नई दिल्ली: श्रीलंका में अभूतपूर्व राजनीतिक और आर्थिक संकट के बीच मालदीव की संसद (मजलिस) के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बुधवार को माले भाग जाने के लिए कथित तौर पर मदद करने के लिए चर्चा में हैं.
राष्ट्रपति के देश छोड़कर भाग जाने के बाद श्रीलंका में हालात बिगड़ते जा रहे हैं. प्रदर्शनकारियों के उग्र प्रदर्शनों को देखते हुए बुधवार को आपातकाल लागू कर दिया गया. श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष ने घोषणा की कि राजपक्षे बुधवार को अपना पद छोड़ देंगे जैसा कि पहले उन्होंने वादा किया था और पीएम रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया जाएगा.
एक रिपोर्ट के अनुसार, मालदीव नागरिक उड्डयन प्राधिकरण ने मालदीव में एक सैन्य विमान उतारने के राजपक्षे के शुरुआती अनुरोधों को ठुकरा दिया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि बाद में नशीद के इस मामले में दखल देने पर एयरक्राफ्ट को लैंडिंग की इजाजत दी गई.
श्रीलंका में लंबे समय तक स्व-निर्वासन में बिताने के बाद सत्तारूढ़ मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की सह-स्थापना करने वाले नशीद (55) के सभी दलों के श्रीलंकाई राजनीतिक नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं.
सिर्फ दो महीने पहले श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कोलंबो के लिए माले के राहत प्रयासों के ‘समन्वयक’ नियुक्त करने के लिए नशीद के अनुरोध को स्वीकार कर लिया था.
उनकी नियुक्ति ने श्रीलंका में इस बात को लेकर बहस छेड़ दी कि क्या नशीद राष्ट्रपति गोटबाया, पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा और सरकार के अन्य सदस्यों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, नशीद ने इस तरह के दावों को खारिज किया था.
उनके कार्यालय ने मई में श्रीलंकाई दैनिक न्यूजफर्स्ट को बताया था, ‘मालदीव के राष्ट्रपति नशीद ने साफतौर पर श्रीलंका में राजनीतिक नेताओं की तथाकथित ‘बाहर निकलने की रणनीति’ में भूमिका निभाने की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टों से इनकार किया है. श्रीलंका के लिए उनकी भूमिका एक देश और ऐसे लोगों के लिए सहायता मांगने तक सीमित है, जो हमेशा इस कठिन आर्थिक दौर में परस्पर मित्र रहे हैं.’
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नशीद का श्रीलंका से संबंध
अपनी युवावस्था में नशीद ने कुछ समय श्रीलंका में बिताया था. 1982 से 1984 तक इंग्लैंड के डौंटसे स्कूल में जाने से पहले उन्होंने 1981 में कोलंबो के ओवरसीज स्कूल में पढ़ाई की.
वह 1990 के दशक के अंत में मालदीव में प्रमुखता से उभरकर आए. उस समय देश पर निरंकुश शक्तिशाली मौमून अब्दुल गयूम का शासन था. एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता नशीद को कई बार गिरफ्तार किया गया और उन्हें दूरदराज के इलाकों में निर्वासन की सजा सुनाई गई.
निर्वासन के दौरान जब वह कुछ समय के लिए श्रीलंका में थे, तब वह प्रेस के साथ सक्रिय रूप से बातचीत करते रहे.
नेपाली टाइम्स के संपादक और प्रकाशक कुंडा दीक्षित 1993 में कोलंबो में केएफसी आउटलेट में नशीद से अपनी मुलाकात को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने गयूम शासन में जेल में रहने के दौरान दी गई यातना के बारे में बताया था.
नशीद अंततः 1999 में मालदीव की संसद के लिए चुने गए.
सितंबर 2003 में माले में दंगों के बाद वह मालदीव छोड़ श्रीलंका आ गए. उन्होंने गयूम का विरोध करने के लिए मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) का गठन किया था. निर्वासन के दौरान उन्होंने श्रीलंका और यूके के बीच यात्रा की और अप्रैल 2005 में 18 महीने के बाद मालदीव लौट आए.
2008 में नशीद मालदीव के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले नेता बने. हालांकि, 2012 में सैन्य समर्थित तख्तापलट में उनकी सरकार गिरा दी गई थी.
नशीद को आतंकवाद के आरोप में दोषी ठहराया गया और 13 साल जेल की सजा सुनाई गई. हालांकि 2015 में उनके खिलाफ लगे आरोप को हटा दिया गया था, लेकिन कुछ महीने बाद मालदीव के अभियोजक जनरल ने उसी मामले में उन पर फिर से आरोप लगा दिया.
2016 में उन्हें श्रीलंका में थोड़ा समय बिताने के बाद मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए यूके जाने की इजाजत मिली थी और बाद में उन्हें ब्रिटेन में राजनीतिक शरण दी गई.
2018 में मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने नशीद की सजा को रद्द कर दिया, इसे ‘संदिग्ध और राजनीति से प्रेरित’ करार दिया. वह अगले साल अपने देश लौट आए. इस दौरान उनके पूर्व डिप्टी इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति चुनावों में विजयी हुए. नशीद बाद में संसद के अध्यक्ष चुने गए.
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