नई दिल्ली: यह एक ऐसा दिन था जिसने पूरी दुनिया के इतिहास और उसमें अमेरिका के स्थान को बदलकर रख दिया. 11 सितंबर 2001 को हुए हमले के 20 साल बीत चुके हैं, और अंतरराष्ट्रीय मामलों और अमेरिकी विदेश नीति पर इसका स्थायी प्रभाव बरकरार है—खासकर यह देखते हुए कि दो दशक लंबे खिंचे युद्ध के बाद अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ते ही तालिबान ने उस पर कब्जा जमा लिया है.
सितंबर के उस भयावह दिन आतंकवादियों द्वारा अपहृत दो अमेरिकी यात्री विमान न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर से टकराए जाने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गए. एक तीसरे विमान ने पेंटागन को निशाना बनाया और चौथा पेंसिल्वेनिया में एक मैदान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
इन हमलों में 3,000 से अधिक लोग मारे गए, जो कि अमेरिकी धरती पर सबसे घातक हमला रहा है.
हमलों की जिम्मेदारी आतंकवादी समूह अलकायदा ने ली जिससे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश को ‘आतंक के खिलाफ जंग’ शुरू करने के लिए प्रेरित किया—इस्लामिक देशों में जड़ें जमाएं चरमपंथी समूहों के खिलाफ अमेरिका और उसके सहयोगियों के नेतृत्व में यह सैन्य अभियान लगातार जारी है. अफगानिस्तान और इराक पर हमले इसी अभियान का हिस्सा थे.
मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस साल अप्रैल में सैन्य वापसी का आदेश जारी करके अफगानिस्तान में युद्ध खत्म करने का प्रयास किया. तालिबान ने पूरी ताकत के साथ सत्ता में लौटते हुए प्रमुख प्रांतों पर नियंत्रण कायम किया और 15 अगस्त को राजधानी काबुल को भी कब्जे में ले लिया जिसके बाद अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी वहां से भाग निकले. आतंकी समूह ने अंततः 8 सितंबर को एक कार्यवाहक सरकार का ऐलान कर दिया.
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9/11 हमलों की टाइमलाइन
9/11 को अलकायदा ने अमेरिका की आर्थिक ताकत के प्रतीक वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और अमेरिकी सेना के मुख्यालय पेंटागन को निशाना बनाया था. कैपिटल बिल्डिंग, जिसमें अमेरिकी संसद है, भी हिट लिस्ट में थी. इन हमलों को अलकायदा से जुड़े 19 आतंकियों ने अंजाम दिया था.
बीबीसी के मुताबिक, पहला विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के नॉर्थ टॉवर से सुबह 8:46 बजे (भारतीय मानक समय के मुताबिक शाम 6:16 बजे) टकराया, जबकि दूसरा साउथ टॉवर से सुबह 9:03 बजे (भारतीय समयानुसार शाम 6:33 बजे) टकराया. 110 मंजिला ट्विन टॉवर दो घंटे के अंदर पूरी तरह ढह गया.
राष्ट्रपति बुश को फ्लोरिडा के एक स्कूल में छात्रों के साथ फोटो-ऑप के दौरान दूसरे हमले के बारे में सूचित किया गया.
इस बीच, एक तीसरे विमान ने पेंटागन के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया और चौथा उस समय पेन्सिलवेनिया में एक जगह दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जब यात्रियों ने विमान पर नियंत्रण की कोशिश की—अन्यथा यह कैपिटल बिल्डिंग की ओर जाता.
कुल मिलाकर, इन हमलों के दौरान 2977 लोग मारे गए थे; उनमें से बड़ी संख्या में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में काम करने वाले स्टॉकब्रोकर थे. 9/11 में जीवित बचे एडुअर्ड पियरे गौबर्ट ने पिछले साल दिप्रिंट को बताया था, ‘पहली चीज जो मैंने देखी वह थी कांच की खिड़की से गिरता मलबा और फर्श बुरी तरह हिल रहा था. लेकिन मैंने चारों ओर देखा और लोग तब भी व्यापार कर रहे थे.’
टॉवर के पास ही काम करने वाली उनकी पत्नी का फोन आया था. उसने उनसे कहा, ‘मुझे लगता है कि एक छोटा विमान अभी-अभी आपकी इमारत से टकराया है. बेहतर होगा कि आप वहां से निकल जाएं.’
हमलों में इस्तेमाल लॉजिस्टिक मुहैया कराने वाला व्यक्ति खालिद शेख मोहम्मद था, जिसे आमतौर पर केएसएम के नाम से जाना जाता था. अप्रैल 2008 में टेलर एंड फ्रांसिस में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक, केएसएम ने ही योजना बनाकर इसे अलकायदा नेताओं के सामने रखा था.
केएसएम और चार अन्य कथित साजिशकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा इस साल 7 सितंबर से फिर शुरू हुआ है. 15 साल से क्यूबा के ग्वांतानामो बे में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे की जेल में बंद पांचों साजिशकर्ताओं को 2019 से ही पहली बार सैन्य न्यायाधिकरण के सामने पेश किया जाना बाकी है.
हमलों के बाद : पैट्रियॉट कानून, घृणा अपराध, इस्लामोफोबिया
हमलों के एक महीने बाद बुश प्रशासन यूएसए पैट्रियॉट एक्ट (आतंकवाद को रोकने और उसके खात्मे के लिए आवश्यक उपयुक्त हथियार उपलब्ध कराने और अमेरिका को एकजुट और मजबूत करने संबंधी) को अमल में लाया.
इस अधिनियम ने सरकार के निगरानी संबंधी अधिकारों को विवादास्पद रूप से बढ़ा दिया. कई अन्य की तरह गैर-सरकारी संगठन अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) ने भी आरोप लगाया कि अमेरिकी सरकार नागरिकों की जासूसी के लिए इस कानून का इस्तेमाल कर रही है.
पूरे अमेरिका में एयरपोर्ट की सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई थी. हमलों ने अमेरिका में अप्रवासियों के खिलाफ घृणा अपराध और ‘इस्लामोफोबिया’ को भी जन्म दिया. एरिजोना में एक भारतीय सिख अप्रवासी को मार दिया गया, जो 9/11 के बाद घृणा अपराध का पहला मामला था.
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होमलैंड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट का गठन, सीआईए ने ‘ब्लैक साइट्स’ बनाई
हमलों के लगभग एक साल बाद नवंबर 2002 में बुश प्रशासन ने होमलैंड सिक्योरिटी विभाग बनाया, जिसका उद्देश्य अमेरिका को आतंकवाद से बचाना था. कई अन्य सरकारी एजेंसियों को इसके तहत लाया गया, खासकर यह देखते हुए कि 9/11 के बाद सरकारी एजेंसियों के बीच पर्याप्त समन्वय और खुफिया जानकारी साझा करने का अभाव चिंता के एक प्रमुख विषय के तौर पर सामने आया है.
हाल के वर्षों में इस बात को लेकर बहस तेज हुई है कि यह विभाग आतंकवाद की तुलना में सीमा सुरक्षा और आव्रजन जैसे मसलों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है.
9/11 हमलों ने सीआईए को ‘ब्लैक साइट्स’ बनाने के लिए भी प्रेरित किया, जिसका आशय सैन्य शब्दावली में खुलासा न किए जाने वाले किसी अज्ञात स्थान से होता जहां कैदियों को हिरासत में रखा जाता और उनको किसी तरह की कानूनी सहायता उपलब्ध नहीं होती. इन गोपनीय जगहों पर अलकायदा और अन्य आतंकवादी गतिविधियों की जानकारी रखने वाले संदिग्धों को हिरासत में रखा गया और उनसे कड़ी पूछताछ की गई जो संभावत: अमेरिका के लिए खतरा बन सकते थे.
हालांकि, बाद के वर्षों में सामने आई रिपोर्टों से पता चला कि अमेरिका ने ब्लैक साइट्स पर पूछताछ के दौरान अपमानजनक तरीके अपनाए, जैसे वाटरबोर्डिंग, जिसमें किसी बंदी के चेहरे को कपड़े से ढककर उसे पानी में डुबो दिया जाता जिससे उस व्यक्ति को डूबने जैसी अनुभूति होती है.
क्यूबा स्थित अमेरिकी सैन्य जेल ग्वांतानामो बे डिटेंशन कैंप में बंदियों को यातनाएं देने के लिए इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. उदाहरण के तौर पर एक मॉरिटेनियाई मोहम्मद ओल्द सलाही ने बिना किसी आरोप के ग्वांतानामो बे में 14 साल बिताए.
बिन लादेन की तलाश, अफगानिस्तान, इराक पर हमला
विदेश संबंधों पर एक स्वतंत्र थिंक-टैंक का मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध ने दो बड़ी जंग की ‘शुरुआत’ कराई.
अक्टूबर 2001 में अलकायदा और इस आतंकी समूह के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन की एक सुरक्षित पनाहगाह को ध्वस्त करने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला बोला और तालिबान शासन को खत्म कर दिया.
हालांकि, अलकायदा को कथित तौर पर 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना से मोर्चा लेने के लिए अमेरिका की तरफ से ही खड़ा किया गया था, लेकिन यह पूरी तरह अमेरिका के साथ भी नहीं था. 1990 के दशक तक बिन लादेन ने इसे एक बड़े ग्लोबल ‘जिहाद’ प्रोजेक्ट में बदल दिया और पश्चिम खासकर अमेरिका को अपने दुश्मन के तौर पर देखना शुरू कर दिया. 9/11 हमलों से पहले अलकायदा ने 1998 में अफ्रीका में दो अमेरिकी दूतावासों को भी निशाना बनाया था.
2003 में अमेरिका ने यह कहते हुए इराक पर हमला बोला कि सद्दाम हुसैन सरकार ने सामूहिक विनाश के हथियार छिपा रखे हैं. प्रिंसटन के शिक्षाविद एमी गेर्शकोफ और शाना कुशनर ने 2005 के अपने एक लेख में तर्क दिया कि बुश प्रशासन ने अमेरिकी लोगों को यकीन दिलाया था कि ‘सद्दाम हुसैन और आतंकवाद के बीच एक लिंक है, खासकर सद्दाम हुसैन और अलकायदा के बीच.’
हालांकि, हथियारों का ऐसा कोई जखीरा नहीं मिला, जिससे जांच को आगे बढ़ाया जा सके. ब्रिटेन के सिविल सर्वेंट जॉन चिलकोट ने 2016 में अमेरिकी कदम के खिलाफ एक तीखी रिपोर्ट, ‘इराक वॉर इंक्वायरी रिपोर्ट’ तैयार की, जिसमें जंग की अमेरिकी योजना में साथ देने के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की भी काफी आलोचना की गई थी.
अमेरिकी थिंक टैंक विल्सन सेंटर बताता है कि अलकायदा ‘पश्चिम के खिलाफ ग्लोबल जिहाद’ के लिए हुंकार भरता रहा है और इसकी वजह से ही इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट को बल मिला, जिसने 2000 के दशक की शुरुआत में ही इराक में जड़ें जमा ली थीं. सितंबर 2019 और अगस्त 2020 के बीच अमेरिका ने दोनों ही समूहों के शीर्ष कमांडरों को मार गिराने के तमाम प्रयास किए.
शांति वार्ताकार और अन्य विशेषज्ञ तर्क देते रहे हैं कि अगर दुनिया अफगानिस्तान को दरकिनार कर देती है और तालिबान के साथ बातचीत से इंकार कर देती है तो यह 9/11 जैसी किसी और घटना का जोखिम ले रही होगी.
बिन लादेन की हत्या और पाकिस्तान की छवि
बराक ओबामा प्रशासन के आदेश पर अमेरिका की एक स्पेशल ऑपरेशन यूनिट ने 2 मई 2011 को अलकायदा संस्थापक ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में मार गिराया. हालांकि, माना तो यही जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने लादेन का ठिकाने पता लगाने में अमेरिका की मदद की थी, लेकिन अन्य आतंकवादियों को पनाह देने में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर सवाल बरकरार हैं.
2011 में पाकिस्तान का दौरा करते समय पूर्व सीनेटर और मौजूदा अमेरिकी जलवायु दूत जॉन केरी ने पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को बताया था कि अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य बिन लादेन को मार गिराए जाने के बाद इस्लामाबाद को आर्थिक सहायता पर सवाल उठा रहे हैं.
भारत सरकार ने बिन लादेन को मारे जाने का स्वागत किया और आतंकवादियों को पनाह देने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की. हत्या के एक दिन बाद विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘आप एक बात को लेकर सुनिश्चित हो सकते हैं, अमेरिकी अधिकारी अब पाकिस्तान के नेताओं पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करेंगे, अगर वह कभी ऐसा करते रहे हैं तो.’
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले साल बिन लादेन को ‘शहीद’ कहा था, इस साल जून में विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी इसी तरह की बात की जब वह बिन लादेन को ‘आतंकवादी’ कहने में हिचकिचाए. आज, पाकिस्तान को तालिबान के प्रमुख समर्थकों में से एक माना जाता है, जिसने अब अफगानिस्तान पर लगभग पूरी तरह नियंत्रण कर लिया है.
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