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Saturday, 21 December, 2024
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चीन इस्लाम के ‘चीनीकरण’ की पंचवर्षीय योजना जल्द ही जारी करने जा रहा है

चीन में अल्पसंख्यक मुस्लिम संस्कृति व परंपराओं को कम्युनिस्ट पार्टी के समाजवादी सांचे में ढालने की राष्ट्रपति शि जिनपिंग की नीति ने आक्रामक तेवर अपनाया.

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नई दिल्ली: चीन में अल्पसंख्यक मुस्लिम संस्कृति और परंपराओं को कम्युनिस्ट पार्टी के समाजवादी सांचे में ढालने की राष्ट्रपति शि जिनपिंग की नीति ने आक्रामक तेवर अपना लिया है.

सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि चीन जल्द ही इस्लाम के ‘चीनीकरण’ का खाका जारी करने वाला है. इसने बीजिंग और शंघाई समेत आठ प्रान्तों और क्षेत्रों के इस्लामिक संगठनों को कहा है कि वे मुस्लिम प्रथाओं और मान्यताओं को कम्युनिस्ट तौर-तरीके के मुताबिक ढाल लें.

चीन की इस पहल की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आलोचना हो रही है. गौरतलब है कि अरब जगत ने रहस्यमय चुप्पी साध रखी है.

खाका क्या है?

‘ग्लोबल टाइम्स’ की रिपोर्ट बताती है कि इस खाके को अगले पांच वर्षों में लागू कर दिया जाएगा. पश्चिमी मीडिया के मुताबिक, यह खाका एक कानून की शक्ल में है, ‘जिसमें स्पष्ट किया गया है कि इस्लाम के चीनीकरण के लिए प्रारम्भिक तौर पर क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं. ‘यह कदम जिनपिंग के राज में धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर उइघर मुसलमानों के अधिकारों और प्रथाओं के खिलाफ (कम-से-कम 2014 से) चलाई जा रही बड़ी मुहिम का हिस्सा है. चीन का दावा है कि ये समुदाय धार्मिक उग्रवाद को अपना सकता है, और वह इस क्षेत्र में आतंकवाद को पनपने का मौका नहीं देना चाहता.

‘अल जजीरा’ की एक रिपोर्ट कहती है, ‘चीन के कुछ हिस्सों में इस्लाम पर रोक लगा दी गई है. नमाज़ अदा करते हुए, रोज़ा रखते हुए, दाढ़ी बढ़ाते हुए किसी मर्द को, या हिजाब पहनते हुए अथवा अपने मजहब की खातिर सिर ढकते हुए किसी महिला को पाया गया तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है.’

पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के एक पैनल ने आशंका जाहिर की थी कि 10 लाख उइघरों को सामूहिक हिरासत शिविरों में, जिसे चीन ‘पुनःशिक्षा शिविर’ कहता है, कैद किया गया है. इसकी विश्वव्यापी निंदा की गई थी. चीन ने उइघर मुसलमानों के इलाके झिनजियांग में संयुक्त राष्ट्र के दल का स्वागत किया था, ताकि वह हालात का खुद जायजा ले सके. लेकिन उस क्षेत्र के कई उइघर मुसलमानों के जो बयान आए थे, उन्होंने चीनी सरकार की कार्रवाइयों पर सवाल खड़े किए थे.

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

दुनिया भर में लोगों ने कथित ‘चीनीकरण’ समेत उइघर मुसलमानों के मानवीय अधिकारों के मामले में चीन सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर सवाल उठाए हैं. ‘द वर्ल्ड उइघर कांग्रेस’ ने, जो खुद को उइघर मुसलमानों के अधिकारों की पैरवी करने वाला संगठन मानता है, सोमवार को ट्वीट किया कि चीन का ताज़ा कदम दरअसल ‘इसकी मौजूदा नीतियों का ही विस्तार है.’ संगठन का कहना है कि इस नीति का लक्ष्य उइघर मुसलमानों का ‘सम्पूर्ण विलय’ और ‘धार्मिक आधार पर उत्पीड़न’ है.

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने ट्वीटर पर कहा है कि पिछले साल उइघर बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी और इस्लाम के चीनीकरण का फैसला चीन सरकार की ‘सोशल इंजिनियरिंग मुहिम’ का ही एक हिस्सा है. अमेरिका स्थित ‘फिजिसियन्स फॉर ह्यूमन राइट्स’ में अनुसंधान और पड़ताल निदेशक फेलिम काइन ने कहा है कि ‘चीन सरकार इस्लाम को एक प्रकार का मानसिक रोग मान रही है.’

लेकिन इस्लाम के स्वघोषित रक्षक और प्रवर्तक माने जाने वाले खाड़ी देश चीन का विरोध करने में विफल रहे हैं. ‘ऑर्गनाइजेसन फॉर इस्लामिक कोऑपरेशन’ (ओआइसी) ने, जो खुद को संयुक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतरशासकीय संगठन बताता है, 10 दिसंबर को कहा कि वह चीन में हालात से वाकिफ है. उसने कबूल किया कि उइघरों को ‘उन सांस्कृतिक मूल्यों और प्रथाओं का पालन करने पर मजबूर किया जा रहा है, जो उनकी अपनी धार्मिक आस्थाओं के विपरीत हैं.’ लेकिन इसके बाद ओआईसी ने चीन के कदमों पर कोई बयान नहीं जारी किया है.

पाकिस्तान ने भी चीन के कदमों का विरोध नहीं किया है. हालांकि, इसके मजहबी मामलों के मंत्री नूरुल हक़ क़ादरी ने पिछले साल चीनी राजदूत याओ झिंग से इस मामले पर पूछताछ की थी और चीन ने ज़ोर देकर कहा था कि वह उइघर मुसलमानों को पूरी धार्मिक आज़ादी दे रहा है. प्रधानमंत्री इमरान खान ने मंगलवार को एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें चीन में ‘उइघर मुसलमानों की वास्तविक हालत के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है.’ उनसे जब प्रतिक्रिया देने का आग्रह किया गया तो उन्होंने कहा कि वे इस मसले को ‘चीन के साथ अलग तरीके से निबटाएंगे.’

पाकिस्तानी शोधकर्ता सरमद इशफाक़ ‘फ़ॉरेन पॉलिसी जर्नल’ में लिख चुके हैं कि ‘सऊदी अरब, यूएई, कज़ाखिस्तान, और पाकिस्तान जैसे देशों को भी चीनी निवेश और व्यापार के जरिए अरबों डॉलर खो देने का ही नहीं, बल्कि अमेरिकी दादागीरी का प्रतिकार करने में एक बड़े सहयोगी को भी गंवा देने का डर सताता है.’

‘द न्यू यॉर्क टाइम्स’ में हाल में एक तुर्क लेखक और पत्रकार मुस्तफा अकयोल ने लिखा कि ‘चीन की ‘पुनःशिक्षा’ नीति मुस्लिम लोगों और उनके मजहब इस्लाम पर बड़ा हमला है. इसके बावजूद मुस्लिम जगत कुल मिलाकर खामोश है.’

वैसे, केवल झिनजियांग का उइघर समुदाय ही सत्ता के हाथों उत्पीड़न नहीं झेल रहा है. चीन ने तिब्बतियों, ईसाइयों, और हुई लोगों के खिलाफ भी तानाशाही नीति अपना रखी है.

‘ग्लोबल टाइम्स’ खबर दे चुका है कि सितंबर 2017 में, बौद्ध, ताओ, इस्लाम, कैथोलिक और ईसाई समेत पांच धर्मों के समुदायों के नेताओं ने चीन सरकार को आश्वासन दिया था कि वे अपने-अपने धर्म का ‘चीनीकरण’ कर देंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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