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Sunday, 22 December, 2024
होमविदेशअफगानिस्तान क्रिकेट में खलबली मची है, लेकिन ये केवल तालिबान की वजह से नहीं है

अफगानिस्तान क्रिकेट में खलबली मची है, लेकिन ये केवल तालिबान की वजह से नहीं है

बृहस्पतिवार को राशिद ख़ान ने T20 की कप्तानी छोड़ दी, जबकि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया, कि 27 नवंबर को दोनों देशों के बीच एक टेस्ट मैच के खेले जाने की संभावना नहीं है.

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान क्रिकेट में अचानक खलबली मच गई है, जिसमें लेग स्पिनर और देश के सबसे बड़े स्टार राशिद ख़ान ने, पुरुषों की टी-20 टीम की कप्तानी से इस्तीफा दे दिया और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया कि नई तालिबान हुकूमत के आने के कारण, दोनों देशों के बीच 27 नवंबर को निर्धारित, एक टेस्ट मैच के खेले जाने की संभावना नहीं है.

बृहस्पतिवार को, अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (एसीबी) की ओर से, यूएई और ओमान में होने वाले पुरुषों के आगामी टी-20 विश्व कप के लिए, 15 सदस्यीय टीम का ऐलान करने के 20 मिनट बाद ही, राशिद ख़ान ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी.

रशीद ने ट्वीट किया, ‘सलेक्शन कमेटी और एसीबी ने टीम के लिए मेरी सहमति नहीं ली है, जिसका एसीबी मीडिया की ओर से ऐलान किया गया है’.

एसीबी ने उनके बदले में हरफनमौला खिलाड़ी और सनराइज़र्स हैदराबाद में रशीद के टीम साथी, मौहम्मद नबी को कप्तान घोषित कर दिया. नबी ने ट्वीट किया, ‘इंशाअल्लाह, साथ मिलकर हम आगामी टी-20 वर्ल्ड कप में, अपने मुल्क की एक अच्छी तस्वीर पेश करेंगे’.

क्रिकेट का मौजूदा गोरखधंधा

राशिद का इस्तीफा ऐसे समय आया है, जब अफगानिस्तान क्रिकेट एक उथल-पुथल भरे, और अनिश्चितता के दौर से गुज़र रही है, चूंकि उसके अगले टेस्ट मैच पर, जो 27 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया के होबार्ट में खेला जाना है, संशय के बादल छा गए हैं.

बृहस्पतिवार को क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया, कि अगर नई तालिबान सरकार महिलाओं के पेशेवर क्रिकेट खेलने पर पाबंदी लगाती है, जैसा कि मीडिया की हालिया ख़बरों से संकेत मिला है, तो दोनों देशों के बीच पहली बार खेला जाने वाला टेस्ट मैच रद्द कर दिया जाएगा.

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने एक बयान में कहा, ‘क्रिकेट की हमारी परिकल्पना ये है, कि ये खेल सभी के लिए है और हम हर स्तर पर, महिलाओं के खेलने का स्पष्ट रूप से समर्थन करते हैं’.

क्रिकइनफो की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के पुरुष टेस्ट कप्तान टिम पेन ने, सीए के बयान के प्रति अपना पूरा समर्थन ज़ाहिर किया, और कहा कि ये देखना ‘बहुत मुश्किल होगा’, कि आईसीसी किस तरह अफगानिस्तान को, टी-2- वर्ल्ड कप में खेलने की अनुमति दे सकती है.

इस सब के बीच अफगानिस्तान पुरुष क्रिकेटर्स की अगली पीढ़ी के लिए, क्रिकेट अभी भी चल रही है, जिसमें उनकी अंडर-19 टीम फिलहाल बांग्लादेश के दौरे पर है, जिसमें पांच एक दिवसीय मैच और उसके बाद एक चार दिवसीय रेड बॉल मैच खेला जाएगा.

पहला एक दिवसीय मैच शुक्रवार को सिल्हट में खेला गया, जिसमें बांग्लादेश अंडर-19 टीम ने, अपने 154 रनों के स्कोर का बचाव करते हुए, अफगानियों को 16 रन से हरा दिया. लेकिन इस दौरे के बाद, टीम की आगे की खेल तिथियां स्पष्ट नहीं हैं.

वो सब अब दूर की बात हो गई है, जब 2018 में तत्कालीन राष्ट्रीय मुख्य चयनकर्त्ता और पूर्व कप्तान नवरोज़ मंगल ने ऐलान किया था, कि अफगानिस्तान क्रिकेट में ‘एक ज़बर्दस्त, नया सवेरा’ हुआ है.

तीन साल के बाद, राजनीतिक सत्ता में तालिबान की वापसी से, पिछले दशक में अफगानिस्तान क्रिकेट में हुई तरक़्क़ी के, यकायक थम जाने का ख़तरा पैदा हो गया है.

लेकिन, अफगानिस्तान में क्रिकेट से जुड़ी कुछ समस्याओं को क़रीबी से देखने पर पता चलता है, कि उसकी राह में सिर्फ तालिबान ही रोड़ा नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (एसीबी) का कथित कुप्रबंधन, और बरसों से महिला क्रिकेट की उपेक्षा भी उसके लिए ज़िम्मेदार है.

कप्तानों का एक चक्र द्वार

अफगानिस्तान की कप्तानी से राशिद ख़ान का इस्तीफा, अपनी भूमिका से उनकी पहली रवानगी नहीं है. गुलबदीन नायब की थोड़े समय की कप्तानी के अंतर्गत, एक-दिवसीय वर्ल्ड कप अभियान में अफगानिस्तान के बेहद निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, जुलाई 2019 में राशिद ख़ान को सभी तीनों प्रारूपों में, कप्तान नियुक्त किया गया था,

फिर दिसंबर 2019 में, मध्य-क्रम के अनुभवी बल्लेबाज़ असग़र अफगान को राशिद की जगह कप्तान बना दिया गया, जब तक राशिद केवल 2 टेस्ट, 3 एडीआई और 3 टी-20 मैचों में ही टीम की अगुवाई कर पाए थे, जो वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ एक ही सीरीज का हिस्सा थे.

लेकिन, उससे पहले असग़र अफगान को भी, जिसने 2015 में मोहम्मद नबी से एक-दिवसीय मैचों की कप्तानी ली थी, और 2018 में पहली बार भारत के खिलाफ टेस्ट में भी टीम की अगुवाई की थी, अप्रैल 2019 में कप्तानी से हटाया गया था, जिस क़दम की मोहम्मद नबी और राशिद ख़ान दोनों ने तीखी आलोचना की थी.

अफगान को दूसरी बार इस साल मई में हटाया गया, जब एसीबी ने सीमित ओवर्स की भूमिका में राशिद ख़ान की वापसी का ऐलान किया, और टेस्ट की कमान शीर्ष क्रम के बल्लेबाज़, हशमतुल्लाह शाहिदी को सौंप दी.

इस तरह अफगान पुरुष क्रिकेट में पिछले दो सालों में, बहुत ही अनौपचारिक ढंग से पांच नेतृत्व परिवर्तन देखे गए हैं. एसीबी बार बार या तो बिल्कुल नया कप्तान बना देती है, या फिर पहले के हटाए हुए को फिर से नियुक्त कर देती है. किसी भी कप्तान को इतना समय नहीं दिया जाता, कि वो धैर्य के साथ सभी प्रारूपों में अपनी रणनीतियों को अमलीजामा पहना सके.

पर्दे के पीछे की परेशानी

थोड़े समय के अंदर यकायक अदला-बदली, एसीबी के उच्च पदों पर भी देखने में आई है, जिसके चयनकर्त्ताओं के पैनल और कार्यकारी पदों पर भी, उसी तरह से बदलाव हुए हैं जैसे खेलने वालों के हुए हैं.

अफगानिस्तान क्रिकेट में कथित दख़लअंदाज़ी पर, 2019 में अफगान न्यूज़ साइट पझवोक में प्रकाशित एक ओपीनियन पीस के मुताबिक़, खेल से रिटायर होने के फौरन बाद, मुख्य चयनकर्त्ता नियुक्त किए जाने के दो वर्षों के अंदर ही मंगल, एसीबी के भीतर ‘व्यापक बदलावों’ और ‘सुधारों’ की नीति का शिकार हो गए.


यह भी पढ़ें : ‘इस्लाम महिलाओं को दिखने की इजाजत नहीं देता’, तालिबान ने अफगानिस्तान में महिला खेलों पर पाबंदी लगाई


पीस में कहा गया कि ये सुधार अज़ीज़ुल्लाह फाज़ली के एसीबी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के साथ शुरू हुए, जिनके कार्यकाल में कप्तानी में बदलाव हुआ, और टीम की कमान असग़र अफगान के हाथ से लेकर, गुलबदीन नायब को दे दी गई.

क्रिकइनफो के अनुसार फाज़ली ‘एसीबी के पूरे शीर्ष नेतृत्व की जगह आए थे, जिनमें अध्यक्ष आतिफ मशाल और सीईओ शफीक़ुल्लाह स्तानिकज़ई शामिल थे’, जिन्हें सितंबर 2018 में ‘उनके पदों से हटा दिया गया था’.

2019 के एक-दिवसीय विश्वकप में, जब अफगानिस्तान अपने सभी 9 मैच हार गया, तो फाज़ली की जगह फरहान युसुफज़ई, और तब के एसीबी सीईओ असदुल्लाह ख़ान की जगह, लुत्फुल्लाह स्तानिकज़ई को लाया गया. ख़ुद स्तानिकज़ई को भी एक साल बाद, उनके कामकाज और ‘मैनेजर्स के साथ बदसलूकी’ के कथित आरोप के चलते बर्ख़ास्त कर दिया गया.

असदुल्लाह इस जुलाई में फिर मीडिया में आए, इस बार मुख्य चयनकर्त्ता के पद से अपने इस्तीफे के चलते, जब उन्होंने चयन के मामलों में, ग़ैर-क्रिकेटर्स की ओर से अत्यधिक रुकावटों, और दख़ल अंदाज़ियों का हवाला दिया.

तालिबान के क़ब्ज़े के बाद, एसीबी के उच्च पदों पर नाम बदलने का सिलसिला चलता रहा, जिसमें 28 अगस्त को फाज़ली को फिर से अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. अब देखना ये है कि इस बार वो इस बार कितने समय तक रहते हैं, और एसीबी में अगर बदलाव होते हैं, तो वो किस हद तक होंगे.

महिला क्रिकेट की अनदेखी तालिबान की वापसी से पहले की समस्या

सभी उपरोक्त उलट-फेर और बोर्ड कुप्रबंधन कथित रूप से तब देखने में आए, जब अगानिस्तान को 2017 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) से पूर्ण सदस्यता, टेस्ट दर्जा, और अतिरिक्त वार्षिक फंडिंग मिल गई थी.

पिछले दशक में अफगानिस्तान में क्रिकेट की प्रगति में, जो वर्ग यक़ीनन सबसे अधिक वंचित रहा है, वो हैं भावी महिला क्रिकेटर्स.

अफगान महिला क्रिकेट की पूरी टीम की ख़बरें पहली बार 2010 में आईं थीं, जब अफगानिस्तान को आईसीसी सदस्य बने हुए नौ साल हो गए थे. लेकिन, टीम को प्रतियोगी मुक़ाबले खेलने के मौक़े नहीं मिले, और रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में उसे ख़ामोशी के साथ भंग कर दिया गया, और तब टीम की संस्थापक डायना बरकज़ई मे आरोप लगाया था, कि एसीबी ने उनकी कभी सहायता नहीं की थी.

दि टेलीग्राफ यूके के अनुसार, 2015 में अफगानिस्तान के पहली बार पुरुष वर्ल्ड कप खेलने के बाद, महिलाओं की भागीदारी का स्तर नाटकीय ढंग से बढ़ गया था. लेकिन एसीबी की ओर से सहायता, या महिलाओं के लिए एक प्रोफेशनल टीम के कोई संकेत नहीं थे, हालांकि आईसीसी ने हर पूर्ण सदस्य देश के लिए अनिवार्य किया था, कि उन्हें अपने यहां एक महिला टीम का गठन करना होगा.

अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर ट्रंप प्रशासन और तालिबान के बीच समझौते के काफी समय बाद, नवंबर 2020 में कहीं जाकर एसीबी ने, 25 महिला क्रिकेटरों के साथ सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट्स का ऐलान किया था.

फिर अप्रैल 2021 में आईसीसी ने, पूर्ण सदस्य देशों से ताल्लुक़ रखने वाली सभी महिला टीमों को, स्थाई टेस्ट और एक-दिवसीय दर्जा दिया था.

तालिबान की वापसी के बाद, दि गार्जियन ने ख़बर दी कि अफगान की राष्ट्रीय महिला टीम की क्रिकेटर रोया समीन ने देश छोड़ दिया, और आरोप लगाया कि उसे या उसकी टीम साथियों को, एसीबी या आईसीसी से कोई सहायता नहीं मिली, जबकि उसके विपरीत महिला फुटबॉल टीम की सदस्यों को सहायता मिली थी.

इस तरह अफगान क्रिकेट के सामने एक बड़ा ख़तरा है, कि वो फिर से 2001 से पहले की स्थिति में जा सकती है, लेकिन इसके पीछे तालिबान का रुख़, एक अकेला कारण नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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