नई दिल्ली: अमेरिकी सरकार ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य मदद निलंबित कर दी है, क्योंकि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की पर रूस के साथ युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत में शामिल होने का दबाव बना रहे हैं.
ट्रंप के सोमवार को कीव की सैन्य सहायता रोकने का आदेश देने से पहले, पिछले शुक्रवार को ओवल ऑफिस में ज़ेलेंस्की के साथ हुई तीखी बहस हुई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने यूक्रेनी राष्ट्रपति की कड़ी आलोचना की थी. उनका मानना है कि ज़ेलेंस्की ने अब तक वाशिंगटन से मिली सैन्य सहायता के लिए पर्याप्त आभार नहीं जताया है.
व्हाइट हाउस अधिकारियों के मुताबिक, ट्रंप का मानना है कि जब तक ज़ेलेंस्की यह नहीं दिखाते कि वह रूस के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार हैं, तब तक सैन्य सहायता निलंबित रहेगी. इस फैसले से लगभग 1 अरब डॉलर के हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति प्रभावित होगी, जिसे कीव को भेजा जाना था.
सोमवार देर रात ट्रंप ने ज़ेलेंस्की पर हमला बोलते हुए उनकी लंदन में दी गई उस टिप्पणी की आलोचना की, जिसमें उन्होंने कहा था कि रूस के साथ शांति “बहुत, बहुत दूर” है.
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल‘ पर लिखा, “यह ज़ेलेंस्की द्वारा दिया गया अब तक का सबसे खराब बयान है, और अमेरिका इसे ज्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं करेगा! मैं पहले ही कह रहा था, यह आदमी तब तक शांति नहीं चाहता जब तक उसे अमेरिका का समर्थन मिल रहा है. यूरोप ने ज़ेलेंस्की के साथ बैठक में साफ कह दिया कि वे अमेरिका के बिना यह काम नहीं कर सकते.”
हथियारों और गोला-बारूद के ट्रांसफर को पूरी तरह निलंबित करने का यह कदम युद्ध के नाजुक मोड़ पर ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच दरार को और गहरा कर देता है. इससे रूस को युद्ध के मैदान में और अधिक क्षेत्रीय बढ़त हासिल करने का मौका मिल सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने युद्ध समाप्त करने की जिम्मेदारी अब यूक्रेन पर डाल दी है, जबकि इस संघर्ष की शुरुआत खुद मॉस्को ने की थी.
24 फरवरी 2022 की तड़के, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने “विशेष सैन्य अभियान” की घोषणा की थी, जिससे दोनों पूर्वी यूरोपीय देशों के बीच खुला संघर्ष शुरू हुआ. हालांकि, 2014 से ही यूक्रेन और रूस के बीच तनाव बना हुआ था, जब मॉस्को ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था.
ट्रंप के इस कड़े फैसले ने अमेरिका को अपने यूरोपीय सहयोगियों से भी दूर खड़ा कर दिया है. ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी सहित कई अमेरिकी सहयोगी देशों ने रविवार को कीव को और अधिक समर्थन देने का संकल्प लिया, भले ही अमेरिका और यूक्रेन के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं. हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या यूरोपीय देश यूक्रेन की रक्षा के लिए पर्याप्त हथियारों का भंडार रखते हैं, जिससे युद्ध में कोई बड़ा अंतर आ सके.
ट्रंप ने पहले भी सहायता में कटौती की
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने यूक्रेन की अहम मदद रोकी है. इससे पहले, जुलाई 2019 में, उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन और उनके बेटे हंटर बाइडेन की जांच कराने के लिए ज़ेलेंस्की पर दबाव डाला था. उस समय, ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में न्यूयॉर्क के पूर्व मेयर रुडोल्फ गिउलिआनी समेत कई सहयोगियों का इस्तेमाल करके ज़ेलेंस्की को बाइडेन परिवार की जांच के लिए मजबूर करने की कोशिश की थी. इसके चलते अमेरिकी संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) ने ट्रंप पर महाभियोग लगाया था, हालांकि फरवरी 2020 में सीनेट ने उन्हें बरी कर दिया था.
ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वे राष्ट्रपति बनते ही पहले ही दिन युद्ध खत्म कर देंगे, लेकिन उनके पद ग्रहण करने के 45 दिन बाद भी शांति समझौता नहीं हो पाया है.
हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने पुतिन से संपर्क बनाए रखा है. फरवरी में ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति के साथ एक घंटे तक फोन पर बातचीत की थी. इसके कुछ दिनों बाद, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की थी.
इन बैठकों में यूक्रेन युद्ध समाप्त करने पर चर्चा हुई, लेकिन यूक्रेन को इसमें शामिल नहीं किया गया. ट्रंप प्रशासन यूक्रेन को एक खनिज सौदे पर साइन करने के लिए भी दबाव डाल रहा था, जिसे ज़ेलेंस्की अपने अमेरिकी दौरे के दौरान साइन करने वाले थे. लेकिन व्हाइट हाउस में हुई असफल बैठक के बाद ज़ेलेंस्की को वहां से चले जाने के लिए कह दिया गया और यह सौदा अधर में लटक गया.
ट्रंप के इस फैसले ने उनकी विदेश नीति को उनके पारंपरिक सहयोगियों के खिलाफ ला खड़ा किया है. पिछले हफ्ते, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में यूरोपीय देशों द्वारा प्रस्तावित एक प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया, जिसमें रूस की निंदा की गई थी. अमेरिका ने रूस और कुछ अन्य देशों के साथ मिलकर इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया.
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