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Saturday, 20 April, 2024
होमविदेश‘2013 से अब तक 3,600 हमले’- बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है

‘2013 से अब तक 3,600 हमले’- बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है

बांग्लादेश में पिछले हफ्ते दुर्गा पूजा समारोहों के दौरान हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर किए गए हमलों में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए.

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नई दिल्ली: बांग्लादेश में पिछले हफ्ते दुर्गा पूजा समारोहों के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों में कम से कम छह लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए. पुलिस ने अब तक 450 लोगों को गिरफ्तार किया है और हिंसात्मक घटनाओं के संबंध में 71 मामले दर्ज किए हैं, जो कथित तौर पर कुरान के बारे में सोशल मीडिया पर एक ईशनिंदा पोस्ट के बाद शुरू हुई थीं.

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने स्पष्ट तौर पर घटनाओं की निंदा करते हुए सख्त कार्रवाई का वादा किया है. बांग्लादेश के विदेश मामलों के मंत्रालय ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा, ‘बेहद अफसोस की बात है कि 50 साल पहले बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध करने वाले स्थानीय तत्व अब भी हिंसा, घृणा और कट्टरता को भड़काने के लिए अपने जहरीले विचारों को फैला रहे हैं.’

हालांकि, मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा की यह पहली घटना नहीं है. बांग्लादेशी मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सलीश केंद्र (एएसके) के मुताबिक, 2013 के बाद से बांग्लादेश में कम से कम 3,600 ऐसे हमले हुए हैं.


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हमले कोई नई बात नहीं

बांग्लादेश की 17 करोड़ आबादी में 8.5 प्रतिशत हिंदू हैं, जबकि मुस्लिमों की आबादी 90 प्रतिशत है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1980 के दशक में हिंदुओं की आबादी 13.5 फीसदी थी. 1947 में विभाजन के समय उनकी आबादी लगभग 30 प्रतिशत थी.

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जर्मन न्यूज वेबसाइट डीडब्ल्यू ने गैर-लाभकारी संगठन बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद (बीएचबीसीयूसी) के महासचिव राणा दासगुप्ता के हवाले से बताया, ‘हमलों के पीछे एक बड़ा कारण अल्पसंख्यकों को उनके घरों से भगाना और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की आबादी को कम करना है.’

देश की 2011 की आवास और जनसंख्या जनगणना के अनुसार, बांग्लादेश में हिंदुओं की मौजूदगी सभी क्षेत्रों में है, जिनमें खगराचारी (16.81 प्रतिशत), मगुरा (17.92 प्रतिशत), बागेरहाट (18.35 प्रतिशत), नरैल (20.56 प्रतिशत), ठाकुरगांव ( 22.56 प्रतिशत), खुलना (22.68 प्रतिशत) और मौलवीबाजार (24.59 प्रतिशत)- ऐसे जिले हैं जहां इनकी संख्या अधिक है.

हालांकि, बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन हुआ है.

ढाका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और एक अर्थशास्त्री अबुल बरकत के एक शोध में निष्कर्ष निकला है कि बांग्लादेश में दैनिक आधार पर 750 हिंदुओं का पलायन होता है, जिनमें से अधिकांश अधिक सुरक्षित भविष्य और बेहतर आर्थिक परिस्थितियों की उम्मीद में भारत आने की कोशिश करते हैं.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अलावा बांग्लादेश में होने वाला अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न भी दिसंबर 2019 में मोदी सरकार की तरफ से लाए गए विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के घोषित उद्देश्यों में से एक है. यह कानून तीन देशों से आने वाले छह अल्पसंख्यक समुदायों के लिए नागरिकता की राह आसान बनाने का प्रयास करता है.


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बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता

बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता का इतिहास काफी उथल-पुथल भरा रहा है. अपनी स्थापना के समय यह एक धर्मनिरपेक्ष संविधान वाला देश था.

1970 के दशक में पांचवें संशोधन के जरिये ‘धर्मनिरपेक्षता’ को संविधान से हटा दिया गया और 1980 के दशक के अंत में इस्लाम को राज्य धर्म घोषित कर दिया गया था.

2010 में हाई कोर्ट के एक आदेश में कहा गया था, ‘बांग्लादेश अब एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है क्योंकि अपीली डिवीजन (सुप्रीम कोर्ट के) के फैसले ने संविधान में पांचवें संशोधन को रद्द कर दिया है…इस धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता है और इसलिए किसी भी पुरुष, महिला या बच्चे को मजबूर नहीं किया जा सकता है.’

फिर भी, विशेषज्ञों का कहना है कि देश में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है.

ढाका यूनिवर्सिटी के आर्ट्स फैकल्टी में वर्ल्ड रिलीजन एंड कल्चर के असिस्टेंट प्रोफेसर शफी मोहम्मद मुस्तफा ने 2020 में द डिप्लोमैट में लिखे एक लेख में तर्क दिया था, ‘राष्ट्र और धर्म के मामले में बांग्लादेश किस मुकाम पर खड़ा है, इसे लेकर किसी स्पष्ट स्थिति के अभाव ने ही इस देश में कट्टरवाद, उग्रवाद और पश्चिम विरोधी भावनाओं को उभारने में मदद की है.’

डीडब्ल्यू की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों- सत्तारूढ़ सेंटर-लेफ्ट अवामी लीग और सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी समेत- के समर्थन के अभाव ने विभाजन को और गहरा किया है.

प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा का बांग्लादेश पर प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने गुरुवार को ढाका के एक मंदिर में हिंदू समुदाय को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा, ‘भारत ने (1971 के) मुक्ति संग्राम में हमारी मदद की और हम इस समर्थन के लिए हमेशा उसके आभारी रहेंगे… लेकिन उसे यह समझना होगा कि वहां इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए जिसका यहां बांग्लादेश पर भी प्रभाव पड़ता है और हमारे देश में हिंदुओं को खामियाजा भुगतना पड़ता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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