(एडम केपेक्स, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, सेंट लुईस)
सेंट लुइस (अमेरिका), 13 अप्रैल (द कन्वरसेशन) कैंसर के अंतिम चरण का एक क्रूर परिणाम यह है कि कई मरीज गहरी उदासीनता में डूब जाते हैं, क्योंकि वे उन गतिविधियों में भी रुचि खो देते हैं जिन्हें वे कभी पसंद करते थे।
यह लक्षण दुर्बलता नामक सिंड्रोम का हिस्सा है, जो अंतिम चरण के लगभग 80 प्रतिशत कैंसर रोगियों को प्रभावित करता है। इससे मांसपेशियां बड़े पैमाने पर खत्म होने लगती हैं और वजन घटने लगता है, जिससे पर्याप्त पोषण के बावजूद मरीज की हड्डियां पतली हो जाती हैं।
हौंसला पस्त होने से न केवल रोगियों की पीड़ा बढ़ती है, बल्कि उन्हें परिवार और दोस्तों से भी अलग कर देती है। चूंकि, रोगी को कठिन उपचार पद्धतियों को अपनाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ता है इसलिए इससे परिवारों पर भी दबाव पड़ता है और उपचार जटिल हो जाता है।
डॉक्टर आमतौर पर यह मानते हैं कि जब कैंसर के अंतिम चरण के मरीज जीवन से विमुख हो जाते हैं, तो यह शारीरिक गिरावट के प्रति एक अपरिहार्य मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया होती है। लेकिन क्या होगा यदि उदासीनता सिर्फ शारीरिक गिरावट का परिणाम न होकर रोग का ही एक अभिन्न अंग हो?
हमारे नव प्रकाशित शोध में, मेरे सहकर्मियों और मैंने एक उल्लेखनीय बात की खोज की है : कैंसर केवल शरीर को ही नष्ट नहीं करता है बल्कि यह मस्तिष्क के एक विशिष्ट हिस्से को भी अपने नियंत्रण में ले लेता है, जो प्रेरणा को नियंत्रित करता है।
‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित हमारे निष्कर्ष, दशकों पुरानी मान्यताओं को चुनौती देते हैं और सुझाव देते हैं कि उस चीज को पुनः प्राप्त करना संभव हो सकता है जिसे खोना कई कैंसर रोगियों के लिए सबसे विनाशकारी बात है – जीवन के प्रति उनकी इच्छाशक्ति।
शारीरिक गिरावट से उत्पन्न थकान को दूर करना—
कैंसर से उत्पन्न कमजोरी में उदासीनता की पहेली को सुलझाने के लिए, हमें शरीर में सूजन के सटीक मार्ग का पता लगाने की आवश्यकता थी, तथा रोग के बढ़ने के दौरान जीवित मस्तिष्क के अंदर झांकने की आवश्यकता थी – जो कि लोगों में लगभग असंभव है।
हालांकि, तंत्रिका वैज्ञानिकों के पास उन्नत तकनीक है जो चूहों में इसे संभव बनाती है।
आधुनिक तंत्रिका विज्ञान हमें ऐसे शक्तिशाली उपकरणों से लैस करता है, जिनसे हम यह पता लगा सकते हैं कि बीमारी चूहों में मस्तिष्क की गतिविधि को कैसे बदलती है।
वैज्ञानिक कोशिकीय स्तर पर सम्पूर्ण मस्तिष्क का मानचित्रण कर सकते हैं, व्यवहार के दौरान तंत्रिका गतिविधि पर नजर रख सकते हैं, तथा न्यूरॉन्स को सटीकता से चालू या बंद कर सकते हैं।
हमने कैंसर के चूहा मॉडल में इन तंत्रिका विज्ञान उपकरणों का उपयोग मस्तिष्क और प्रेरणा पर रोग के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए किया।
हमने मस्तिष्क के एक छोटे से हिस्से की पहचान की जिसे एरिया पोस्ट्रेमा कहते हैं जो मस्तिष्क के सूजन डिटेक्टर के रूप में कार्य करता है। जैसे-जैसे ट्यूमर बढ़ता है, यह रक्तप्रवाह में सूजन को बढ़ावा देने वाले अणु साइटोकाइन्स को छोड़ता है।
पोस्ट्रेमा क्षेत्र में विशिष्ट रक्त-मस्तिष्क अवरोध का अभाव होता है जो विषाक्त पदार्थों, रोगाणुओं और अन्य अणुओं को शरीर से बाहर रखता है, जिससे यह परिसंचारी सूजन संबंधी संकेतों का सीधे नमूना ले पाता है।
जब पोस्ट्रेमा क्षेत्र में सूजन वाले अणुओं में वृद्धि का पता चलता है, तो यह मस्तिष्क के कई क्षेत्रों में तंत्रिका प्रपात को सक्रिय कर देता है, जो अंततः मस्तिष्क के प्रेरणा केंद्र – न्यूक्लियस एक्म्बेंस में डोपामाइन के स्राव को दबा देता है।
हमने प्रयास को मापने के लिए व्यावहारिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित दो मात्रात्मक परीक्षणों का उपयोग करते हुए इस बदलाव को प्रत्यक्ष रूप से देखा।
पहले प्रयोग में चूहों को आसानी से भोजन उपलब्ध हुआ और दूसरे प्रयोग में उन्हें थोड़ा कठिन रास्ता अपनाना पड़ा।
जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता गया, चूहे आसानी से उपलब्ध होने वाले भोजन की तलाश में लगे रहे, लेकिन अधिक प्रयास की आवश्यकता वाले कार्यों को जल्दी ही छोड़ दिया।
इस बीच, हमने देखा कि डोपामाइन का स्तर वास्तविक समय में गिर रहा था, जो चूहों में भोजन की तलाश के लिए काम करने की घटती इच्छा को दर्शाता था।
हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि कैंसर केवल मस्तिष्क को ही क्षतिग्रस्त नहीं करता है – यह लक्षित सूजन संबंधी संकेत भेजता है, जिन्हें मस्तिष्क पहचान लेता है। इसके बाद मस्तिष्क प्रेरणा को कम करने के लिए डोपामाइन के स्तर को तेजी से कम कर देता है।
शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों के बीच की सीमा एक कृत्रिम रूप से खींची गई रेखा है।
बीमारी में उदासीनता पर पुनर्विचार—
हमारी खोज का कैंसर से कहीं अधिक दूर तक असर है। कैंसर में प्रेरणा की कमी को बढ़ावा देने वाला इन्फ्लेमेटरी मॉलिक्यूल कई अन्य स्थितियों में भी शामिल है – रुमेटॉइड आर्थराइटिस जैसे ऑटोइम्यून विकारों से लेकर क्रॉनिक संक्रमण और अवसाद तक।
यही मस्तिष्क तंत्र संभवतः उस दुर्बल करने वाली उदासीनता की व्याख्या करता है जो विभिन्न दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित लाखों लोग अनुभव करते हैं।
द कन्वरसेशन रवि कांत रवि कांत नरेश
नरेश
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