वाशिंगटन/ लंदन: म्यामांर में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया. लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ रहे इस दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र के लिए इस उलटफेर को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
पांच दशकों तक सैन्य शासन में रहे इस देश में सैन्य तख्तापलट की दुनिया के विभिन्न देशों और संगठनों ने निंदा की है और हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने की मांग की है.
म्यामांर में सेना द्वारा किए गए तख्तापलट को लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदम पर सीधा हमला करार देते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सोमवार को इस देश पर नए प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी.
स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची समेत देश के शीर्ष नेताओं को सोमवार को हिरासत लेने के कदम की अमेरिका ने आलोचना की.
मीडिया की खबरों के अनुसार, सेना के स्वामित्व वाले टेलीविजन चैनल ‘मयावाडी टीवी’ पर सोमवार सुबह यह घोषणा की गयी कि सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है.
बाइडन ने एक बयान में कहा, ‘बर्मा (म्यामांर) की सेना द्वारा तख्तापलट, आंग सान सू ची एवं अन्य प्राधिकारियों को हिरासत में लिया जाना और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा देश में सत्ता के लोकतंत्रिक हस्तांतरण पर सीधा हमला है.’
उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में सेना को जनता की इच्छा को दरकिनार नहीं करना चाहिए. लगभग एक दशक से बर्मा के लोग चुनाव कराने, लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने और शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण को लेकर लगातार काम कर रहे हैं. इस प्रगति का सम्मान किया जाना चाहिए.’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने वैश्विक समुदाय का भी आह्वान किया कि वह एक स्वर में म्यांमार की सेना पर दबाव डाले.
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ब्रिटेन ने की निंदा
ब्रिटेन सरकार ने सोमवार को म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट की कड़ी निंदा की. साथ ही देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची और राष्ट्रपति विन मिन्त समेत अवैध रूप से हिरासत में लिए गए सभी लोगों को रिहा करने का आह्वान किया.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ट्वीट करके कहा, ‘ मैं म्यांमार में हुए तख्तापलट और आंग सान सू ची समेत अन्य नागरिकों को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में लिए जाने की निंदा करता हूं. लोगों के वोट का हर हाल में सम्मान होना चाहिए और नेताओं का रिहा किया जाना चाहिए.’
वहीं, ब्रिटेन सरकार के एक प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, ‘ म्यांमार की सेना द्वारा एक फरवरी को लागू किए गए आपातकाल की ब्रिटेन निंदा करता है. देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत सरकार के अन्य नेताओं एवं नागरिक समाज के लोगों को हिरासत में लिया जाना निंदनीय है.’
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
सेना के कदमों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आलोचना हो रही है.
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा कि म्यामार की स्टेट काउंसलर सू ची एवं अन्य अधिकारियों समेत सरकार के नेताओं को कथित रूप से हिरासत में लिए जाने की घटना से अमेरिका बेहद चिंतित है.
ब्लिंकेन ने एक बयान में कहा, ‘हमने बर्मा की सेना से सभी सरकारी अधिकारियों और नेताओं को रिहा करने का आह्वान किया है और आठ नवंबर को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हुए चुनावों में बर्मा की जनता के फैसले का सम्मान करने को कहा है. अमेरिका लोकतंत्र, स्वतंत्रता, शांति एवं विकास के आकांक्षी बर्मा के लोगों के साथ है. सेना को निश्चित रूप से इन कदमों को तुरंत पलटना चाहिए.’
उन्होंने अपने बयान में म्यामार के पुराने नाम बर्मा का इस्तेमाल किया.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी सू ची तथा अन्य नेताओं को सेना द्वारा हिरासत में लेने की कड़ी निंदा की तथा सत्ता सेना के हाथों में जाने पर चिंता जताई.
गुतारेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा, ‘म्यामांर में नई संसद का सत्र आरंभ होने से पहले स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची, राष्ट्रपति यू विन मिंत तथा अन्य राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने के कदम की महासचिव कड़ी निंदा करते हैं.’
उन्होंने इसे म्यामांर में लोकतांत्रिक सुधारों के लिए एक बड़ा झटका बताया.
कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक फिल्मकार मिन तिन को को ग्यी, लेखक माउंग थार चो तथा 1988 में छात्र आंदोलनों का चेहरा रहे को को ग्यी तथा मिन को नाइंग को भी हिरासत में लिया गया है. हालांकि उन्हें हिरासत में लेने की खबर की अभी पुष्टि नहीं हो सकी है.
सेना के टीवी चैनल पर कहा गया कि कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग देश के प्रभारी होंगे तथा उप राष्ट्रपति मिंट स्वे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. स्वे पूर्व जनरल हैं और 2007 में उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के खिलाफ बर्बर कार्रवाई की थी.
पिछले वर्ष के चुनाव के बाद सोमवार को संसद का पहला सत्र आयोजित होने वाला था.
सू ची की नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी पार्टी ने पिछले साल नवंबर में हुए आम चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी. सू ची (75) देश की सबसे अधिक प्रभावशाली नेता हैं और सैन्य शासन के खिलाफ दशकों तक चले अहिंसक संघर्ष के बाद वह देश की नेता बनीं थीं.
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