वाशिंगटन: राष्ट्रपति जो बाइडन लोकतंत्र पर दो दिवसीय डिजिटल शिखर सम्मेलन का समापन चुनावी ईमानदारी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, निरंकुश शासनों का मुकाबला और स्वतंत्र मीडिया को मजबूत बनाने के संकल्प के साथ करना चाहते हैं.
शिखर सम्मेलन के पहले दिन, बाइडन ने स्वतंत्र मीडिया, भ्रष्टाचार रोधी कार्यों और अन्य का समर्थन करने के लिए दुनिया भर में 42.4 करोड़ डॉलर तक खर्च करने की अमेरिका की योजना की घोषणा की. इस पहल की घोषणा उन्होंने दुनिया भर में लोकतंत्र की कथित खतरनाक स्थिति को पलटने के लिए विश्व के नेताओं से उनके साथ काम करने का आह्वान करते हुए की.
बाइडन ने पूछा, ‘क्या हम अधिकारों और लोकतंत्र के अवमूल्यन को अनियंत्रित रूप से जारी रहने देंगे? या हम साथ मिलकर एक दृष्टिकोण बनाएंगे और एक बार फिर मानव प्रगति और मानव स्वतंत्रता की यात्रा को आगे बढ़ाने का साहस दिखाएंगे?’
राष्ट्रपति शुक्रवार दोपहर समापन कार्यक्रम को संबोधित करने वाले हैं.
उन्होंने चीन और रूस का नाम लिये बिना बार-बार यह बात उठाई कि अमेरिका और समान विचारधारा वाले सहयोगियों को दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि लोकतंत्र निरंकुशता की तुलना में समाज के लिए एक बेहतर माध्यम है. यह बाइडन की विदेश नीति के दृष्टिकोण का एक केंद्रीय सिद्धांत है – एक ऐसी प्रतिबद्धता है जिसे वह अपने पूर्ववर्ती ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण की तुलना में अधिक समावेशी बताते हैं.
बृहस्पतिवार को हुए इस सम्मेलन की अमेरिका के मुख्य विरोधियों और अन्य देशों ने आलोचना की जिन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था. अमेरिका में चीन और रूस के राजदूतों ने एक संयुक्त लेख लिखा जिसमें बाइडन प्रशासन को ‘शीत-युद्ध की मानसिकता” का प्रदर्शन करने वाला बताया गया, जो “वैचारिक टकराव को हवा देगा और दुनिया में दरार पैदा करेगा.’
शिखर सम्मेलन में अन्य नेताओं ने लोकतंत्र की स्थिति पर अपनी-अपनी टिप्पणी दी – जिनमें से कई रिकॉर्डेड थीं. उनकी टिप्पणियों में तेजी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकी के उनके राष्ट्रों पर पड़ रहे तनाव को दर्शाया गया. उन्होंने संस्थानों और चुनावों को कमजोर करने के उद्देश्य से दुष्प्रचार अभियानों की वृद्धि पर भी शोक व्यक्त किया.
डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसन ने कहा, ‘लोकतांत्रिक बातचीत बदल रही है. नई प्रौद्योगिकियां और बड़ी तकनीकी कंपनियां लोकतांत्रिक संवाद के लिए तेजी से मंच तैयार कर रही हैं, जहां कभी-कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तुलना में पहुंच पर अधिक जोर दिया जाता है.’
शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूक्रेन सीमा पर रूस ने सैनिकों को बड़े पैमाने पर इकट्ठा किया है और बाइडन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर उन्हें पीछे हटाने का दबाव बना रहे हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने ट्विटर पर कहा, ‘लोकतंत्र मिलता नहीं है, इसके लिए लड़ना पड़ता है.’
पोलैंड के आंद्रेज डूडा ने अपने संबोधन में रूस के खिलाफ बात की और बेलारूस को दिए जा रहे मॉस्को के समर्थन की निंदा की.
पुतिन ने बृहस्पतिवार को शिखर सम्मेलन पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की. उन्होंने ‘क्रेमलिन काउंसिल फॉर ह्यूमन राइट्स’ के सदस्यों के साथ वीडियो कॉल में भाग लिया.
‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि पिछले एक दशक में लोकतांत्रिक अवमूल्यन का अनुभव करने वाले देशों की संख्या ‘कभी भी इतनी अधिक नहीं रही’, जिसमें अमेरिका को भारत और ब्राजील के साथ सूची में जोड़ा गया.
चीनी अधिकारियों ने शिखर सम्मेलन को लेकर काफी सार्वजनिक आलोचना की. उन्होंने ताइवान को इसमें आमंत्रित करने पर भी नाराजगी व्यक्त की है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सम्मेलन में भाग लेने से इनकार कर दिया. बैठक से पहले जारी एक बयान में, विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हम अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को महत्व देते हैं, जिसे हम द्विपक्षीय और साथ ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के संदर्भ में विस्तारित करना चाहते हैं.’
जिन देशों को नहीं आमंत्रित किया गया था,उन्होंने भी अपनी नाराजगी दिखाई है. हंगरी, एकमात्र यूरोपीय संघ सदस्य जिसे आमंत्रित नहीं किया गया, ने यूरोपीय संघ आयोग के अध्यक्ष को शिखर सम्मेलन में गुट की ओर से बोलने से रोकने का असफल प्रयास किया. पिछले साल, बाइडन ने हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन को “ठग” बताया था.
हंगरी के विदेश मंत्री पीटर सिज्जार्टो ने शिखर सम्मेलन को ‘घरेलू राजनीतिक-प्रकार के कार्यक्रम’ के रूप में खारिज करते हुए कहा कि जिन देशों के नेताओं के ट्रंप के साथ अच्छे संबंध थे, उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया.