नई दिल्ली: ईश निंदा के आरोपी 47 वर्षीय अमेरिकी नागरिक की बुधवार को पाकिस्तान के एक अदालत के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी गई.
पेशावर की एक जिला अदालत में सुनवाई के दौरान जज के सामने ताहिर नसीम को कथित तौर पर कई बार गोली मारी गई.
नसीम अहमदिया संप्रदाय के सदस्य थे- एक अल्पसंख्यक समुदाय जिसे पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम माना जाता है. पाकिस्तानी सरकार ने 1974 और 1984 के बीच पारित संवैधानिक संशोधनों और अध्यादेशों की एक श्रृंखला में इस समुदाय का बहिष्कार किया था.
हालांकि समुदाय के एक प्रवक्ता के अनुसार नसीम ने कई साल पहले अहमदिया संप्रदाय को छोड़ दिया था.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार खालिद नाम के हमलावर को गुस्से में चिल्लाते हुए सुना गया कि नसीम ‘इस्लाम का दुश्मन’ था. आरोपी को घटना स्थल से गिरफ्तार कर लिया गया.
अमेरिकी विदेश विभाग के ब्यूरो ऑफ साउथ एंड सेंट्रल एशियन अफेयर्स ने गुरुवार को इस घटना की निंदा की और पाकिस्तान सरकार से ‘तत्काल कार्रवाई’ की मांग की.
‘हम पाकिस्तान से तत्काल कार्रवाई करने और सुधार करने का आग्रह करते हैं जो इस तरह की शर्मनाक त्रासदी को फिर से होने से रोकेंगे’, ट्विटर पर ये बयान जारी किया गया.
We extend our condolences to the family of Tahir Naseem, the American citizen who was killed today inside a courtroom in Pakistan. We urge Pakistan to take immediate action and pursue reforms that will prevent such a shameful tragedy from happening again.
— State_SCA (@State_SCA) July 30, 2020
क्या आरोप थे नसीम पर
नसीम पर सबसे पहले पेशावर के एक मदरसे के छात्र अवैस मलिक द्वारा ईश निंदा का आरोप लगाया गया था. उन्होंने मलिक के साथ ऑनलाइन बातचीत की थी जब वह अमेरिका में रह रहे थे.
मलिक का हवाला देते हुए, बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि वह नसीम से बाद में पेशावर के एक शॉपिंग मॉल में मिले थे, जहां उन्होंने धर्म पर चर्चा की, जिसके बाद उन्होंने ईश निंदा के आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया. उन्हें 2018 में ‘इस्लाम के अंतिम पैगंबर’ होने का दावा करने के कारण गिरफ्तार किया गया.
ऐसा भी कहा जा रहा है कि नसीम दिमागी तौर पर परेशान थे.
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पाकिस्तान के कड़े ईश निंदा कानून
ईश निंदा कानून सबसे पहले भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया और 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान में इसे अपना लिया गया.
इन कानूनों के अनुसार, एक धार्मिक सभा को परेशान करना, शमशानों में दखलंदाज़ी करना, धार्मिक मान्यताओं का अपमान करना या जानबूझकर किसी स्थान या पूजा की वस्तु को नष्ट करने के कारण एक वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है.
कानूनों में यह भी कहा गया है कि पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईश निंदा करने वाले को मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी.
नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस (एनसीजेपी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 1987 से लेकर 2018 तक कुल 776 मुस्लिम, 505 अहमदी, 229 ईसाई और 30 हिंदुओं पर ईश निंदा कानून की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं.
हालांकि राज्य द्वारा किसी को भी मृत्यु दंड नहीं दिया गया है पर ऐसे आरोपों के बाद कई लोगों पर हमला किया गया है.
1990 के बाद से, ईश निंदा के आरोप के बाद कम से कम 77 लोग मारे गए हैं और उनमें शिक्षक, गायक, वकील और सताए गए अहमदी संप्रदाय के सदस्य शामिल हैं.
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