की संभावना कम होती है।
कुल मिलाकर, इसका मतलब यह है कि दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों की कैंसर से मरने की आशंका, बिना दिव्यांगता वाले लोगों की तुलना में अधिक है।
स्क्रीनिंग कार्यक्रम के तहत विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों या बीमारियों के लिए स्वस्थ लोगों की आबादी की जांच की जाती हैं। ये कार्यक्रम विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के लिए व्यापक रूप से उपलब्ध हैं, जिनमें कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां शामिल हैं।
हम कैंसर को नियंत्रित करने के वर्तमान तरीकों के मूल में व्याप्त भारी असमानता को दर्शाने वाले साक्ष्य एकत्र करते हैं।
लेकिन ऐसे स्क्रीनिंग कार्यक्रमों और कैंसर सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने के तरीके हैं, जिनका उपयोग दिव्यांगता से ग्रस्त कई लोगों द्वारा नियमित रूप से किया जाता है।
हमने क्या किया और क्या पाया
हमने दुनियाभर में किए गए 73 अध्ययनों के साक्ष्यों की समीक्षा की। इन अध्ययनों में दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों और बिना दिव्यांगता वाले लोगों में कैंसर के नतीजों की तुलना की गई।
आइए कैंसर की जांच से संबंधित कार्यक्रम से शुरुआत करें, जो कैंसर से होने वाली मौतों को रोकने का एक तरीका है। जांच से कैंसर के शुरुआती लक्षण का पता चल जाता है या अगर समय रहते पता चल जाए तो इसे समस्या बनने से रोका जा सकता है। प्रारंभिक अवस्था में पता लगने का मतलब आमतौर पर अधिक उपचार विकल्प और अच्छे परिणाम की अधिक संभावना होती है।
हालांकि, हमारी समीक्षा में पाया गया कि दुनियाभर में दिव्यांगता से ग्रस्त लोग इन जीवन रक्षक जांच कार्यक्रमों से वंचित रह रहे हैं, जिनमें स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और आंत्र कैंसर भी शामिल हैं।
वास्तव में, हमारी समीक्षा में कुछ अध्ययनों से पता चला है कि दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों में इन कैंसरों का निदान उन्नत चरण में होने की अधिक संभावना है।
एक बार निदान हो जाने के बाद भी दिव्यांगत से ग्रस्त लोग नुकसान में ही रहते हैं। हमने पाया कि दिव्यांगता रहित कैंसर रोगियों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर कम है।
ऐसा देरी से निदान और उपचार की अनुपलब्धता के कारण हो सकता है और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए आगे और शोध की आवश्यकता होगी। लेकिन हमारे पास कुछ अध्ययनों से प्रासंगिक सबूत हैं।
बौद्धिक दिव्यांगता वाले लोगों में कैंसर से होने वाली मौतों पर ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि एक तिहाई से अधिक लोगों में कैंसर का निदान आपातकालीन विभाग में जाने के बाद हुआ। अध्ययन में शामिल लगभग आधे लोग कैंसर का निदान होने के समय वे पहले से ही उन्नत अवस्था में थे।
निदान से लेकर उपचार तक, वैश्विक साक्ष्य दर्शाते हैं कि दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में भी स्थिति अलग नहीं है और इससे लोगों की जान जा रही है।
पिछले शोध में हमने पाया कि कैंसर ऑस्ट्रेलियाई लोगों में समय से पहले होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। यह दिव्यांग लोगों में बिना दिव्यांगता वाले लोगों की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अतिरिक्त मौतों का कारण है।
ऐसा क्यों हो रहा है?
हमें स्पष्ट रूप से दिव्यांग लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा में सुधार की खातिर और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। दिव्यांग लोगों के गरीब होने और ऑस्ट्रेलिया की बाकी आबादी की तुलना में वंचित परिस्थितियों में रहने की आशंका अधिक होती है, जिससे उन्हें कैंसर का खतरा अधिक हो सकता है।
हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं?
कैंसर नियंत्रण को समावेशी बनाने तथा दिव्यांग लोगों के लिए कारगर बनाने की खातिर हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है:
रोकथाम – सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप, जैसे धूम्रपान छोड़ना या स्वस्थ जीवन शैली कार्यक्रम, दिव्यांग लोगों के साथ मिलकर और उनके अनुरूप कार्यक्रम तैयार किए जाने की आवश्यकता है।
शीघ्र पहचान – राष्ट्रीय जांच कार्यक्रमों के वास्ते रणनीति विकसित करनी चाहिए और दिव्यांग लोगों को शामिल करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
हर किसी की जरूरतें अलग-अलग होती हैं। हमें दिव्यांग लोगों को उनकी देखभाल के बारे में बातचीत में शामिल करने और उनका समर्थन करने की जरूरत है ताकि वे उचित निर्णय ले सकें।
(द कन्वरसेशन)
देवेंद्र अविनाश
अविनाश
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