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Monday, 30 September, 2024
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लेबनान पर हमला करना इजराइल की भूल होगी- ऐसा क्यों

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(वैनेसा न्यूबी, लीडेन यूनिवर्सिटी और चियारा रफा, राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर, साइंस पो)

लीडेन (नीदरलैंड), 30 सितंबर (द कन्वरसेशन) बेरूत में 27 सितंबर को इजराइली हवाई हमले में हिजबुल्ला के नेता हसन नसरल्ला की मौत ने इस चरमपंथी लेबनानी संगठन को नाजुक समय में नेतृत्वविहीन कर दिया है।

दो दिन पहले दुनिया भर में प्रसारित एक भाषण में, इजराइल रक्षा बलों (आईडीएफ) के उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हर्जी हलेवी ने अपने सैनिकों को लेबनान में संभावित हमले के लिए तैयार रहने को कहा था।

यह मानने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि शुक्रवार को जिस हवाई हमले के जरिए दक्षिणी बेरूत उपनगर दहियेह में हिजबुल्ला के मुख्यालय की इमारत को निशाना बनाया गया था, वह संभावित आक्रमण की तैयारी था।

हलेवी ने 25 सितंबर को अपने सैन्यबलों से कहा था कि वे ‘‘अंदर जाएंगे, वहां दुश्मन को नष्ट करेंगे और हिजबुल्ला के बुनियादी ढांचे को निर्णायक रूप से खत्म कर देंगे।’’

चूंकि हिजबुल्ला लेबनानी आबादी के बीच घुला-मिला है, इसलिए इस रणनीति से निर्दोष नागरिकों की मौत होना तय है।

वर्ष 2006 से ही हिजबुल्ला और आईडीएफ दोनों ने सीधे टकराव से बचने की कोशिश की है लेकिन सात अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए भयानक हमलों ने स्थिति को बदल दिया।

क्या बदल गया है? क्या अब जमीनी आक्रमण अपरिहार्य है? और यदि ऐसा है, तो हिजबुल्ला और लेबनान के लिए इसका क्या मतलब होगा?

इजराइल का लेबनान में सैन्य हमलों में शामिल होने का पुराना रिकॉर्ड रहा है, जिसने दीर्घकाल में इसके विरोधियों को और मजबूत बनाने का ही काम किया है। ‘फलस्तीनी मुक्ति संगठन’ (पीएलओ) के विनाश ने हमास के उदय को नहीं रोका बल्कि इसने इसे बनाने में मदद की।

इसी तरह, दक्षिणी लेबनान में पीएलओ के खिलाफ इजराइल के प्रयासों ने हिजबुल्ला के निर्माण को गति दी।

इजराइल 1978 से अब तक पांच आक्रमणों के बावजूद लेबनान की जमीन के एक छोटे से हिस्से पर भी कब्जा करने में सफल नहीं हो सका।

दोनों पक्ष कई साल से नए संघर्ष की तैयारी कर रहे थे, लेकिन तनाव बढ़ने की शुरुआत 18 सितंबर को उस समय हुई, जब इजराइल ने हिजबुल्ला कार्यकर्ताओं के हजारों पेजर और मोबाइल उपकरणों में विस्फोट करके पहला हमला किया, जिसमें कम से कम 32 लोग मारे गए और कई हजार लोग घायल हो गए।

हाल के दिनों में आईडीएफ द्वारा इस्तेमाल की गई रणनीति कई वर्षों से विकसित की जा रही थी। आईडीएफ 2006 के जुलाई में युद्ध में हिजबुल्ला को हराने में नाकाम रहा था जिसके उत्साहित चरमपंथी संगठन के नेता ‘ब्लू लाइन’ (इजराइल और लेबनान को विभाजित करने वाली वास्तविक सीमा) पर सक्रिय रहे हैं और उन पर आईडीएफ की करीबी नजर थी।

इजराइली हमलों के लेबनान की आबादी के लिए विनाशकारी परिणाम साबित हुए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि आठ अक्टूबर 2023 से अब तक 1,540 लोग मारे गए हैं और हजारों निर्दोष नागरिक घायल हुए हैं।

क्या हिजबुल्ला जवाबी हमला कर सकता है?

नसरल्ला की मौत ने हिजबुल्ला को अस्थायी रूप से नेतृत्वहीन बना दिया है और इसके कई वरिष्ठ नेताओं की हत्या ने इसे अनुभवी कमांडरों से वंचित कर दिया है। दक्षिण लेबनान पर बमबारी से हिजबुल्ला को रॉकेट और अन्य हथियारों की आपूर्ति कम हो रही है।

बहरहाल, इजराइल को यह नहीं मान लेना चाहिए कि हिजबुल्ला खेल से बाहर हो गया है या उसे कम नहीं आंकना चाहिए।

हिजबुल्ला की असली ताकत आबादी में घुलने-मिलने की उसकी क्षमता में निहित रही है और अगर आईडीएफ ने जमीन पर सैनिकों को भेजने की फिर गलती की तो वह ‘हिट-एंड-रन’ रणनीति के साथ युद्ध लड़ने को तैयार रहेगा। पिछले सभी पांच आक्रमण विफल रहे। यह इस बात का संकेत होना चाहिए कि इस बार भी 1982 और 2006 के परिणामों का दोहराव हो सकता है।

इसके अलावा, ईरान की प्रतिक्रिया अब तक शांत रही है, लेकिन इस बात की संभावना कम है कि वह हिजबुल्ला को त्याग देगा।

अंततः, आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि दोनों पक्ष बातचीत के लिए आगे आएं। लेबनान में इजराइल की वर्तमान रणनीति के कारण जिस पैमाने पर लोगों की जान गई है, उसके मद्देनजर स्थिति पर विचार करने की आवश्यकता है। इस बात की पूरी संभावना है कि इस रणनीति से और अधिक नफरत पैदा होगी, इससे एक स्थायी शांति के लिए आधार बनाने के बजाय इजराइल विरोधी लड़ाकों की एक नयी पीढ़ी को बढ़ावा मिलेगा।

(द कन्वरसेशन) सिम्मी मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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