नई दिल्ली: अल-कायदा नाम से चर्चित हुए जेहादी आंदोलन के संस्थापक अब्दुल्लाह आजम ने लिखा, ‘इतिहास में खून के अलावा कोई लाइन नहीं लिखी जाती.’ आगे लिखा, ‘जो सोचते हैं कि बिना खून-खराबे, कुरबानी और नाजायज तरीके अपनाए हकीकत या समाज को बदल सकते हैं, वे इस मजहब का मर्म नहीं समझते हैं. फख्र करने की शानदार इमारत नरमुंडों के बिना नहीं बनती.’
आजम के ख्यालों से रोशन होकर अफगानिस्तान पहुंचने के पैंतिस साल बाद मिस्र में जन्मा जेहादी सैफ अल-अदेल अल-कायदा के तीसरे अमीर का जिम्मा संभालेगा. दो अल-कायदा मुखिया ओसामा बिन लादेन और अयमान अल-जवाहिरी मारे जा चुके हैं. अल-कायदा का नया मुखिया आतंकी कार्रवाई में अपनी काबिलियत का प्रदर्शन कर चुका है. ओसामा बिन लादेन के पूर्व अंगरक्षक नासेर अल-बहरी ने अपने संस्मरण में उसे ऐसा लीडर बताया है, जो ‘बेकसूरों की मौत से लगभग बेफिक्र’ रहता है.
फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के पूर्व एजेंट अली सौफान के मुताबिक, अल अदेल ने 1987 में अपने परिवार से यह कहकर सऊदी अरब की उड़ान पकड़ ली कि वह मक्का में हज करेगा और फिर कोई काम तलाशेगा. उसके बाद परिवार वालों को उसका कोई पता-ठिकाना नहीं मिला. अगले साल परिवार को बताया गया कि अदेल एक कार दुर्घटना में मारा गया. बाद में मिस्र की एक अदालत ने उसे मृत घोषित कर दिया.
इन गर्मियों में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध मॉनिटरों ने खुलासा किया कि मृत बताए गए मिस्रवासी को अल-जवाहिरी का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया है. दूसरे गुप्त संगठनों की तरह अल-कायदा में भी उत्तराधिकार की पक्की और पहले से तैयार सूची रहती है. यह सूची आंतरिक काउंसिल हित्तिन कमेटी तय करती है. हाल के दौर में ओसामा बिन लादेन के बेटे हमजा सहित अल-कायदा के दस कमांडर मारे गए हैं. लेकिन टोर हैमिंग ने लिखा है, अल-कायदा का कमांड सिलसिला मजबूत बना हुआ है.
अल-अदेल के बाद इस सिलसिले में मोरक्को में जन्मे मुहम्मद अबयताह उर्फ अब्देल-रहमान अल-मगरेबी, उत्तरी अफ्रीका में अल-कायदा के सहयोगी संगठनों के कमांडर अल्जीरियाई यूसुफ अल-अनाबी, और पूर्वी अफ्रीका में संगठन के सहयोगी अल-शबाब के मुखिया अहमद उबयदाह हैं.
आतंक के ट्रेनर
अल-अदेल 1989 में अफगानिस्तान में अल-कायदा के अल-फारूक ट्रेनिंग कैंप में रंगरूटों को ट्रेनिंग देने आया. बाद में वह कैंप का मुखिया बन गया. उसके जेहादी चेलों में 1993 में वल्र्ड ट्रेड सेंटर में बम लगाने वाला रमजी यूसुफ और पांच साल बाद नैरोबी तथा दर-ए-सलम में अमेरिकी दूतावासों में बम हमले में शामिल दल का मुखिया हारून फाजुल था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे. यह सवाल अभी अनुत्तरित है कि उसने यही करने के इरादे से मिस्र छोड़ा था, या सऊदी अरब में अल-कायदा से जुड़ गया.
अल-अदेल ने मिस्र के जेहादी मुस्तफा हमीद से गहरे रिश्ते कायम कर लिया. हमीद ने आतंक विरोध विश्रेषक लेह फर्राल के साथ मिलकर अल-कायदा की अंदरूनी दास्तान के बारे में लिखा है. बाद में अल-अदेल ने हमीद की किशोरवय बेटी आस्मा से शादी कर ली. अल-अदेल 1992 में खारतौम चला गया और अल-कायदा में अपने जेहादी साथी मुहम्मद ओदेह से कहा कि उसक इरादा ‘दुनिया के दूसरे हिस्सों में जेहाद ले जाना है.’
यह अटकल है कि उसने सोमाली लडक़ों को ट्रेनिंग दी, जिन्होंने 1993 में मोगादिसू में अमेरिका के दो हेलिकॉप्टरों को गिरा दिया था, जिसमें 18 सैनिक मारे गए थे. इस दावे की पुष्टि के लिए सबूत न के बराबर हैं, हालांकि अल-अदेल ने जो नेटवर्क बनाए, वह अब खतरनाक अल-शबाब के रूप में तैयार हो गया है.
चार साल बाद अमेरिका के दबाव में अल-अदेल और अल-कायदा के दूसरे प्रमुख कमांडर खारतौम से निकल गए. वे सभी एक प्राइवेट जेट से जलालाबाद पहुंचे और स्थानीय लड़ाकों के मुहैया कराए एक महल में रुके. माना जाता है कि अल-अदेल ने जेहादियों की ट्रेनिंग शुरू कर दी. वह अल कायदा के शुरुआती डिजिटल कम्युनिकेशन में शामिल था और पहले क्रिप्टोग्राफिक सिस्टम की डिजाइन की थी.
9/11 के खिलाफ था
अमेरिकी दूतावासों पर 1998 के बम हमलों से अल-कायदा को तालिबान की शह की गहराई का अंदाजा लग गया था, जिसमें कथित तौर पर अल-अदेल ने प्रमुख सांगठनिक भूमिका निभाई थी. अमेरिका से सिर्फ एक ज्ञात बातचीत में तालिबान के मुखिया मुल्ला मुहम्मद उमर ने बिन लादेन को गिरफ्तार करने की मांग साफ-साफ ठुकरा दी थी.
अब उजागर हुए गुप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि इसके बदले मुल्ला उमर ने कहा कि कांग्रेस तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को इस्तीफा देने और पश्चिम एशिया से अमेरिकी फौज हटाने का दबाव बनाए.
इससे निश्चिंत होकर कि अमेरिका अफगानिस्तान पर हमले नहीं करेगा, तालिबान ने अल-कायदा को अपनी आतंकी मुहिम चलाने दी. अल-कायदा ने 2000 में फिर अमेरिका की जंगी जहाज कोल पर हमला बोला. हालांकि ससुर हमीद के मुताबिक, अल-अदेल ने 9/11 हमले की योजना का विरोध किया था. उसकी दलील थी कि इस बड़ी मुहिम से अमेरिका तालिबान के खिलाफ जंग छोडऩे पर मजबूर होगा और इस तरह अल-कायदा का इन्फ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो जाएगा. हमीद का दावा है कि अल-कायदा काउंसिल के ज्यादातर लोग इससे सहमत थे, लेकिन बिन लादेन अड़ा रहा.
अल-अदेल ने एक प्रमुख पाकिस्तानी जेहादी खालिद शेख मुहम्मद को नाराजगी भरी चिट्ठी लिखी, ‘छह महीने में हमने वह सब गंवा दिया, जिसे बनाने में कई साल लगे थे.’ तालिबान की बर्बादी के बाद अल-अदेल ईरान भाग गया, जहां वह कम से कम दो साल जेल में रहा. हालांकि 2007 के बाद उसे और दूसरे अल-कायदा लीडरों को कुछ हद तक आजादी दे दी गई. कम से कम एक मौके पर अल-अदेल पाकिस्तान आया और उसने सीरिया में अल-कायदा के ऑपरेशन में मदद की.
यमन में 2014 में तेहरान के वाणिज्य दूतावास पर जेहादी बम हमले से अल-कायदा और ईरान के रिश्ते खट्टे हो गए. ईरान ने 2015 में अगवा किए गए एक ईरानी राजनयिक के बदले छह अल-कायदा लीडरों को रिहा कर दिया, जिसमें अल-अदेल भी था. फिलहाल उनके ठिकानों का कुछ अता-पता नहीं है.
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