नई दिल्ली: चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) दशकों से तिब्बती भाषा को दबाने और उसे खत्म करने की कोशिश कर रही है. वो औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए मजबूर करके और शिक्षकों को गिरफ्तार करके ऐसा कर रही है. एक मीडिया रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है.
800,000 से भी ज्यादा तिब्बती छात्रों को जबरन चीनी औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों में डाल दिया गया है. तिब्बत राइट्स कलेक्टिव ने तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि इन स्कूलों में पढ़ाने के लिए मंदारिन भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है और यहां बच्चों को राजनीतिक रूप से प्रेरित किया जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा में हस्तक्षेप करते हुए तिब्बतियों के खिलाफ शी जिनपिंग के क्रूर अभियान का एक अहम हिस्सा भी शामिल किया गया है जिसमें उनकी पहचान को बदलने की कोशिश की गई है. आगे पुष्टि करता है कि सीसीपी नीतियां तिब्बती भाषा के अस्तित्व के लिए गंभीर जोखिम में डाल रहा है.
तिब्बती समाज के सभी वर्ग अपनी भाषा और संस्कृति के दमन का कड़ा विरोध करते रहे हैं.
रिपोर्ट में बीबीसी का हवाला देते हुए कहा है कि 2010 में चीन में कम से कम 1,000 जातीय तिब्बती छात्रों ने अपनी संस्कृति और भाषा के दमन का विरोध किया था.
छात्र अपनी शिक्षा नीति में बदलाव और तिब्बती भाषा को सीमित करने से नाराज थे. उनका कहना था कि सभी पाठ्यपुस्तकें , विषय तिब्बती और अंग्रेजी भाषा की कक्षाओं के अलावा मंदारिन चीनी में होंगे.
इस साल की शुरुआत में फरवरी में यमदा में बच्चों को तिब्बती भाषा सिखाने के बाद विश्वविद्यालय के एक छात्रा चोएडॉन को गिरफ्तार किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चोएडॉन का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और न ही अधिकारियों के पास छात्रा द्वारा किए गए किसी भी गलत काम का कोई सबूत था.
ऐसा ही एक और मामला 01 अगस्त 2021 को सामने आया था जब तिब्बती शिक्षक रिचेन की को उनके घर पर हिरासत में लिया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय दबाव समेत एक लंबे अभियान के बाद, रिनचेन की को रिहा कर दिया गया था और इस साल 24 अप्रैल को घर वापस भेज दिया था.
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