नई दिल्ली: मोहनजोदड़ो में मौत के टीलों पर चमकीले नीले रंग की तिरपाल पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत के प्राचीन शहर की नियति की लगातार याद दिला रहा है. 4,000 साल से ज्यादा पुरानी दीवारें ढह चुकी हैं, पेरिस की सीढ़ियां, स्तूप, महान स्नानागार और अन्य खंडहर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं.
दुनिया भर के इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और छात्रों की नजर इस त्रासदी पर बनी हुई हैं. उन्हें इस बात की आशंका है कि मोहनजोदड़ो के नुकसान को फिर से बहाल कर पाना मुश्किल हो सकता है.
रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में प्राचीन भारतीय इतिहास की प्रोफेसर पूजा ठाकुर ने कहा, ‘नुकसान का सही आकलन करने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितना नुकसान हुआ है. अभी तक इसकी पूरी जानकारी किसी के पास नहीं है. इसलिए यह आंकना मुश्किल है कि कितने नुकसान की भरपाई की जा सकती है.’
तेजी से भागता समय
अगर पाकिस्तान पुरातत्व विभाग ने समय रहते साइट को बहाल नहीं किया तो मोहनजोदड़ो को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का दर्जा खोने का भी खतरा है. यह पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका हो सकता है.
ठाकुर ने कहा, ‘यूनेस्को की यह दर्जा इन धरोहरों के लिए फंडिंग के साथ-साथ, उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने में भी मदद करता है. विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने के बाद, पर्यटन जैसी गतिविधियों और इन साइटों को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी चीज़ से बचाने के लिए पारिस्थितिक नीतियां बनाने का दायित्व राज्य का होता है. मेरा मानना है कि मोहनजोदड़ो के लिए अपनी हैसियत खोना बेहद नुकसानदायक होगा.’
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बाढ़ से जूझना
सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नत जल निकासी प्रणाली मोहनजोदड़ो के स्थलों की एक बड़ी खासियत है. अतीत में आई बाढ़ की घटनाओं ने कथित तौर पर सैलाब को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन इस बार नहीं.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में मध्ययुगीन भारतीय इतिहास और मध्ययुगीन पुरातत्व के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रेजवी ने कहा, ‘चूंकि इन जल निकासी प्रणालियों को पूरी तरह से खोदा नहीं गया है, इसलिए वे इस तरह की भारी बाढ़ का सामना नहीं कर सकी. अब तक इसके कुछ हिस्सों को ही बहाल किया गया है.’
हाल की घटनाओं ने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन पर बहस को गरमा दिया है. मोहनजोदड़ो इसी सभ्यता का एक हिस्सा था.
रामजस कॉलेज के प्रोफेसर ठाकुर के अनुसार, इसे लेकर किए जा रहे कई तर्क-वितर्कों ने यहां आने वाली बाढ़ के कारणों में से एक को सिंधु नदी से इसकी निकटता के साथ जोड़ा है.
नुकसान का आकलन
1922 में खोजा गया यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, कभी दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर तरीके से संरक्षित शहरी बस्तियों में से एक माना जाता था. खंडहरों के साइट क्यूरेटर एहसान अली अब्बासी ने द गार्जियन को बताया, ‘हालांकि इन खंडहरों में पानी नहीं भरा है, लेकिन लगातार बारिश ने इन्हें नष्ट कर दिया है.’
16 और 26 अगस्त के बीच मोहनजो-दड़ो के पुरातात्विक खंडहरों में 779.5 मिमी बारिश हुई, जिससे स्तूप गुंबद की सुरक्षा दीवार सहित कई दीवारें ढह गईं.
अब्बासी ने द गार्जियन को बताया, ‘लगभग 5,000 साल पहले बनी कई बड़ी दीवारें मानसून की बारिश की वजह से ढह गई.’
उन्होंने 29 अगस्त को संस्कृति, पुरावशेष और पुरातत्व निदेशक को एक पत्र भेजकर सूचित किया कि वह विरासत स्थलों की सुरक्षा के लिए अपने सभी संसाधनों का इस्तेमाल कर चुके हैं. हालांकि सिंचाई, सड़कों, राजमार्गों और वन विभागों की लापरवाही के कारण ऐतिहासिक स्थल से पानी निकालने में देरी हुई है.
अब्बासी ने सुझाव दिया कि बारिश के दौरान हुए नुकसान का आकलन करने के लिए विशेषज्ञ संरक्षक और इंजीनियरों को भेजा जाए. अधिकारी भी अभी तक नहीं आए हैं.
पाकिस्तान की अन्य विरासत धरोहरों को भी लगातार बाढ़ से नुकसान पहुंचा है. लरकाना में शाह बहारो और ताजजर इमारतें, मोरो में मियां नूर मोहम्मद कल्होरो कब्रिस्तान की कब्रें, थुल मीर रुकान में बौद्ध स्तूप का ढोल और थट्टा व भांबौर में मक्ली स्मारकों को सीवेज लाइनों से बहने वाले पानी के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है.
सिंध की विरासत के संरक्षण के लिए काम करने वाले एंडोमेंट फंड ट्रस्ट (ईएफटी) के सचिव हामिद अखुंद ने कहा ‘हमने जो कुछ भी बहाल किया था वह क्षतिग्रस्त हो गया है. सिंध में एक भी जगह नहीं बची है जहां विरासत बरकरार हो. अब चाहे वह कोट दीजी, रानीकोट, शाही महल, व्हाइट पैलेस, फैज महल, ऐतिहासिक इमाम बरगाह, बंगले हों या सार्वजनिक औषधालय.
जलवायु परिवर्तन से बचाव
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की वजह से तेजी से बढ़तीं प्राकृतिक आपदाओं से इन विरासत स्थलों को हमेशा के लिए खो जाने से पहले उनकी सुरक्षा करना महत्वपूर्ण हो गया है.
रेजवी ने कहा, ‘पाकिस्तानी और भारतीय पुरातत्व एजेंसियों के साथ-साथ विश्व संगठनों को भी इन स्थलों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए. उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए ये धरोहरें बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसलिए इन्हें संरक्षित करने की जरूरत है.’
यूनेस्को जैसे संगठनों के पास युद्ध और आपदा के समय ऐसे ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित और सुरक्षित बनाए रखने के लिए दिशा-निर्देश हैं. इन दिशानिर्देशों को समय पर शुरू नहीं किया गया और देशों में इन्हें लागू करने के लिए तैयारियों के स्तर की कमी है.
ठाकुर ने बताया, ‘ये संगठन विरासत स्थलों को खतरे में डालने वाले संकटों से बाहर आने वाले प्रोटोकॉल बना रहे हैं जैसे क्रोएशिया का युद्ध या पाकिस्तान की बाढ़.’
फ़र्स्टपोस्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस 9 सितंबर को बाढ़ प्रभावित पाकिस्तान का दौरा करेंगे और 11 सितंबर को मोहनजोदड़ो जाकर खंडहरों का ‘आंकलन’ किए जाने की उम्मीद है.
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