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Sunday, 3 November, 2024
होमफीचरकैसे ढाका के पास हिंदू हवेलियां जमींदारों, उत्पीड़न और विभाजन की गवाही देती हैं

कैसे ढाका के पास हिंदू हवेलियां जमींदारों, उत्पीड़न और विभाजन की गवाही देती हैं

यह हवेलियां बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन कोई भी गाइड आपको बांग्लादेश की इन भूली हुई हिंदू हवेलियों तक नहीं ले जाएगा.

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कोलाकोपा, बांग्लादेश:जज बाड़ी, उकिल बाड़ी और आनंद कुटीर—जज का घर, वकील का घर और खुशियों का घर—ये तीन शानदार हवेलियां ढाका जिले के कोलाकोपा गांव के ऐेंट्री गेट पर खड़ी हैं, जो इस शांत गांव की महिमा को दिखा रही है. जज बाड़ी कभी किसी जज की नहीं थी, उकिल बाड़ी कभी किसी वकील की नहीं थी. ये हवेलियां का वर्तमान निवासियों द्वारा फिर से नाम रखा गया है, जो उनके मूल स्वामित्व के बारे में अनजान हैं. गांववालों आज बस इतना जानते हैं कि यह हिंदू जमींदारों का गांव था, जिन्होंने अपनी राजसी हवेलियां छोड़ दीं और पूर्वी बंगाल, जिसे वे कभी अपना घर कहते थे, 1947 में पूर्वी पाकिस्तान बन गया। कुछ लोग 1971 में चले गए, जब पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया.


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जहां इतिहास अभी भी खड़ा है

कोई भी ट्रेवल ब्रोशर आपको कोलाकोपा गांव की के बारे में जानकारी नहीं देगा. कोई टूर गाइड भी आपको वहां नहीं ले जाएगा. बांग्लादेश पर्यटन आकर्षणों से भरपूर है, लेकिन कोलाकोपा को उस सूची से बाहर रखा गया है. ढाका के अधिकांश निवासी इस बात से भी अनजान हैं कि इतिहास इसकी लुभावनी खूबसूरत हवेलियों में अभी भी मौजूद है. खंभों और छज्जों वाली विशाल इमारतें, बगीचे और फव्वारे, अंधेरे कमरे और हवादार बरामदे, ये हवेलियां दशकों से धुंधली हो गई हैं, लगातार सरकारों या सरकारी कर्मचारियों द्वारा उपेक्षित, जिन्हें कुछ आवंटित किया गया है.

These beautiful historical havelis are often left uncared for | Photo: Deep Halder
इन खूबसूरत ऐतिहासिक हवेलियों को छोड़ दिया जाता है | फोटो: दीप हलदर

यह संयोग ही था कि बांग्लादेश के ट्रेवल यूट्यूबर सलाहुद्दीन सुमन की नजर इस गांव पर पड़ी और वह इसकी भव्यता से मंत्रमुग्ध हो गए. उन्होंने कहा, इचामती नदी कोलाकोपा से होकर बहती है. पुराने ज़माने में, नदी ने इस गांव को एक अहम व्यापारिक स्थल बना दिया होगा. मालवाहक स्टीमर गांव के नौका घाट पर रुकेंगे और व्यवसाय फल-फूलेंगे. यहां आप जो हवेलियां देख रहे हैं, वे केवल जमींदारों की ही नहीं, बल्कि बहुत अमीर हिंदू व्यापारियों की भी थीं. उनका कोई भी परिवार पीछे नहीं रुका है.”

सलाउद्दीन अपने ट्रेवल शो में हिंदू इतिहास का दस्तावेजीकरण करते रहे हैं. जब वह कोलाकोपा जैसी जगहों की खोज करते हैं और उनके हिंदू अतीत का विवरण देने वाले वीडियो डालते हैं तो क्या उन्हें किसी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है? उन्होंने कहा, “मेरा काम इतिहास के पन्नों को खंगाल कर कंटेंट तैयार करना है. मैं जहां भी देखता हूं, मुझे हिंदू विरासत के निशान मिलते हैं. यह एक तथ्य है [कि] जो आज बांग्लादेश है उस पर कभी कई हिंदू जमींदारों का शासन था. कोलाकोपा उन हिंदुओं के गौरवशाली अतीत का एक प्रमुख उदाहरण है जिन्होंने इस भूमि को छोड़ दिया था. अगर इसके बारे में बात करने से दर्शकों का एक वर्ग असहज हो जाता है, तो मैं कुछ नहीं कर सकता.”

इतिहासकार अविषेक बिस्वास, जिन्होंने दलित विभाजन से बचे लोगों की कहानियों पर अपना डॉक्टरेट शोध किया है, वे कहते हैं कि हवेलियां दुनिया के इस हिस्से में खूनखराबे का कारण थीं.

बिस्वास कहते हैं, ये भूली हुई हिंदू हवेलियां जितनी खूबसूरत हैं, उतनी ही उनके मूल निवासियों द्वारा अपनी प्रजा के साथ किए जाने वाले भेदभाव की गवाही देती हैं. उनके अनुसार, मूल मुस्लिम आबादी और निचली जाति के हिंदुओं के एक बड़े हिस्से को उनकी ज्यादतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा.

जमींदार मुसलमानों, ‘निचली जाति’ के हिंदुओं का शोषण करने के लिए जाने जाते थे | फोटो: दीप हलदर

बिस्वास कहते हैं, “उनके साथ म्लेच्छ या अछूत जैसा व्यवहार किया जाता था. इस सांस्कृतिक अधीनता ने विभाजन और उसके बाद 1964 में हुए सांप्रदायिक दंगों और यहां तक ​​कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान एक अलग मोड़ ले लिया. मुसलमान बहुसंख्यक हो गए, और हिंदू जमींदारों को भागना पड़ा, जिन्होंने पहले उनके साथ भेदभाव किया था. कुछ को भयानक मौतें हुई. ये हवेलियां आज भी हिंसा के इतिहास की याद दिलाती हैं.”

किसे परवाह है कि यहां कौन रहता था?

भव्य हवेलियों के पीछे एक छोटी सी गली में 150 साल पुरानी एक दुकान है. यह एक हिंदू सुनार उत्तम नाग की है, जो आराम के लिए घर गया हुआ है. उनके सहायक, रंजीत पाल, एक पतले चांदी के हार को बनाने में व्यस्त हैं. क्या वह गांव से है? पाल ने सहमति में सिर हिलाया. क्या उन्हें पता है कि यह कभी हिंदू जमींदारों का गांव था? उन्होंने जवाब दिया, “किसको परवाह है कि यह गांव किसका था? वैसे भी उनमें से कोई भी यहां नहीं है. उनके खून का भी कोई निशान नहीं. अगर वे इस गांव को भूल गए हैं तो हम उन्हें क्यों याद रखें?”

इसके बजाय, पाल खेलाराम डेटा की कहानी सुनाते हैं, जो एक मनौबिक डाकू या सोने का दिल वाला डाकू था. इस गांव का एक हिंदू खेलाराम अमीरों को लूटता था और लूट का माल गरीबों को दे देता था. एक दिन उसकी मां ने आम के दूध की इच्छा जाहिर की. खेलाराम ने घर में एक बड़े टैंक को दूध से भर दिया और उसमें आम डाल दिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसकी मां को उसके पसंदीदा ड्रिंक की कोई कमी न हो.

यहां एक बड़ा वीरान घर है जिसके बारे में कोलाकोपा के ग्रामीणों का मानना ​​है कि यह कभी खेलाराम का था. हालांकि, वह टैंक नहीं मिला जहां उन्होंने आम का दूध बनवाया था.

(इस ग्राऊंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(दीप हलदर लेखक और पत्रकार हैं. वे इंडिया टुडे ग्रुप के एग्जीक्यूटिव एडिटर थे और ‘ब्लड आइलैंड: एन ओरल हिस्ट्री ऑफ द मारीचझापी नरसंहार’ (2019), और ‘बंगाल 2021: एन इलेक्शन डायरी’ (2021) के लेखक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @deepscribble है.) 


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