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Sunday, 5 May, 2024
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जाति जनगणना और ‘मजबूरी का सीएम’ के बाद, नीतीश की पेगासस पर जांच की मांग ने BJP के साथ बढ़ाई तनातनी

बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पेगासस जांच की मांग इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के साथ उनकी बैठक के एक दिन बाद आई है, जिसने राजनीतिक हलकों में बहुत रुचि पैदा कर दी है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से सोमवार को पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच की मांग उठाए जाने को राज्य में गठबंधन सरकार बनने के बमुश्किल नौ महीने बाद ही जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के बीच तनाव का संकेत माना जा रहा है.

नीतीश कुमार ने रविवार को गुरुग्राम में इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला से मुलाकात की थी, जिससे राजनीतिक हलकों में काफी हलचल पैदा हुई थी. हालांकि, नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया कि चौटाला के साथ उनकी मुलाकात के पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं था. यह घटनाक्रम ऐसे समय का है जब उसी दिन जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को ‘पीएम मटेरियल’ बताया.

नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में जनता दरबार आयोजित करने के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘(पेगासस) मुद्दे की जांच होनी चाहिए. यह मामला संसद और मीडिया में काफी समय से उठ रहा है. मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता. मुझे बस वही पता है जो मीडिया रिपोर्ट में सामने आ रही है. लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है कि संदेह दूर करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.’

उन्होंने इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की विपक्ष की मांग पर टिप्पणी से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार ने एक बयान दिया है लेकिन मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि मामला क्या है.’

मुख्यमंत्री का यह बयान ऐसे समय आया है जब पेगासस समेत कई मुद्दों पर जदयू और भाजपा के बीच तनातनी बनी हुई है.

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सिर्फ पेगासस नहीं

दो सहयोगियों के बीच टकराव सिर्फ पेगासस मामले तक ही सीमित नहीं है.

जदयू ने शनिवार को देश में जाति जनगणना के समर्थन में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसका प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने विरोध किया.

जायसवाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह सामाजिक तनाव और संघर्ष का कारण बनेगा.’

नीतीश कुमार ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान जायसवाल पर पलटवार किया, मुख्यमंत्री ने कहा, ‘समाज में कोई सामाजिक उथल-पुथल नहीं होगी. जाति जनगणना समाज के हर वर्ग की मदद करेगी. केंद्र सरकार ने 2011 की जाति जनगणना को यह कहते हुए प्रकाशित नहीं किया कि यह त्रुटिपूर्ण है. उन्हें 2022 में एक नई जाति जनगणना करानी चाहिए.’

इस मुद्दे पर नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव के साथ हैं. दोनों ने शुक्रवार को एक बैठक भी की थी, जिसमें तय किया गया कि मुख्यमंत्री जाति जनगणना के मुद्दे पर चर्चा के लिए समय देने की मांग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखेंगे.

सोमवार को यह पूछे जाने पर कि क्या तेजस्वी की तरफ से दिए गए सुझाव के मुताबिक वह अपने स्तर पर जाति जनगणना के कर्नाटक मॉडल का पालन करेंगे, नीतीश कुमार का कहना था—‘मैंने अपने विकल्प खुले रखे हैं.’


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मजबूरी का मुख्यमंत्री

नाराज नीतीश कुमार ने सोमवार को भाजपा के मंत्री सम्राट चौधरी को भी आड़े हाथों लिया, जिन्होंने कहा था कि वह केवल मजबूरी के कारण मुख्यमंत्री हैं.

नीतीश ने कहा, ‘अगर सम्राट चौधरी को कोई समस्या है, तो वह अपनी पार्टी के नेताओं से बात कर सकते हैं.’

चौधरी हाजीपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे जब उन्होंने यह टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, ‘गठबंधन की सरकार में काम करना मुश्किल है. समय आ गया है कि भाजपा का अपना मुख्यमंत्री हो.’

हालांकि, यह दोनों के बीच पहला टकराव नहीं है. पंचायती राज मंत्रालय संभाल रहे चौधरी ने संकेत दिया था कि वह दो से अधिक बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा देंगे. लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से विरोध के कारण उन्हें इससे पीछे हटना पड़ा था.

जदयू के सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि राज्य के भाजपा नेता अपने केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर नीतीश कुमार के खिलाफ बयान दे रहे हैं.

जदयू के एक विधायक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘मुझे समझ नहीं आता कि यह गठबंधन कैसे टिकेगा, जब दोनों पक्षों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे हैं.


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सुशील कुमार मोदी की गैरमौजूदगी

जदयू और भाजपा के बीच वाकयुद्ध जारी रहने के पीछे पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की अनुपस्थिति को एक बड़ी वजह माना जा रहा है.

मोदी जब बिहार में भाजपा का नेतृत्व करते थे तो खुद दखल देते थे और पार्टी नेताओं की तरफ से जारी किए जाने वाले बयानों पर विराम लगा देते थे.

तीन साल पहले, जब रामनवमी के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के कारण गठबंधन के अंदर तनाव की स्थिति थी तो वह मोदी ही थे जिन्होंने मामला शांत कराया और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे को भागलपुर में एक सांप्रदायिक घटना से जुड़े मामले में आत्मसमर्पण करने को कहा.

लेकिन आज भाजपा नेता पार्टी के केंद्रीय नेताओं के निर्देश पर काम करते हैं. नीतीश कुमार इसलिए भी असहज हैं क्योंकि जूनियर पार्टनर के नाते उनका भाजपा के मंत्रियों पर बहुत कम ही नियंत्रण रहता है.

अरुण जेटली या सुशील मोदी के बिना नीतीश कुमार के लिए गठबंधन की राह सहज नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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