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Monday, 8 September, 2025
होमविदेशपुलिस फायरिंग में कम से कम 19 की मौत, नेपाल के युवा क्यों हैं ओली सरकार से नाराज़

पुलिस फायरिंग में कम से कम 19 की मौत, नेपाल के युवा क्यों हैं ओली सरकार से नाराज़

ओली सरकार द्वारा रातों-रात 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगाने के बाद नए विरोध भड़क उठे, लेकिन इस आंदोलन की जड़ में कुछ और गहरी वजहें हैं.

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नई दिल्ली: नेपाल की सड़कों पर एक बार फिर आक्रोष जारी है—इस बार मुद्दा है बोलने और विरोध करने का अधिकार. महीनों पहले जब देश में राजशाही समर्थक विरोध तेज़ हुए थे, उसके बाद अब के.पी. शर्मा ओली सरकार के खिलाफ नए प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. वजह है कि सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर रातोंरात बैन लगा दिया है. यह बैन इसलिए लगाया गया क्योंकि इन प्लेटफॉर्म्स ने सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले नए नियमों का पालन करने से इनकार कर दिया.

लेकिन इस आंदोलन की जड़ सिर्फ यही नहीं है. इसके पीछे है एक पूरी पीढ़ी का गुस्सा—भ्रष्टाचार के खिलाफ, तानाशाही रवैये के खिलाफ और नेपाल की पहले से ही नाजुक लोकतंत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के खिलाफ.

स्थानीय खबरों के मुताबिक, अब तक कम से कम 19 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों लोग घायल हुए हैं. नेपाल के युवा सड़कों पर उतरकर जवाबदेही, पारदर्शिता और सबसे बढ़कर अभिव्यक्ति की आज़ादी की मांग कर रहे हैं.

यह बैन 4 सितंबर की आधी रात से लागू हुआ. मानवाधिकार संगठनों और पत्रकारों ने इसकी कड़ी आलोचना की. हालांकि, आईटी मंत्रालय का कहना है कि कंपनियों को अदालत के आदेश के बाद रजिस्ट्रेशन के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया था, लेकिन उन्होंने समयसीमा पूरी नहीं की. इसके बाद सभी प्लेटफॉर्म्स को “डीएक्टिवेट” करने का आदेश जारी कर दिया गया.

सप्ताहांत तक तनाव बढ़ता गया और सोमवार सुबह तक गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा. प्रदर्शन प्रधानमंत्री ओली के गृहनगर दमक तक पहुंच गया. हालात बिगड़ते देख सरकार ने इमरजेंसी सिक्योरिटी मीटिंग बुलाई है और पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है.

विरोध पर रोक और अदालत का आदेश

प्रदर्शन की वजह थी सरकार का वह आदेश, जिसमें सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नेपाल के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराने का निर्देश दिया गया.

यह प्रतिबंध महीनों की कानूनी और प्रशासनिक कोशिशों के बाद आया है, जिनका मकसद नेपाल में काम कर रहे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को रजिस्टर कराना था. यह नीति नवंबर 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहल के कार्यकाल में जारी सोशल मीडिया ऑपरेशन डायरेक्टिव्स से जुड़ी है.

द काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, मार्च 2024 से मंत्रालय बार-बार नोटिस जारी करता रहा, और आखिरकार 27 अगस्त को सात दिन का अंतिम अल्टीमेटम दिया गया था.

मंत्रालय ने सितंबर 2024 में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अपनी कानूनी मजबूती बताया. इस आदेश का पूरा टेक्स्ट 16 अगस्त 2025 को सार्वजनिक किया गया. इसके बाद बुधवार को एक और फैसला आया, जिसने गैर-पालन करने वाले प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई करने के सरकार के अधिकार को और मजबूत किया.

इस फैसले में नौ जजों की विस्तारित पीठ शामिल थी, जिसकी अगुवाई तत्कालीन चीफ जस्टिस बिश्वम्भर प्रसाद श्रेष्ठ ने की. कोर्ट ने कहा कि डिजिटल और सोशल मीडिया नेटवर्क्स का पंजीकरण, निगरानी और जवाबदेही ज़रूरी है. फैसले में खासतौर पर फेक न्यूज और झूठी जानकारी के खतरों का जिक्र किया गया, जिससे जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है.

फैसले में यह भी कहा गया कि सोशल मीडिया पर फर्जी और काल्पनिक पहचान गंभीर समस्या है. इसलिए “घरेलू या विदेशी—सभी ऑनलाइन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए, और अवांछित सामग्री पर नज़र रखने के लिए ठोस तंत्र मौजूद होना चाहिए.”

बाद में कोर्ट ने सरकार के इस अधिकार को भी सही ठहराया कि वह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, यूट्यूब और इंटरनेट ब्राउज़र्स पर भी रोक लगा सकती है, खासकर तब, जब वे नेपाल में रजिस्टर्ड न हों और विदेशी विज्ञापन दिखा रहे हों.

इन फैसलों ने ओली सरकार को यह रास्ता साफ कर दिया कि वह फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप समेत 26 लोकप्रिय प्लेटफॉर्म्स को बैन कर सके. इसी ने पूरे देश में युवाओं की अगुवाई में व्यापक विरोध की चिंगारी भड़का दी.

लेकिन यह सिर्फ इंटरनेट का मामला नहीं था. असल गुस्सा उन सालों से जमा हो रहा था, जब राजनीति में भ्रष्टाचार, आर्थिक ठहराव और अधूरे वादे ही देखने को मिले.

वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. राज कुमार शर्मा (NatStrat और NCCU ताइवान के MoFA विजिटिंग फेलो) ने दिप्रिंट से कहा, “नेपाल में जारी प्रदर्शनों की सीधी वजह सरकार का सोशल मीडिया बैन है, जिसने युवाओं को बेहद नाराज़ किया है, लेकिन इसके पीछे और भी कारण हैं. नेपाल में पुरानी पीढ़ी और युवाओं के बीच बड़ा गैप है—आर्थिक असमानता और शासन पर अलग-अलग सोच ने इस दूरी को और बढ़ा दिया है.”

उन्होंने कहा, “पुरानी पीढ़ी ने ऐतिहासिक रूप से प्रवास को बढ़ावा दिया और उनका नज़रिया ज्यादा परंपरागत है, लेकिन युवा सुधार चाहते हैं, वे भ्रष्टाचार और देश में अवसरों की कमी से परेशान हैं. सोशल मीडिया के जरिए वे इन मुद्दों को उठाते रहे हैं, जिसने सरकार को चिंता में डाल दिया. कुछ युवाओं ने नेपाल के उन एलीट परिवारों को भी निशाना बनाया है, जिनके बच्चे बेहतरीन शिक्षा और नौकरियां पाते हैं, जबकि आम युवा संघर्ष झेलते हैं.”

पूर्व माओवादी नेता पुष्प कमल दाहल उर्फ प्रचंड ने भी युवाओं की मांग का समर्थन किया और रविवार को एक्स पर लिखा: “सोशल मीडिया पर लगाया गया बैन हटाया जाए और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाई गई मांगों को तुरंत संबोधित किया जाए. सरकार को हालात बिगड़ने से रोकने के लिए ठोस और जिम्मेदार कदम उठाने चाहिए.”

उन्होंने पहले यह भी कहा था, “सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाना सरकार का गलत कदम है. युवाओं द्वारा भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ किया जा रहा विरोध बिल्कुल स्वाभाविक है. सरकार को विरोध दबाने के लिए बल प्रयोग की हिम्मत नहीं करनी चाहिए. साफ है कि हमारा आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी रहेगा.”

सोमवार सुबह काठमांडू के मैतीघर मंडला पर हज़ारों युवा किताबें लेकर जमा हुए. किताबें इस बात का प्रतीक थीं कि युवा, शिक्षा और विरोध – सब एक साथ जुड़े हैं. यह रैली हामी नेपाल नाम की एक एनजीओ ने आयोजित की थी. उन्होंने पहले से अनुमति भी ली थी, लेकिन माहौल अचानक बेकाबू हो गया.

प्रदर्शनकारियों ने संसद के पास लगे बैरिकेड तोड़ दिए, जिसके बाद नया बानेश्वर इलाके में हिंसक झड़पें हुईं. पुलिस ने जवाब में आंसू गैस, पानी की बौछार, लाठीचार्ज और आखिर में ज़िंदा गोलियों का इस्तेमाल किया.

स्थिति और बिगड़ गई जब बुधवार को खबर आई कि ओली सरकार ने गुपचुप तरीके से चीन की ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव (GSI) का समर्थन किया है. यह बीजिंग की अगुवाई वाला सुरक्षा ढांचा है, जिस पर आरोप है कि यह डिजिटल और नागरिक आज़ादी पर नियंत्रण बढ़ाने वाला मॉडल है.

हालांकि, नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर राय ने 4 सितंबर को तुरंत सफाई दी कि नेपाल ने सिर्फ ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (GDI) को समर्थन दिया है, न कि GSI या ग्लोबल सिविलाइजेशन इनिशिएटिव (GCI) को, लेकिन तब तक विरोध और अविश्वास बढ़ चुका था.

जानकारों के मुताबिक, पहले से विदेशी दखल को लेकर सतर्क प्रदर्शनकारियों ने इस कथित समर्थन को नेपाल की संप्रभुता और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता माना. यहां तक कि नेपाल का विपक्ष भी इसके पक्ष में नहीं था.

नेपाल की प्रतिनिधि सभा में सांसदों ने बुधवार को प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली से इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगा. चीन के इस दावे ने नेपाल की लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्ष विदेश नीति से भटकने की आशंका को बढ़ा दिया है.

पिछले 16 सालों में नेपाल में 14 सरकारें बदली हैं. हर गठबंधन पिछली बार से भी तेज़ी से टूटता है. इस अस्थिरता ने भ्रष्टाचार, युवा बेरोज़गारी, पलायन और कर्ज़ बढ़ाया है. अब कई नेपाली युवाओं को अपने देश में कोई भविष्य नज़र नहीं आता, जब तक हालात में बड़ा बदलाव न हो.

एक स्थानीय पत्रकार ने दिप्रिंट से नाम न बताने की शर्त पर कहा, चीन के प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा के बीच नेपाल भू-राजनीतिक खींचतान में उलझा है, जबकि जनता को अपने ही स्थानीय मुद्दों, रोज़गार, न्याय और आज़ादी का हल चाहिए.

नेपाल इस साल की शुरुआत से ही उथल-पुथल में है. मार्च में राजतंत्र समर्थक गुट फिर उभरे और उन्होंने संविधानिक राजशाही बहाल करने और नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करते हुए प्रदर्शन किए. इन प्रदर्शनों में कम से कम दो लोगों की मौत हुई, जिनमें एक पत्रकार भी शामिल था, और दर्जनों लोग घायल हुए.

अब तो अखबारों के संपादकीय भी चेतावनी दे रहे हैं कि नेपाल का लोकतंत्र बेहद नाज़ुक स्थिति में है और हाल ही में दक्षिण एशिया में सरकारें इसी तरह के प्रदर्शनों से गिरी हैं.

द काठमांडू पोस्ट ने लिखा, “सरकार युवाओं को हल्के में ले तो यह मूर्खता होगी. ऐसे अचानक उठे युवा-आंदोलन पहले भी मज़बूत सरकारों को गिरा चुके हैं—यहां तक कि हमारे पड़ोस बांग्लादेश में भी. इन आंदोलनों की अपनी रफ्तार होती है और इनके नतीजों का अनुमान लगाना असंभव है, लेकिन दुनिया भर में इन्हें हवा मिलती है तब, जब ‘पुरानी व्यवस्था’ युवाओं की चिंताओं को नज़रअंदाज़ करती है और अभिव्यक्ति की आज़ादी दबाने की कोशिश करती है. नेपाली युवाओं का गुस्सा भी जायज़ है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने का फैसला सही था ताकि उन्हें नेपाल की कानूनी और सामाजिक वास्तविकताओं से मिलाया जा सके, लेकिन इसे लागू करने का तरीका पूरी तरह गलत था.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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