नई दिल्ली: अफगानिस्तान की बगराम जेल में आतंकवाद के आरोपों – जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया था- की वजह से अपने द्वारा बिताये गए वक्त के संस्मरणों को लिखते हुए मोअज़्ज़म बेग ने लिखा है, ‘दो दिन और दो रात तक मैंने पास के ही एक ‘सेल’ से एक महिला की दिल दहला देने वाली चीखें सुनीं. मुझे लगा कि मेरा दिमाग खराब हो रहा है… उन्होंने मुझे बताया कि यहां कोई महिला नहीं है. लेकिन मैं (उनकी बात से) आश्वस्त नहीं था. वे चीखें लंबे समय तक मेरे सबसे बुरे सपने में गूंजती रहीं. और बाद में मुझे ग्वांतानामो में कैद अन्य कैदियों से पता चला कि उन्होंने भी वे चीखें सुनी थीं.’
इस हफ्ते के अंत में 44 वर्षीय ब्रिटिश पाकिस्तानी मलिक फैसल अकरम ने कोलीविल, टेक्सास के एक सिनागोग में प्रवेश किया और कैदी नंबर 650 – जिस नाम से बगराम में कैद अन्य लोग इस महिला को जानते थे- की रिहाई के बदले में चार लोगों को बंधक बना लिया. अब तक, पाकिस्तानी-अमेरिकी न्यूरोसाइंटिस्ट आफिया सिद्दीकी को आजाद करवाने, या उसकी गिरफ्तारी का बदला लेने, के लिए चलाये जा रहे जिहादी अभियान में कम- से-कम 57 लोग मारे गए हैं. (टाइमलाइन के लिए नीचे देखें).
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, विभिन्न इस्लामी राजनीतिक दलों और जिहादी समूहों के बीच सिद्दीकी को मुक्त करने के अभियान का नेतृत्व करने के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा रही है, और वे उसे इस्लाम के लिए संघर्ष करने वाली और हिंसक पश्चिमी देशो के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं के सम्मान का प्रतीक बताते हैं. खान जैसे नेताओं को शायद यह उम्मीद रही है कि सिद्दीकी के लिए की जा रही उनकी वकालत उनके दुश्मनों को कमजोर कर देगी और जिहादियों के तरकश से एक और तीर निकाल देगी. पर इसके बजाय, जैसा कि सिनागोग पर हुए इस हमले से पता चलता है, उन्होंने जिहादी नैरेटिव को और मजबूत ही किया है.
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कैसे हुई ‘लेडी अल-कायदा’ की पैदाइश
‘बग्राम की ग्रे लेडी’, ‘लेडी अल-कायदा’, ‘अल-कायदा की माताहारी’: इन सब नामों से ख्यात सिद्दीकी का एक महिला जिहादी होना कोई अनूठी बात नहीं है. उसके अलावा इस्लामिक स्टेट की ‘व्हाइट विडो’ कही जाने वाली सामंथा लेथवेट, जो यकीनन दुनिया की सबसे वांछित महिला मानी जाती है, और सैली-ऐनी जोन्स, जिसे 2017 में सीरिया में अपने किशोर बेटे के साथ एक ड्रोन हमले का शिकार बनाया गया था, जैसे अन्य उदहारण भी हैं. इसके अलावा ‘इस्लामवाद’ महिला आतंकवादियों को आकर्षित करने का एकमात्र ‘मकसद’ नहीं है, जरा रेड आर्मी फैक्शन की संस्थापक सदस्य और जर्मन कम्युनिस्ट उलरिके मीनहोफ या फिर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या करने वाली थेनमोझी राजारत्नम के बारे में भी सोचिये.
कराची के एक डॉक्टर मोहम्मद सिद्दीकी और जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक के शासन से अच्छी तरह से जुडी एक सामाजिक कार्यकर्ता इस्मेत की बेटी, आफ़िया सिद्दीकी, 1990 में अपनी किशोरावस्था में ही संयुक्त राज्य अमेरिका चली गई, और वहां उसने प्रतिष्ठित माने जाने वाली शिक्षण संस्थानों – मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी – से अपनी पढाई की. 1995 में, उसने कराची के ही एक डॉक्टर अमजद खान से पारिवारिक सहमति के साथ निकाह किया और इस दंपति को एक साल बाद एक बेटा (अहमद) हुआ; जिसके बाद उनके दो और बच्चे हुए.
ऐसा लगता है कि मुस्लिम जगत से संबंधित ‘मकसदों’ ने सिद्दीकी को संयुक्त राज्य अमेरिका जाने के तुरंत बाद ही आकर्षित कर लिया था. एक छात्र के रूप में, उसने अफगानिस्तान, बोस्निया और चेचन्या में चल रहे संकटों के बारे में अभियान चलाया, पैसे जुटाए और मस्जिदों में भाषण दिया. एक शिक्षाविद, जो उसे बोस्टन में रहने के दौरान दूर से जानते थे, ने अनुमान लगाते हुए कहा, ‘संभवत:, धार्मिक उत्साह का प्रदर्शन ही आत्म-अभिव्यक्ति का एकमात्र प्रकार था जिसका उसका रूढ़िवादी परिवार विरोध नहीं करता.’
हालांकि, 9/11 की घटना के तुरंत बाद से ही उसकी इस ‘समाजिक’ सक्रियता ने फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) का ध्यान आकर्षित कर लिया था. साल 2002 में, सिद्दीकी और उसके पति से लगभग 10,000 डॉलर मूल्य के नाइट-विज़न गॉगल्स (रात में देख सकने वाले चश्मे), बॉडी आर्मर (शरीर पर पहने जाने वाला कवच) और सैन्य स्व-निर्देश पुस्तकों (मिलिट्री सेल्फ इंस्ट्रक्शन बुक्स) की खरीद के बारे में पूछताछ की गई थी. जल्द ही यह जोड़ा पाकिस्तान लौट आया, लेकिन अगस्त 2002 में उनका तलाक हो गया.
इसके बाद दिसंबर 2002 में, सिद्दीकी एक बार फिर से अमेरिका लौट गयी और इस यात्रा के बारे में उसने दावा किया कि इसका उद्देश्य शैक्षणिक पदों के लिए आवेदन करना था. बाद में जांचकर्ताओं ने अपनी जांच में पाया कि वहां बिताये उस समय के दौरान उसने माजिद खान के नाम से एक पोस्ट-ऑफिस बॉक्स भी खोला. बाल्टीमोर में रहने वाले और अल-कायदा के लिए काम करनेवाले माजिद खान के बारे में माना जाता है कि उसने इंडोनेशिया में एक होटल को बम से उड़ाने के लिए 50,000 डॉलर जुटाए थे और संयुक्त राज्य अमेरिका में पेट्रोल स्टेशनों को उड़ाने की साजिश रची थी.
यहां से, उसकी कहानी और अधिक धुंधली हो जाती है. जांचकर्ताओं का दावा है कि उसने कराची लौटने के बाद 9/11 के हमले के पीछे के मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद के भतीजे अम्मार अल-बलूची से शादी की. फिर, मार्च 2003 के अंत में – कराची में खालिद शेख मोहम्मद की गिरफ्तारी के 30 दिन बाद – वह एकदम से गायब ही हो गई. ऐसे दावे किये जाते हैं कि उसे पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई )द्वारा कैद कर लिया गया था; मगर दूसरों का मानना है कि वह मोहम्मद के परिवार के साथ छिप गई थी और उसे जैश-ए-मोहम्मद की मदद मिल रही थी.
एक अपारदर्शी कहानी
उसके साथ आगे जो कुछ हुआ वह साफ नहीं हो पाया है, लेकिन 2008 में, पत्रकार से सामाजिक कार्यकर्ता बने यवोन रिडले ने बेग की किताब में एक रहस्यमय महिला कैदी के बारे में एक उद्धरण पढ़ने के बाद सिद्दीकी का मुद्दा उठाया. बगराम के अन्य कैदियों की गवाही से, रिडले ने एक ‘भूतिया’ महिला के बारे में कई सारे विवरण प्राप्त किए, जिसने अन्य कैदियों को ‘अपने बार-बार याद आने वाली सिसकियों’ और कानों को चीरती हुई चींखों’ के साथ जगाए रखा था.
लेकिन इसी बात का सरकारी अभियोजकों द्वारा पेश किया गया संस्करण बहुत अलग है. एफबीआई का कहना कि उसके गायब होने के करीब पांच साल बाद, सिद्दीकी गजनी में दिखाई दी, जहां उसे अफगान पुलिस ने गिरफ्तार किया. एफबीआई ने यह भी आरोप लगाया है कि पूछताछ के दौरान सिद्दीकी ने एक सैनिक द्वारा अपने पैरों के पास रखी एक स्वचालित राइफल छीन ली, और उसे मारने की कोशिश की; जवाबी गोलाबारी में वह गंभीर रूप से घायल हो गई.
साल 2010 में – उसके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में किये गए कई आकलनों के अलावा कई अन्य वजहों से हुई काफी समय की देर के बाद – सिद्दीकी को संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकारियों की हत्या के प्रयास के लिए 86 साल की सजा सुनाई गई. हालांकि, उसके ऊपर अल-कायदा और आतंकवाद से उसके संबंधों के कथित आरोपों को लेकर कभी मुकदमा नहीं चलाया गया.
हालांकि, सिद्दीकी के यहूदी-विरोधी विश्वासों के प्रमाण उसके द्वारा स्वयं सामने लाये गए थे. एक अवसर पर, उसने अदालत को लिखा कि यहूदी ‘क्रूर, कृतघ्न, पीठ में छुरा घोंपने वाले’ लोग होते हैं और उसने उसे क़ानूनी तौर पर दिए गए वकील को उसकी धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण हटाए जाने का प्रयास भी किया.
एक ‘शहीद’ के रूप में पेश किया जाना
पाकिस्तान में बैठे इस्लामवादियों ने जल्द ही सिद्दीकी को एक ‘जिंदा शहीद’ बनाना शुरू कर दिया. सितंबर, 2010 में, जैसे ही उसे दोषी करार देने के फैसले की खबर आई, लाहौर, कराची, इस्लामाबाद और क्वेटा की सड़कों पर हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी उमड़ पड़े. पाकिस्तान की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के नेताओं ने आने वाले वर्षों में उसके लिए कई रैलियां कीं. उसकी रिहाई के प्रचार करने के लिए समर्पित कई टेलीविज़न शो हुए, जिसमें उसकी बहन और बच्चे शामिल हुए.
पाकिस्तानी स्कॉलर खानम शेख ने तर्क दिया है, ‘सिद्दीकी पाकिस्तानी राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक रूपक बन गयी है, जो अमेरिका के साथ अपने संबंधों में ‘औरतों जैसा वयवहार’ करता है, और पाकिस्तानी संप्रभुता और मुस्लिम दुनिया के खिलाफ अमेरिकी अतिक्रमणों को बाधित करने के मामले में एकदम में असहाय और अनिच्छुक है’.
वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान ने 2009 में तब के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी की सरकार पर हमले के लिए सिद्दीकी के मामले का इस्तेमाल करते हुए कहा था, ‘एक दोस्त और एक गुलाम में फर्क होता है.‘ उन्होंने आगे कहा था, ‘हम पर ड्रोन हमले किए जा रहे हैं, लेकिन हमारी गुलामियत वाली सरकार अमेरिका के खिलाफ कोई कड़ा रुख नहीं अपनाएगी’.
इसक बाद साल 2018 में, पाकिस्तान की सीनेट ने सर्वसम्मति से सिद्दीकी की आजादी के मामले को अमेरिका के साथ उठाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें उसे ‘वतन की बेटी’ के रूप में बताया गया था.
बाद में, साल 2019 में, इमरान खान – जो तब तक प्रधानमंत्री बन चुके थे – ने आधिकारिक तौर पर सिद्दीकी की रिहाई के बदले शकील अफरीदी – एक पाकिस्तानी डॉक्टर जिस पर संयुक्त राज्य अमेरिका की मदद करने का आरोप लगाया गया है क्योंकि उसने उस छापे से पहले ओसामा बिन लादेन की पहचान की पुष्टि की थी जिसमें वह मारा गया था – को अमेरिका को सौंपने का सुझाव दिया था.
सिद्दीकी के मामले के उसकी रिहाई के इर्द-गिर्द हो रही इस प्रतिस्पर्धात्मक लामबंदी ने केवल इस्लामवादियों के बीच खान की वैधता को कमजोर करने का ही काम किया है, क्योंकि अमेरिका ने उसकी रिहाई के लिए बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इसके अलावा, इस मुद्दे ने अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को काफी नुकसान भी पहुंचाया है. हालांकि, जिहादी समूहों द्वारा इस ‘मकसद’ को बढ़-चढ़ कर उठाया जाता रहा है, जो इसका इस्तेमाल यह तर्क देने के लिए करते हैं कि वे – , न कि आधिकारिक पाकिस्तानी नेतृत्व – इस्लाम के सच्चे रखवाले हैं.
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