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Friday, 1 November, 2024
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तालिबान के काबिज होते ही काबुल और दिल्ली दोनों जगह अफगान छात्रों को भय, अनिश्चितता के माहौल ने घेरा

अफगानिस्तान में फंसे ऐसे कई छात्र इसी तरह की बेबसी जता रहे हैं. वे अब भारत सरकार की तरफ से देश से बाहर वाणिज्यिक उड़ानें शुरू किए जाने का इंतजार कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) में इसी साल प्रवेश लेने वाले 27 वर्षीय छात्र इस्माइल सखी जादा ने पिछले एक हफ्ते से काबुल में अपने घर के बाहर कदम तक नहीं रखा है. उसने दिप्रिंट को बताया कि तालिबान हर जगह हैं और उन लोगों के लिए बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है.

इस्माइल उन तमाम अफगान छात्रों में शामिल हैं, जिन्हें साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिल चुका है. यद्यपि वह अपनी शिक्षा जारी रखना चाहता है, लेकिन तनावपूर्ण माहौल में पढ़ाई पर ध्यान देना उसके लिए कठिन होता जा रहा है और इसलिए वह अब कक्षाएं लेने के लिए भारत आना चाहता है.

उसने फोन पर दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘हम एक खतरे में जी रहे हैं और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हमारे छात्र वीजा तैयार हैं लेकिन एयरपोर्ट बंद हो गया है और हमारे पास कहीं जाने का कोई साधन नहीं है.’

तालिबान ने काबुल के हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है और कथित तौर पर भागने की कोशिश में यहां पहुंचे स्थानीय निवासियों से कहा है कि घर लौट जाएं.

अफगानिस्तान में फंसे ऐसे कई छात्र इसी तरह की बेबसी जता रहे हैं. वे अब भारत सरकार की तरफ से देश से बाहर वाणिज्यिक उड़ानें शुरू किए जाने का इंतजार कर रहे हैं.


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काबुल में फंसे एक अन्य एसएयू छात्र मोहम्मद शफीक शायन ने सार्क देशों से ऐसे ‘अराजकता और अफरा-तफरी भरे माहौल से बाहर निकालने’ में मदद करने की अपील की है.

उसने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘मेरे जैसे कई अफगान छात्रों ने अपना वीजा हासिल कर लिया है. लेकिन काबुल एयरपोर्ट पर मानवीय संकट के कारण हमारे पास इस अराजकता और अनिश्चितता से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है. हम मदद करने को तैयार सभी लोगों, खासकर एसएयू प्रशासन, से यही कह रहे हैं कि किसी भी तरह हमारे लिए एक फ्लाइट की व्यवस्था करने पर ध्यान दें. अगर सार्क अधिकारियों से आग्रह किया जाए तो वे भारतीय विदेश मामलों के मंत्रालय के सहयोग से इसका इंतजाम कराने में सक्षम हो सकते हैं. हम राजधानी में एक नाकाम प्रशासनिक स्थिति, अराजकता, अफरा-तफरी और अनिश्चितता से गुजर रहे हैं.’

हालांकि, यह अनिश्चितता केवल काबुल में फंसे लोगों तक ही सीमित नहीं है.

पहले से ही दिल्ली में मौजूद और दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अफगान छात्र वीजा विस्तार और नौकरियों के लिए मदद के बाबत यूनिवर्सिटी प्रशासन से संपर्क कर चुके हैं.

डीयू के ऐसे ही एक छात्र, जो अपना नाम नहीं देना चाहता था, ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे परिवार हर दिन मौत से लड़ रहे हैं. यद्यपि वे खुद तो पीड़ित हैं, लेकिन यह नहीं चाहते कि हमें कोई कष्ट हो. हम चाहते हैं कि हमारा वीजा बढ़ाया जाए ताकि हम नौकरी और दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने में सक्षम हो सकें. हम इससे ज्यादा कुछ नहीं मांग रहे.’

जेएनयू के अफगान छात्र भी अपने भारतीय समकक्षों से संपर्क कर अपने यूनिवर्सिटी प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

यूनिवर्सिटी बोलीं—‘ज्यादा कुछ नहीं’ किया जा सकता

एक तरफ जब छात्र भारत सरकार की तरफ से कोई कदम उठाए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया कि इस समय वे ‘ज्यादा कुछ नहीं’ कर सकते.

एसएयू के प्रवक्ता ने कहा, ‘विदेश मंत्रालय हमारी नोडल एजेंसी है. और हाल ये है कि फिजिकली उनकी वहां मौजूदगी नहीं है, इसलिए बहुत कुछ तो नहीं किया जा सकता. जब ये सब घटनाक्रम चल रहा था तभी हमने अपने तमाम छात्रों को भारत आने को कहा था. हमारे अधिकांश छात्रों को उनका वीजा मिल गया है, इसलिए यूनिवर्सिटी ने तो उनकी भारत वापसी में मदद के लिए जो कुछ भी हो सकता था, कर दिया है. लेकिन स्थिति यह है कि अफगानिस्तान से फिलहाल कोई फ्लाइट नहीं आ रही है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे अधिकांश शोध छात्र और पूर्व छात्र लौटने में कामयाब रहे हैं और छह छात्र हाल ही में आए हैं. वे अभी क्वारंटाइन में हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक सदस्यों की प्रतिक्रिया भी ऐसी ही थी.

डीयू के विदेशी छात्र विभाग के डिप्टी डीन डॉ. अमरजीवा लोचन ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस वर्ष डीयू में 150 से अधिक अफगान छात्र थे, लगभग 30-40 छात्र 1 जुलाई को अपना कोर्स पूरा करने के बाद अपने वतन लौट गए. बाकी छात्र जिनके कोर्स एक महीने में खत्म होने वाले हैं, गुरुवार शाम को हमसे मिले और उन्होंने अपनी चिंताओं को हमारे सामने रखा.’

छात्रों की तरफ से उठाई गई प्रमुख चिंताओं में उनके छात्र वीजा के विस्तार का अनुरोध शामिल था. इस आग्रह के बारे में बताते हुए प्रो. लोचन ने कहा, ‘चूंकि यह मुद्दा विदेश मंत्रालय के दायरे में आता है, हम केवल सिफारिश ही कर सकते हैं, जो हम करेंगे भी.’

छात्रों ने अपने परिवार की सुरक्षा और नौकरियां मिलने को लेकर भी चिंता जताई है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने कहा, ‘इतने कम समय में प्लेसमेंट कराना बाजार में महामारी से कारण कायम अनिश्चितता को देखते हुए एक चुनौतीपूर्ण काम होगा. लेकिन एक यूनिवर्सिटी के तौर पर हम उनकी चिंताएं दूर करने की कोशिश कर रहे हैं और उपलब्ध विकल्पों और साधनों को तलाश रहे हैं जिससे हम उनकी बेहतर ढंग से मदद कर पाएं.’

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने 13 अगस्त को यूनिवर्सिटी प्रशासन को पत्र लिखकर अफगान छात्रों के वीजा का विस्तार करने का आग्रह किया था.

पत्र के जवाब में जेएनयू के रजिस्ट्रार ने 18 अगस्त को एक नोटिस जारी करके कहा था, ‘जेएनयू के सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों (जिनका वीजा जल्द ही समाप्त होने वाला है) को सूचित किया जाता है कि वे आवश्यक प्रामाणिक प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए संबंधित स्कूल/विशेष केंद्रों के डीन/चेयरपर्सन से संपर्क कर सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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