नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर आम सहमति हासिल करने में विफलता भारत को अनुदान के तौर पर वैक्सीन मुहैया कराने के अमेरिका के वादे को पटरी से उतार सकती है. शीर्ष सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि भारत ने संभवत: ये फैसला कर लिया है कि क्षतिपूर्ति को लेकर उठ रहे मुद्दों के उपयुक्त समाधान के तौर पर अमेरिका से वैक्सीन का कोई दान ‘स्वीकार नहीं किया जाएगा.’
सूत्रों ने बताया कि अमेरिका ने दुनियाभर में चलने वाले अपने वितरण अभियान के तहत भारत को भी वैक्सीन मुहैया कराने का वादा किया था लेकिन पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की यात्रा के बावजूद ऐसा होना दूर की कौड़ी ही लग रही है. यही नहीं टीके भारत के पड़ोसी देशों समेत अन्य देशों में पहुंचने शुरू भी हो गए हैं.
शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, संभावित प्रतिकूल प्रभावों के कारण मुकदमों से बचाने की अमेरिकी वैक्सीन निर्माताओं की मांग ने कोविड टीकों के सह-उत्पादन के लिए बातचीत को भी प्रभावित किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मई 2021 में घोषणा की थी कि उनका प्रशासन भारत सहित महामारी से जूझ रहे अन्य तमाम देशों के साथ 80 मिलियन कोविड वैक्सीन खुराक साझा करेगा.
अमेरिका ने कहा था कि 80 मिलियन खुराक में देश में निर्मित होने वाली 60 मिलियन एस्ट्राजेनेका खुराक के अलावा 20 मिलियन उसके अपने स्टॉक से शामिल होंगी.
जून में राष्ट्रपति बाइडन ने घोषणा की कि टीकों का वितरण दो चरणों में होगा- पहले चरण में 25 मिलियन और फिर 55 मिलियन खुराक भेजी जाएंगी. और भारत को दोनों ही चरणों में वैक्सीन मिलनी थीं.
हालांकि, सूत्रों ने कहा कि वैक्सीन वितरण की योजना सिरे नहीं चढ़ पाई क्योंकि अमेरिकी वैक्सीन निर्माताओं मॉडर्ना, फाइजर और जॉनसन एंड जॉनसन ने क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर अपने रुख में किसी बदलाव से इनकार कर दिया.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जब मई में अमेरिका का दौरा किया था, जहां उन्होंने सप्लाई चेन और क्षतिपूर्ति संबंधी कानूनी बाधाएं सुलझाने के लिए कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात की, तो ऐसा लग रहा था कि मतभेद दूर हो गए हैं.
सूत्रों ने बताया कि भारत टीके लेने के लिए खुद को तैयार कर रहा था लेकिन घरेलू टीका निर्माताओं के दबाव, जो खुद भी क्षतिपूर्ति पर संरक्षण की मांग कर रहे हैं, के कारण भारत और अमेरिका के बीच यह मामला ‘एकदम ठप’ पड़ गया.
एक सूत्र ने बताया, ‘अनुदान के मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ है और एक भी खुराक अमेरिका से भारत में नहीं आई है. कानूनी समीक्षा अब भी चल रही है और इन सब चीजों में समय लगता है.’
पिछले हफ्ते ब्लिंकन की भारत यात्रा के दौरान भी इस मामले पर चर्चा हुई थी लेकिन दोनों देश जाहिर तौर पर इस मामले को सुलझा नहीं पाए. हालांकि, ब्लिंकन ने घोषणा की कि अमेरिका पूरे भारत में टीकाकरण अभियान के समर्थन के लिए अतिरिक्त 25 मिलियन डॉलर देगा.
ब्लिंकन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि वैक्सीन सप्लाई चेन लॉजिस्टिक्स की मजबूती, दुष्प्रचार रोकने, वैक्सीन पर झिझक तोड़ने और ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मियों के प्रशिक्षण में इस फंडिंग का इस्तेमाल करके तमाम लोगों की जान बचाई जा सकती है.’
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सह-उत्पादन की संभावनाओं पर भी ग्रहण
इस साल की शुरुआत में नई दिल्ली और वाशिंगटन ने अमेरिकी कंपनियों और घरेलू निर्माताओं के बीच प्रस्तावित साझेदारी के तहत भारत में अमेरिकी कोविड वैक्सीन के सह-उत्पादन पर भी ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया था. तय किया गया था कि टीके न केवल भारतीय बाजार के लिए बल्कि पड़ोसी देशों में वितरण के लिए भी होंगे.
लेकिन क्षतिपूर्ति मुद्दे के कारण अभी तक यह काम भी शुरू नहीं हो पाया है, सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी निर्माता गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं की स्थिति में कानूनी जिम्मेदारियों से बचाने पर जोर दे रहे हैं.
पिछले हफ्ते नई दिल्ली में ब्लिंकन और जयशंकर की साझा प्रेस कांफ्रेंस के दौरान, विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों ने यह बात रेखांकित की है कि वे अब क्वाड ढांचे के तहत ‘वैश्विक रूप से सस्ती और सुलभ बनाने के लिए वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने’ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
जयशंकर ने कहा, ‘हम इस समर्थन की बहुत सराहना करते हैं- मैं तो कहूंगा कि वास्तव में जिस खुलेपन से बाइडन प्रशासन ने इन सप्लाई चेन को खुला रखा है, उसने आज हमें वैक्सीन की संख्या बढ़ाने में सक्षम बनाया है.’
साथ ही उन्होंने कहा, ‘लेकिन इस दिशा में कार्य प्रगति पर भी चल रहा है. इसलिए, उद्योग की प्रकृति और टीकाकरण में होने वाले बदलावों को देखते हुए हमें इस पर लगातार काम करते रहना होगा.’
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