नई दिल्ली: रविवार को काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान के अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के बीच अटकलें तेज़ हो गई हैं कि अब देश की अगुवाई कौन करेगा.
प्रमुख रूप से पश्तूनों की अगुवाई वाले इस्लामी कट्टरपंथी ग्रुप तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में राज किया था, जब 11 सितंबर के हमलों के बाद अमेरिका ने इस देश पर हमला कर दिया था.
अभी बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं है कि आतंकी ग्रुप देश की अगुवाई के लिए किसे नामित करेगा. लेकिन इसके पास कई शीर्ष नेता मौजूद हैं.
संभावित तालिबान नेताओं पर, जो विद्रोहियों का कब्जा पूरा हो जाने के बाद देश की अगुवाई कर सकते हैं, दिप्रिंट उनपर नज़र डाल रहा है.
यह भी पढ़ें: हफ्ते में 6 दिन 12 घंटे पैदल चलकर तमिलनाडु में नीलगिरी चाय बागान मजदूरों को कैसे लगाए गए कोविड वैक्सीन
हैबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा- सुप्रीम लीडर
तालिबान सैन्य समूह के मौजूदा सुप्रीम लीडर 60 वर्षीय हैबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा ने 2016 में ग्रुप की कमान अपने हाथ में ली थी, जब उनके पूर्ववर्ती मुल्ला मंसूर अख़तर की एक अमेरिकी ड्रोन हमले में हत्या कर दी गई थी.
तालिबान आंदोलन की जन्मभूमि कहे जाने वाले अफगानिस्तान के दक्षिणी प्रांत कंधार में जन्मे अख़ुंदज़ादा, उसी साल संगठन में शामिल हो गए, जब 1994 में इसकी स्थापना हुई.
मंसूर की मौत के बाद अपेक्षा की जा रही थी कि वो तालिबान आंदोलन को एकजुट करेंगे, जो कई बंटवारों से गुज़र रहा था और नाराज़ नेताओं का एक वर्ग आरोप लगा रहा था कि एक साल से अधिक समय तक तालिबान संस्थापक मुल्लाह उमर की मौत की खबर को छिपाए रखकर, मंसूर ने उन्हें धोखा दिया था.
अख़ुंदज़ादा एक धर्मगुरू थे जो किसी से ज़्यादा घुलते-मिलते नहीं थे और उस समय अल-कायदा चीफ एमान अल-ज़वाहिरी ने उन्हें अमीर-उल-मोमिनीन यानी खलीफा करार दिया था, जिससे उन्हें ग्रुप के पुराने सहयोगियों के साथ अपनी जिहादी साख को मज़बूत करने में मदद मिली.
लेकिन उन्हें ज़्यादातर एक इस्लामी धर्मगुरू के रूप में देखा जा रहा है, जिनके पास कोई सैन्य अनुभव नहीं है और उनके पास ज़्यादातर तालिबान के फतवे जारी करने का ही ज़िम्मा रहा है.
अख़ुंदज़ादा कथित रूप से क्वेटा के पास एक मदरसा चलाते हैं, जो उत्तरी बलोचिस्तान में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर बसा एक शहर है. तालिबान के बहुत से शीर्ष कमांडर्स इस मदरसे में पढ़े हैं.
लेकिन इसी साल के शुरू में अफगानिस्तान के दैनिक अखबार हश्त-ए-सुभ में छपी एक खबर के मुताबिक अख़ुंदज़ादा पिछले साल पाकिस्तान के बलोचिस्तान में एक सुरक्षित घर में हुए बम धमाके में कई दूसरे तालिबानी नेताओं के साथ मारे गए थे.
शीर्ष नेता इन आरोपों को खारिज करते रहे हैं लेकिन अभी भी साफ नहीं है कि फिलहाल वो कहां हैं.
सिराजुद्दीन हक्कानी- हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख
48 वर्षीय सिराजुद्दीन हक्कानी कुख्यात अफगान गुरिल्ला कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे हैं, जो 1980 के दशक में सोवियत सेनाओं के साथ लड़े और 1996 में तालिबान में शामिल हो गए थे. सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान के डिप्टी लीडर और हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख हैं जिसे अमेरिका ने एक आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है. इसे सबसे खतरनाक संगठनों में से एक माना जाता है, जो पिछले दो दशकों से अफगान सरकार और अमेरिका की अगुवाई वाले नैटो बलों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किए हुए हैं.
ये आतंकी संगठन आत्मघाती हमलावरों के जरिए हाई प्रोफाइल हमलों के लिए जाना जाता रहा है और इस पर शीर्ष अफगानी पदाधिकारियों की हत्या करने तथा फिरौती के लिए पश्चिमी नागरिकों को अगवा करने के आरोप भी लगते रहे हैं, जिनमें अमेरिकी सैनिक बो बर्गडाल भी शामिल है, जिसे पांच साल तक बंधक रखने के बाद 2014 में रिहा किया गया था.
हक्कानी नेटवर्क पूर्वी अफगानिस्तान के ऊबड़-खाबड़ दुर्गम पहाड़ों में कार्रवाइयों की निगरानी करता है लेकिन कथित रूप से तालिबान नेतृत्व काउंसिल में काफी प्रभाव रखता है.
पिछले साल द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक वैचारिक लेख में शांति की वकालत करते हुए सिराजुद्दीन ने लिखा, ‘अमेरिका की अगुवाई में विदेशी गठबंधन के साथ अपनी लड़ाई को हमने नहीं चुना. हमें अपने बचाव के लिए मजबूर किया गया. विदेशी बलों की वापसी हमारी पहली और सबसे बड़ी मांग रही है’.
यह भी पढ़ें: भारतीय राजनयिक और दूतावास कर्मियों को अफगानिस्तान से निकालना ‘कठिन’ अभियान रहा: एस जयशंकर
मुल्ला याकूब- मुल्ला उमर का बेटा
31 वर्षीय मुल्ला याकूब तालिबान संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा है और विद्रोहियों के ताकतवर सैन्य कमीशन का प्रमुख है, जिसके ऊपर तमाम शैडो गवर्नरों और युद्ध-क्षेत्र कमांडरों की निगरानी का जिम्मा है, जो तालिबान की रणनीतिक कार्रवाइयों को अंजाम देते हैं.
उसके पिता ने 1994 में तालिबान की स्थापना के बाद से ही आंदोलन को एकजुट करने के बाद एक बहुत बड़ी हैसियत इख़्तियार कर ली थी लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि पिछले साल इस भूमिका के लिए याकूब का चयन एक दिखावा मात्र था.
सुहेल शाहीन- तालिबान प्रवक्ता
एक और नाम जो सुर्खियों में आया है वो है तालिबान प्रवक्ता सुहेल शाहीन.
सुहेल ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी और बाद में काबुल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उन्हें काबुल टाइम्स में संपादक की नौकरी मिल गई, जो इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान के दौरान पहला सरकारी अंग्रेज़ी अखबार था.
धारा प्रवाह पश्तो और अंग्रेज़ी बोलने वाले सुहेल को पाकिस्तान स्थित अफगान दूतावास में उप-राजदूत नियुक्त किया गया था और अब वो कतर में तालिबान राजनीतिक ऑफिस में प्रवक्ता का काम करते हैं.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान में बनने वाली सरकार में गैर तालिबानियों को भी शामिल करने पर बातचीत जारी