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Sunday, 22 December, 2024
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‘करीबी दोस्त’- भारत का श्रीलंका के नए राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को समर्थन का वादा, ‘दखल’ से इनकार

पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफा देने के कुछ ही दिनों बाद रानिल विक्रमसिंघे को श्रीलंका का नया राष्ट्रपति नामित किया गया है. यह सब एक घोर आर्थिक संकट की वजह से आवश्यक कीमतों में आई जबरदस्त बढ़ोतरी के बाद महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों की वजह से हुआ है.

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नई दिल्ली: श्रीलंका की संसद द्वारा बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को अपना नया राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही भारत ने कहा है कि वह इस देश के प्रति ‘समर्थक’ बना रहेगा और इस द्वीपीय राष्ट्र की ‘स्थिरता और इसकी आर्थिक स्थिति में सुधार’ के लिए मदद करेगा.

एक घनघोर आर्थिक संकट, जिसमें घंटों तक होने वाली बिजली कटौती के अलावा आवश्यक वस्तुओं की कीमतें काफी बढ़ गई हैं, के बीच जनता द्वारा किये जा रहे लगातार विरोध के कई महीनों के बाद और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफा देने के कुछ ही दिनों उपरांत विक्रमसिंघे को श्रीलंका का आठवां कार्यकारी राष्ट्रपति नामित किया गया था.

राजपक्षे करीब एक हफ्ते पहले मालदीव भाग गए थे और फिर वहां से उन्होंने सिंगापुर में शरण ली है.

श्रीलंका स्थित भारतीय उच्चायोग ने एक बयान जारी कर कहा है, ‘श्रीलंका की संसद ने, श्रीलंका के संविधान के प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए, आज महामहिम श्री रानिल विक्रमसिंघे को श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में चुना है.‘

इसमें आगे कहा गया है, ‘श्रीलंका के एक करीबी दोस्त और पड़ोसी एवं एक साथी लोकतंत्र के रूप में, हम लोकतांत्रिक साधनों और मूल्यों, स्थापित लोकतांत्रिक संस्थानों और संवैधानिक ढांचे के माध्यम से स्थिरता और आर्थिक सुधार के लिए श्रीलंका के लोगों के मुताबिक अपना समर्थन देना जारी रखेंगे.’

इससे पहले पूरे दिन के दौरान भारत इन दावों का खंडन करने में व्यस्त रहा कि वह राष्ट्रपति की नियुक्ति के संबंध में श्रीलंका के राजनीतिक नेताओं को प्रभावित करने के प्रयास कर रहा है.

भारतीय उच्चायोग ने कहा, ‘वे स्पष्ट रूप से किसी की कल्पना की उपज हैं. यहां यह दोहराया जाता है कि भारत लोकतांत्रिक साधनों और मूल्यों, स्थापित संस्थानों के साथ-साथ संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार श्रीलंका के लोगों द्वारा अपनी आकांक्षाओं की प्राप्ति का समर्थन करता है, तथा किसी भी अन्य देश के आंतरिक मामलों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करता है.’

विक्रमसिंघे इस राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें श्रीलंकाई सदन के सभी 225 सदस्य मतदान के लिए पात्र थे, के लिए होड़ में बने शीर्ष तीन उम्मीदवारों में शामिल थे.

अन्य दो उम्मीदवारों में राजपक्षे की श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के सांसद दुल्लास अल्हापेरुमा और नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) की नेता अनुरा कुमारा दिसानायके शामिल थे.

देश के मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा ने चुनाव से सिर्फ एक दिन पहले अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी.


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‘विभाजन का दौर अब खत्म हुआ’

विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति के रूप में तत्काल कदम बढ़ाते हुए सभी नेताओं से श्रीलंका में आर्थिक और सामाजिक-राजनीतिक संकट को हल करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, ‘लोग हमसे पुरानी राजनीति की चाह नहीं कर रहे हैं. मैं विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे और मैत्रीपाला सिरिसेना सहित अन्य विपक्षी दलों से एक साथ मिलकर काम करने का अनुरोध करता हूं.‘

विक्रमसिंघे ने एकता की अपील करते हुए कहा, ‘हम पिछले 48 घंटों के दौरान विभाजित थे. वह दौर अब समाप्त हो गया है. हमें अब एक साथ काम करना होगा.’

इससे पहले, मंगलवार को, विपक्षी नेता प्रेमदासा ने भी भारत से श्रीलंका की नई सरकार का समर्थन करने का आग्रह किया था.

इस बीच, स्थानीय मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि विक्रमसिंघे की नियुक्ति जनता के गुस्से को पूरी तरह से शांत नहीं कर सकी है. इन रिपोर्टों में कुछ प्रदर्शनकारियों को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि संसद ने ‘लोगों की इच्छा के विरुद्ध निर्णय लिया है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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