नई दिल्ली: पाकिस्तान के पेशावर में शुक्रवार को एक शिया मस्जिद में विस्फोट – जिसमें कम से कम 30 लोग मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए – शायद ही पहली बार है जब इस अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को देश में आतंकवादी या सांप्रदायिक हिंसा का सामना करना पड़ा हो. पाकिस्तान में अधिकांश मुसलमान सुन्नी हैं.
अब्दुल निशापुरी जैसे कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान में शियाओं के खिलाफ हिंसा के पैटर्न को देखने के लिए एक लंबा समय बिताया है.
पाकिस्तान के कराची में वादी-ए-हुसैन कब्रिस्तान में, लाल झंडे शियाओं की कब्रों को चिह्नित करते हैं जो कथित टारगेटेड हमलों के शिकार हुए हैं. दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार, 2001 और जून 2018 के बीच पाकिस्तान में लगभग 2,700 शिया मारे गए थे.
1963 का थेरही नरसंहार
3 जून 1963 को, सिंध के खैरपुर जिले के छोटे से शहर थेरही में, कथित तौर पर ‘कट्टरपंथी देवबंदी और वहाबियों’ की भीड़ ने कथित तौर पर बच्चों सहित 118 शिया मुसलमानों की हत्या कर दी.
निशापुरी द्वारा स्थापित ‘ऑल्टरनेटिव मीडिया’ साइट पर एक आर्टिकिल ‘लेट अस बिल्ड पाकिस्तान’ के अनुसार, भीड़ ने कथित तौर पर हथियारों के रूप में मांस फाड़ने वाले और छुरियों का उपयोग करके हत्याओं को अंजाम दिया, और मामले में पुलिस के दखल देने से पहले ही शवों को एक खाली कुएं में जलाने की योजना बनाई.
खैरपुर जिले के शिया निवासियों ने हर साल हमले के पीड़ितों की याद में सार्वजनिक शोक मनाना जारी रखा है, शियाइट डॉट न्यूज (shiite.news) ने 2019 में बताया.
1988 का गिलगित नरसंहार
16 और 18 मई 1988 के बीच, गिलगित-बाल्टिस्तान के विवादित क्षेत्र में कथित तौर पर पहला शिया-विरोधी हमला देखने को मिला.
डॉन अखबार की हेराल्ड पत्रिका के अनुसार, रमजान के चांद को देखने को लेकर सुन्नियों और शियाओं के बीच विवादों के कारण इस क्षेत्र में शिया विरोधी दंगे भड़क गए.
‘जब गिलगित में शियाओं ने ईदुल फितर का जश्न मनाया, तो चरमपंथी सुन्नियों का एक समूह, ने उन पर हमला बोल दिया क्योंकि उनके धार्मिक नेताओं ने अभी तक चांद दिखने की घोषणा नहीं की थी और उन्होंने अपना रोज़ा अभी तक खत्म नहीं किया था. हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘इसके बाद दोनों संप्रदायों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हो गईं.’ ‘1988 में, लगभग चार दिनों की संक्षिप्त शांति के बाद, सैन्य शासन ने कथित तौर पर शियाओं को ‘सबक सिखाने’ के लिए स्थानीय सुन्नियों के साथ कुछ आतंकवादियों का इस्तेमाल किया, जिसके कारण सैकड़ों शिया और सुन्नी मारे गए.’
2003 का क्वेटा मस्जिद बम विस्फोट
4 जुलाई 2003 को, फारसी बोलने वाले हज़ारा समुदाय (जो मुख्य रूप शिया हैं) के 53 लोगों ने बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में एक शिया मस्जिद में हुए बम विस्फोट में अपनी जान गंवा दी.
गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के अधिकारियों ने संदेह के तौर पर 19 लोगों को हिरासत में लिया और तत्कालीन पीएम जफरुल्लाह खान जमाली ने हमले में ‘विदेशी हाथ’ होना बताया.
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, कथित तौर पर हमले के लिए आतंकवादी समूह लश्कर-ए-झांगवी (एलईजे) जिम्मेदार था, जिसे हजारा के खिलाफ जारी हिंसा के लगभग दो दशकों में से पहला माना जाता है.
साल 2021 का कोहिस्तान नरसंहार
28 फरवरी, 2012 को पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत से लगे हुए कोहिस्तान में कथित तौर पर आतंकवादियों द्वारा किए गए एक बस हमले में गिलगित के 18 शिया मारे गए थे.
रावलपिंडी जा रही बस पर घात लगाकर हमला करने वाले अपराधियों ने कथित तौर पर छद्म के रूप में सैन्य वर्दी का इस्तेमाल किया और उन पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से जुड़े आतंकवादी समूह जुंदल्लाह के सदस्य होने का आरोप लगाया गया.
इस हमले ने शिया मुसलमानों द्वारा राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया. अधिकारियों ने बंद और कर्फ्यू लागू करने के साथ प्रदर्शनों को दबाने की कोशिश की.
शिकारपुर बम विस्फोट और कराची बस हमला (2015)
30 जनवरी 2015 को, कथित जुंदल्लाह आतंकवादियों ने सिंध के शिकारपुर जिले में एक शिया मस्जिद को निशाना बनाया. इस बमबारी में 60 से अधिक लोग मारे गए.
डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘विस्फोट, शुक्रवार की नमाज के ठीक बाद हुआ. विस्फोट की तीव्रता के कारण इमामबारगाह की छत गिर गई जिसके बाद कई लोग मलबे में फंस गए.’
चार महीने बाद, आतंकवादियों ने कथित तौर पर कराची में एक बस में सवार 47 शिया नागरिकों की हत्या कर दी और हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आईएसआईएस के एक पर्चे को पीछे छोड़ दिया.
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