नई दिल्ली: बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी ने रविवार को कनाडा की लिबरल पार्टी के नेतृत्व चुनाव में जीत हासिल की और अब वह उत्तरी अमेरिकी देश के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.
पूर्व केंद्रीय बैंकर ने लिबरल पार्टी के चुनाव में शानदार जीत दर्ज की, जहां उन्हें 85.9 प्रतिशत वोट मिले, जबकि पूर्व उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड को केवल 8 प्रतिशत वोट मिले.
कार्नी को पंजीकृत मतदाताओं से 1,31,674 वोट मिले, जबकि फ्रीलैंड को 11,134 वोट मिले. 59 वर्षीय कार्नी के चुनाव से यह साफ हो गया कि लिबरल पार्टी जस्टिन ट्रूडो युग से पूरी तरह अलग दिशा में आगे बढ़ रही है. दिलचस्प बात यह है कि कार्नी ने अब तक कभी संसद सदस्य के रूप में कोई चुनाव नहीं लड़ा है.
फ्रीलैंड के पिछले दिसंबर में अपने पदों से इस्तीफा देने के बाद, मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे का रास्ता भी कुछ हफ्तों बाद साफ हो गया था.
अपने विजय भाषण में, प्रधानमंत्री-नामित कार्नी ने अपनी सरकार के सामने दो प्रमुख चुनौतियों पर जोर दिया—अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ का खतरा और आगामी आम चुनाव में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, कनाडा के विपक्षी नेता पियरे पोइलिव्रे को हराना.
उन्होंने कहा, “डॉनल्ड ट्रंप ने हमारे उत्पादों, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारी रोज़ी-रोटी पर अनुचित टैरिफ लगाए हैं. वह कनाडाई परिवारों, श्रमिकों और व्यवसायों पर हमला कर रहे हैं और हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे—कभी नहीं, बिल्कुल नहीं.”
ट्रंप के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाते हुए कार्नी ने कहा, “डॉनल्ड ट्रंप सोचते हैं कि वह हमें ‘डिवाइड एंड कॉन्कर’ (फूट डालो और राज करो) की नीति से कमजोर कर सकते हैं. पियरे पोइलिव्रे की योजना हमें बांट देगी और हमें हारने के लिए तैयार कर देगी. क्योंकि जो व्यक्ति डोनाल्ड ट्रंप की पूजा करता है, वह उनके सामने झुकेगा, उनके खिलाफ खड़ा नहीं होगा.”
उन्होंने पोइलिव्रे पर निशाना साधते हुए कहा कि विपक्षी नेता की “नारेबाजी समाधान नहीं है” और उनका गुस्सा “कार्रवाई नहीं” है.
पिछले कुछ वर्षों से पियरे पोइलिव्रे के नेतृत्व में कंज़र्वेटिव पार्टी जनमत सर्वे में आगे चल रही थी, खासकर ट्रंप के टैरिफ की धमकी के बाद.
इस साल जनवरी में लिबरल पार्टी का समर्थन गिरकर 20 प्रतिशत तक पहुंच गया था, जबकि कंज़र्वेटिव पार्टी को 44 प्रतिशत समर्थन मिल रहा था. हालांकि, 6 जनवरी को ट्रूडो के इस्तीफे के बाद लिबरल पार्टी को बढ़त मिली और अब अगर चुनाव होते हैं, तो वे लगभग 30 प्रतिशत वोट हासिल करने की स्थिति में हैं.
रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रूडो के मंत्रिमंडल में कार्नी को वित्त मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन फ्रीलैंड को पार्टी नेतृत्व से हटने के लिए कहे जाने के बाद उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया.
फ्रीलैंड ने इस दावे को खारिज किया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कुछ ही हफ्तों में ट्रूडो का इस्तीफा भी हुआ. वह ट्रूडो सरकार की प्रमुख सहयोगी थीं और ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान ‘टीम कनाडा’ की रणनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी थीं.
हालांकि, लंबे समय तक सरकार का हिस्सा रहने के बावजूद, वह पार्टी के केवल 8 प्रतिशत मतदाताओं को ही यह भरोसा दिला सकीं कि वह अगला आम चुनाव जीतने के लिए सही नेता हो सकती हैं.
मार्क कार्नी कौन है?
उत्तरी क्षेत्र के दूरस्थ शहर फोर्ट स्मिथ (नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज़) में जन्मे मार्क कार्नी का पालन-पोषण अल्बर्टा के एडमोंटन में हुआ. एक हाई स्कूल प्रिंसिपल के बेटे, कार्नी ने स्कॉलरशिप पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, जहां उन्होंने आइस हॉकी भी खेला. इसके बाद, 1995 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री ली.
उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक गोल्डमैन साच्स में काम किया, जिसके बाद 2003 में बैंक ऑफ कनाडा में डिप्टी गवर्नर के रूप में शामिल हुए. 2007 में, उन्हें बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर नियुक्त किया गया, ठीक उसी समय जब वैश्विक वित्तीय संकट का दौर शुरू हुआ.
इस संकट के कारण कनाडा गहरी मंदी में चला गया, लेकिन कार्नी के नेतृत्व में कनाडा के केंद्रीय बैंक ने ऐसे उपाय किए, जिससे देश को इस संकट के सबसे बुरे प्रभावों से बचने में मदद मिली. उनके प्रभावी नेतृत्व के कारण, तत्कालीन ब्रिटिश चांसलर ऑफ एक्सचेकर जॉर्ज ऑसबोर्न ने 2013 में कार्नी को बैंक ऑफ इंग्लैंड का गवर्नर नियुक्त किया. वे 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना के बाद इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले गैर-ब्रिटिश नागरिक थे.
अगले सात सालों तक, कार्नी ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभावों और यूरोपीय संघ (EU) से ब्रिटेन के बाहर निकलने के आर्थिक परिणामों से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 2020 में, जब ब्रिटेन ने आधिकारिक रूप से ईयू से बाहर होने की प्रक्रिया पूरी की, उसी साल उन्होंने बैंक ऑफ इंग्लैंड छोड़ दिया.
लंदन में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्हें कई बार ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ी और बैंक ऑफ इंग्लैंड के मात्रात्मक सहजता (quantitative easing) कार्यक्रमों को फिर से शुरू करना पड़ा ताकि ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने के आर्थिक प्रभावों को कम किया जा सके.
उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के साथ भी काम किया है. 2011 से 2018 तक, वह फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड के अध्यक्ष रहे—यह संस्था जी20 देशों द्वारा 2009 में स्थापित की गई थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर वित्तीय नियामकों के बीच समन्वय और निगरानी रखना था.
2019 में, कार्नी को संयुक्त राष्ट्र का विशेष दूत (स्पेशल एनवॉय) ऑन क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस नियुक्त किया गया. 2021 में, उन्होंने ग्लासगो फाइनेंशियल अलायंस फॉर नेट ज़ीरो की शुरुआत की, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय संस्थानों का एक गठबंधन है.
कार्नी के राजनीति में आने की अटकलें पहले से थीं, लेकिन ट्रूडो के इस्तीफे से पहले उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश नहीं किया था. हालांकि, अब जब ट्रंप दोबारा व्हाइट हाउस में हैं, कनाडा में कंजरवेटिव पार्टी मजबूत हो रही है और अर्थव्यवस्था संभावित रूप से प्रभावित हो सकती है, तो उन्होंने अपने फैसले को बदल लिया है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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