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Thursday, 19 December, 2024
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अफगान लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी, पर तालिबान नेताओं की बेटियां विदेश में कर रही हैं पढ़ाई

इस्लामिक अमीरात प्रवक्ता, स्वास्थ्य मंत्री, विदेश उप मंत्री समेत करीब दो दर्जन तालिबान नेताओं ने अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए पाकिस्तान और कतर के स्कूलों में भेजा है.

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात ने भले ही लड़कियों के छठी कक्षा से आगे पढ़ने पर पाबंदी लगा रखी हो, लेकिन तालिबान के दो दर्जन से अधिक शीर्ष नेता अपनी बेटियों को दोहा, पेशावर और कराची के स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. तालिबान मूवमेंट के नजदीकी सूत्रों ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी है.

इन नेताओं में स्वास्थ्य मंत्री कलंदर एबाद, विदेश उप मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई और प्रवक्ता सुहैल शाहीन शामिल हैं.

सुहैल शाहीन की दो बेटियां दोहा—जहां इस्लामिक अमीरात का राजनीतिक कार्यालय स्थित है—के सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं. परिवार से परिचित एक सूत्र ने बताया कि उनके तीन बेटे भी यहीं पढ़ते हैं. सूत्र ने बताया कि बड़ी बेटी तो अपने स्कूल की टीम के लिए फुटबॉल भी खेलती है.

सूत्रों ने कहा कि नंगरहार यूनिवर्सिटी और पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, इस्लामाबाद से डिग्री के साथ एक प्रशिक्षित फिजीशियन कलंदर एबाद ने अपनी बेटी के लिए मेडिकल की पढ़ाई की सुविधा सुनिश्चित की, जो अब इस्लामाबाद में एक डॉक्टर के तौर पर काम करती है.

सूत्रों ने आगे बताया कि स्टानिकजई की बेटी ने एक ख्यात स्कूल में हाईस्कूल तक पढ़ने के बाद दोहा के अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर ली है.

दिप्रिंट को इस्लामिक अमीरात के अधिकारियों द्वारा अपनी बेटियों को विदेशों में पढ़ाए जाने के संबंध में पूछे गए सवालों पर प्रवक्ता शाहीन के कार्यालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

पिछले साल अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद इस्लामिक अमीरात—जैसा तालिबान अपने देश को कहता है—के अधिकारियों ने कई बार यह बात कही थी कि लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी. लेकिन 23 मार्च को स्कूल फिर से खुलने के कुछ घंटों बाद ही उसने अपने फैसले को वापस ले लिया.

तालिबान प्रवक्ता बिलाल करीमी ने बताया, ‘नेतृत्व की तरफ से हाल ही में एक बैठक की गई और लड़कियों के स्कूलों पर विस्तार से चर्चा हुई. हालांकि, उन्होंने अगली बैठक तक स्कूलों को बंद रखने का फैसला किया है.’

इस्लामिक अमीरात ने महिलाओं के रोजगार पर भी रोक लगा रखी है और पुरुष रिश्तेदारों के बिना उनके कहीं यात्रा करने पर भी प्रतिबंध लागू है. पिछले साल, इस्लामिक अमीरात के नैतिकता बढ़ाने और दुर्व्यसनों की रोकथाम संबंधी मंत्रालय ने काबुल में पोस्टर लगाए, जिसमें महिलाओं को पूरी तरह बुर्का पहनने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. हालांकि, इस संबंध में कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया था.

इस्लामिक अमीरात के नेताओं ने पिछले साल दावा किया था कि पाठ्यक्रम और यूनिफॉर्म संबंधी समस्याओं के अलावा उनके पास स्कूल चलाने के लिए धन की कमी है.

हालांकि, जनवरी में अफगानिस्तान के लिए विशेष अमेरिकी प्रतिनिधि टॉम वेस्ट ने कहा था कि अगर लड़कियों के लिए स्कूल फिर से खोले गए तो अमेरिका सभी शिक्षकों के वेतन का भुगतान करेगा.

विदेशों में पढ़ रहे तालिबान के बच्चे

एक राजनयिक सूत्र ने बताया कि कई वरिष्ठ इस्लामी अमीरात मंत्रियों और सिविल सेवकों के बच्चे अब पेशावर और कराची के ‘इकरा’ स्कूलों में पढ़ रहे हैं—जो इस्लामी शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा भी प्रदान करते हैं.

माना जाता है कि तालिबान के पॉवरफुल सैन्य आयोग के कम से कम चार सदस्यों की बेटियों ने पिछले साल काबुल पर तालिबान के कब्जे से पहले ही इकरा स्कूलों में पढ़ाई की थी.

इकरा स्कूलों—जहां मदरसों में दी जाने वाली मजहबी शिक्षा के अलावा अंग्रेजी, विज्ञान और कंप्यूटर जैसे विषय भी पढ़ाए जाते हैं—का प्रबंधन संभालने वाले एक ट्रस्ट का कहना है कि इसका उद्देश्य ‘मुसलमानों और उनके बच्चों को सच्चा मुसलमान बनाना’ है.

रिसर्चर सबावून समीम ने इस साल के शुरू में जारी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि तालिबान के एक कमांडर ने क्वेटा में लड़कियों के लिए अपना खुद का इकरा-शैली का स्कूल भी खोला है, जहां मदरसे परंपरागत विषयों के अलावा गणित, विज्ञान और अंग्रेजी की कक्षाएं भी चलती हैं.

समीम ने यह भी बताया कि तालिबान के शीर्ष नेता शिक्षित दूसरी पत्नियों को अपना रहे हैं.

समीम ने लिखा, ‘यह प्रवृत्ति कुछ तालिबान अधिकारियों और कमांडरों में भी दिख रही है, जो अपनी मौजूदा पत्नियों को ग्रामीण, अनपढ़ और ‘पिछड़ा’ बताकर दरकिनार कर रहे है, जिनमें से कुछ ने निर्वासित जीवन के दौरान इसका अनुभव किया था और काबुल पर कब्जे के बाद उनका इंतजार कर रही थीं.

माना जाता है कि तालिबान के जो सदस्य अपनी बेटियों को अफगानिस्तान के बाहर पढ़ा रहे हैं, उन्होंने तालिबान की इनर काउंसिल की बैठकों में लड़कियों की शिक्षा की वकालत की है.

एक राजनयिक सूत्र ने बताया कि शाहीन और स्टानिकजई ने लड़कियों के स्कूल बंद करने के इस्लामिक अमीरात के फैसले के खिलाफ दलीलें दी थीं. पिछले साल, शाहीन ने कहा था कि इस्लामिक अमीरात की नीतियों ने सुनिश्चित किया है कि ‘लड़कियां स्कूल जा रही हैं और वे यूनिवर्सिटी भी जा रही हैं.’

माना जाता है कि शिक्षा-समर्थक समूह को इस्लामिक अमीरात के उप-प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे मदरसे में पढ़े इस्लामवादियों का समर्थन हासिल है. राजनयिक सूत्रों का कहना है कि हक्कानी को उप प्रधानमंत्री अब्दुल गनी बरादर और रक्षा मंत्री मुहम्मद याकूब का समर्थन भी हासिल है.

पिछले हफ्ते, अफगान मौलवियों के एक ताकतवर गठबंधन ने लड़कियों के स्कूल फिर से खोलने के आह्वान का समर्थन करते हुए यह तर्क दिया था कि शरिया कानून और कुरान में महिलाओं की शिक्षा को मंजूरी दी गई है.

लड़कियों की शिक्षा का विरोध

हालांकि, शिक्षा-समर्थक अल्पसंख्यकों को अफगानिस्तान के दक्षिणी जिलों के पश्तून कट्टरपंथियों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो सरकार पर हावी हैं.

रुढ़िवादियों का तर्क है कि विकास के लिए दी जाने वाली सहायता के नाम पर तालिबान को लड़कियों की शिक्षा के लिए ब्लैकमेल किया जा रहा है. उनका यह भी दावा है कि लड़कियों की शिक्षा के मुद्दे को लेकर इस्लामिक अमीरात को सहायता संबंधी मुद्दों पर ब्लैकमेल किया जा रहा है और उसके अधिकारियों के बीच फूट डाली जा रही है.

राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, लड़कियों की शिक्षा का विरोध करने वालों में मुख्य तौर पर इस्लामिक अमीरात के प्रमुख हिबतुल्लाह अखुंदजादा, चीफ जस्टिस अब्दुल हकीम और धार्मिक मामलों के मंत्री नूर मुहम्मद साकिब शामिल हैं.

इस्लामी अमीरात के कट्टरपंथियों ने नैतिकता को लेकर चिंता जताई है, जैसे पुरुष शिक्षक महिला छात्रों को पढ़ाएंगे, इसके अलावा लड़कियों के ड्रेस कोड और यूनिवर्सिटी में छात्र-छात्राओं को अलग-अलग कैसे रखा जाएगा.

पिछले साल, इस्लामिक अमीरात के हायर एजुकेशन मंत्री अब्दुल बकी हक्कानी ये तर्क देते नजर आए थे कि सेक्युलर शिक्षा नए शासन के लिए कोई खास मायने नहीं रखती, साथ ही दावा किया कि आधुनिक अध्ययन मजहबी शिक्षा की तुलना में ‘कम उपयोगी’ है और ‘नैतिक मूल्यों’ वाले शिक्षकों को नियुक्त करने का वादा किया था.

अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा हमेशा से विवादों की वजह रही है. 1920 के दशक में शाह अमानुल्लाह खान की तरफ से इसकी शुरुआत और फिर 1978 में सत्ता संभालने वाली सोवियत संघ सरकार की तरफ से इसकी पहल के प्रयासों के दौरान दोनों ही बार हिंसक प्रतिरोध हुआ.

9/11 के बाद एक लोकतांत्रिक सरकार स्थापित होने के बाद भी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के लिए शिक्षा के खिलाफ प्रतिरोध व्यापक तौर पर जारी रहा था.

अफगानिस्तान में शिक्षा की स्थिति पर एक समीक्षा में संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि उच्च शिक्षा में लड़कियों की संख्या 2001 में लगभग 5,000 थी जो 2018 में बढ़कर लगभग 90,000 हो गई.

यद्यपि करीब 16 फीसदी स्कूल केवल लड़कियों का ही एडमिशन लेते हैं, ताकि कट्टरपंथी माता-पिता लड़कियों को पढ़ाने के लिए तैयार हो जाएं, लेकिन केवल सेकेंडरी स्कूल टीचर्स में केवल 36 प्रतिशत ही महिलाएं थीं, और ये शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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