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सीओपी28 : राष्ट्र जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने के ऐतिहासिक समझौते के करीब पहुंचे

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दुबई, 13 दिसंबर (भाषा) दुबई में जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के उपायों पर लगभग दो सप्ताह की बातचीत के बाद बुधवार को कई देश ‘जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करने’ के ऐतिहासिक समझौते के बेहद करीब पहुंच गए हैं।

हालांकि, भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने कोयले को लक्षित करने पर कड़ा विरोध जताया।

पहले के प्रस्ताव में “जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से बंद करने” की बात कही गई थी जिसकी ‘ग्लोबल साउथ’ के कई देशों और सऊदी अरब जैसी तेल-निर्भर अर्थव्यवस्थाओं ने कड़ी आलोचना की थी।

बुधवार को सुबह जारी दुबई जलवायु वार्ता के निर्णय संबंधी मसौदे में तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए ‘प्लेनेट-वार्मिंग-ग्रीनहाउस गैस’ उत्सर्जन में “गहरी, तीव्र और निरंतर” कटौती का आह्वान किया गया।

इसमें कहा गया है कि देशों को पेरिस समझौते और उनकी विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित’ अपने तरीके से करना चाहिए। यदि इस फैसले पर देश अपनी संतुष्टि जाहिर करते हैं तो समझौते के मसौदे को बुधवार को अंतिम मतदान के लिए रखा जाएगा।

मसौदा समझौते में देशों से कोयला आधारित बिजली के बेरोकटोक उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की दिशा में तेजी लाने का आग्रह किया गया, जो 2021 के ग्लासगो समझौते से एक मामूली कदम ऊपर है।

पिछले मसौदे के विपरीत, इसमें ‘नए और निर्बाध कोयला बिजली उत्पादन की अनुमति को सीमित करने’ का जिक्र नहीं है, जो भारत और चीन जैसे अत्यधिक कोयला-निर्भर देशों की ओर से एक मजबूत प्रतिक्रिया का संकेत देता है।

हालांकि, 21 पन्नों के दस्तावेज में तेल और गैस का भी कोई उल्लेख नहीं है।

वैश्विक स्तर पर उत्सर्जित होने वाली कुल कार्बन डाइऑक्साइड का 40 फीसदी हिस्सा कोयले से उत्सर्जित होता है और शेष कार्बन डाइऑक्क्साइड का उत्सर्जन तेल और गैस से होता है।

भाषा साजन मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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