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नेपाल में उतार-चढ़ाव वाला रहा 2022, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नाटकीय तरीके से बने सहयोगी

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काठमांडू, 29 दिसंबर (भाषा) नेपाल में 2022 में राजनीतिक उतार-चढ़ाव का दौर रहा जहां नाटकीय तरीके से प्रतिद्वंद्वी नेताओं के बीच गठजोड़ हो गया तथा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड को तीसरी बार यह पद संभालने का मौका मिला।

इस वर्ष काठमांडू ने अपने निकट पड़ोसियों भारत और चीन के साथ उच्चस्तरीय वार्ताओं तथा यात्राओं के साथ संबंध संतुलित बनाने का प्रयास किया।

सीपीएन-माओवादी सेंटर के 68 वर्षीय अध्यक्ष प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ अपने चुनाव पूर्व गठबंधन को अचानक छोड़ दिया और पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली प्रतिद्वंद्वी सीपीएन-यूएमएल तथा पांच अन्य छोटे दलों के साथ हाथ मिलाकर प्रधानमंत्री बन गये।

नेपाल में लंबे समय से जारी राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त करने के लिए निचले सदन और सात प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव पिछले महीने हुए थे। हालांकि, चुनाव परिणाम खंडित रहा और नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। इसके बाद सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड की पार्टी रहीं।

नेपाल की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में किसी दल को सरकार बनाने के लिए जरूरी 138 सीटें प्राप्त नहीं हुईं।

प्रचंड ने पिछले साल ही ओली से संबंध तोड़कर प्रधानमंत्री पद के लिए नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा का समर्थन किया था। लेकिन, इस बार वह फिर ओली से जुड़ गये।

ओली न केवल प्रचंड को प्रधानमंत्री के रूप में आसीन कराने में सफल रहे, बल्कि उन्हें अब सदन के अध्यक्ष, कुछ अहम मंत्रालयों और कई प्रांतों के मुख्यमंत्रियों के लिए अपने उम्मीदवारों को पेश करने का मौका मिल गया।

इस बात की संभावना है कि सात दलों का नया गठबंधन सभी सातों प्रांतीय विधानसभाओं में सरकार बना सकता है।

यह घटनाक्रम भारत के लिए बहुत सुखद नहीं माना जा रहा क्योंकि क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर पहले भी प्रचंड और ओली के नयी दिल्ली के साथ गतिरोध रहे हैं।

दोनों ही कम्युनिस्ट नेता अपने चीन समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं और यह देखना होगा कि वे दोनों पड़ोसी देशों के साथ बराबर निकटता के साथ संबंध किस तरह बनाकर रखते हैं।

साल 2022 में, भारत-नेपाल संबंधों में मजबूती देखी गयी जब दोनों पक्षों ने रेलवे संपर्क, बिजली क्षेत्र और ऊर्जा सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार किया। उन्होंने 2020 में सीमा विवाद बढ़ने के मद्देनजर संबंधों के तनावपूर्ण होने के बाद द्विपक्षीय संबंधों में बड़े बदलाव का संकेत दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देउबा (नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री) ने एक दूसरे के देशों की यात्राएं कीं और करीबी पड़ोसियों के संबंधों के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन बातचीत की। दोनों के बीच उच्चस्तरीय वार्ता के बाद संबंधों में प्रगाढ़ता देखी गयी।

संपर्क को बढ़ावा देने के ऐतिहासिक कदम के तौर पर अप्रैल में तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री देउबा की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने और प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के जयनगर को नेपाल के कुर्था क्षेत्र से जोड़ने वाली पहली ब्रॉड-गेज यात्री रेलवे सेवा का उद्घाटन किया।

मोदी और देउबा ने 90 किलोमीटर लंबी बिजली पारेषण लाइन का भी उद्घाटन किया और नेपाल में भारत के ‘रूपे’ भुगतान कार्ड की भी शुरुआत की।

उन्होंने सीमा के मुद्दों पर चर्चा की और दोनों नेता मौजूदा तंत्र के माध्यम से तथा बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ऐसे मुद्दों का समाधान करने पर सहमत हुए।

नेपाल भारत के पांच राज्यों-सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ 1,850 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करता है।

दोनों देशों ने ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक दस्तावेज जारी किया तथा ऊर्जा एवं रेलवे के क्षेत्रों में सहयोग के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

भारत और नेपाल शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, व्यापार और सीमा पार पारेषण लाइनों, रेलवे लाइन निर्माण के माध्यम से सीमा पार संपर्क बढ़ाने, एकीकृत जांच चौकी और शुष्क बंदरगाहों के निर्माण तथा द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने में सहयोग पर भी सहमत हुए।

मोदी ने मई महीने में देउबा के निमंत्रण पर, बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी की एक दिवसीय यात्रा की थी और नेपाल के पवित्र माया देवी मंदिर में पूजा-अर्चना की। यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने सहयोग में विविधता लाने और उसे गहरा करने के लिए महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।

मोदी ने नेपाल में जलविद्युत क्षेत्र के विकास में और भारतीयों को पड़ोसी देश में नई परियोजनाओं का तेजी से पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करने में सहयोग का आश्वासन दिया।

नेपाल इस क्षेत्र में अपने समग्र रणनीतिक हितों के संदर्भ में भारत के लिए महत्वपूर्ण है, और दोनों देशों के नेताओं ने अक्सर सदियों पुराने ‘रोटी बेटी’ संबंध का उल्लेख किया है।

जमीनी सीमा से घिरा नेपाल वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए भारत पर बहुत निर्भर है।

दोनों देशों के बीच संबंधों में उस समय तनाव आ गया था, जब काठमांडू ने 2020 में एक नया राजनीतिक मानचित्र प्रकाशित किया, जिसमें तीन भारतीय क्षेत्रों-लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल का क्षेत्र दर्शाया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री ओली ने बढ़ते घरेलू दबाव तथा अपने नेतृत्व के सामने पैदा चुनौती से बचाव के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल करने की कोशिश की।

नेपाल और भारत 2022 के अंत में धारचुला में हुई सीमा समन्वय बैठक में इस बात पर सहमत हुए कि महाकाली नदी को इसके मूल प्रवाह में बहने दिया जाए।

इस साल नेपाल और अमेरिका के कूटनीतिक संबंधों के 75 वर्ष भी पूरे हुए। नेपाल की संसद ने घरेलू तौर पर राजनीतिक विभाजन तथा चीन के विरोध के बावजूद अमेरिका सरकार के 50 करोड़ डॉलर वाले विवादास्पद सहायता कार्यक्रम को मंजूरी दी।

नेपाल पर प्रभाव जमाने के मामले में अमेरिका से गतिरोध रखने वाले चीन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि वाशिंगटन को अन्य देशों की संप्रभुता को नजरंदाज नहीं करना चाहिए।

चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (बीआरआई) के तहत अनेक अवसंरचना उपक्रमों के माध्यम से नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।

भाषा वैभव अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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