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Saturday, 20 April, 2024
होमविदेशबात बात में: क्या जस्टिन ट्रूडो की खतरनाक वोट बैंक राजनीति के लिए मोदी द्वारा उनकी उपेक्षा जायज है?

बात बात में: क्या जस्टिन ट्रूडो की खतरनाक वोट बैंक राजनीति के लिए मोदी द्वारा उनकी उपेक्षा जायज है?

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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत दौरा हवाई अड्डे पर जूनियर मंत्री द्वारा आगवानी से शुरू हुआ. उनकी ताजमहल की यात्रा भी सुस्पष्ट कम महत्वपूर्ण थी, जहां उनकी आगवानी जिला मजिस्ट्रेट ने की. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जस्टिन ट्रूडो के लिए एक स्वागत संदेश तक ट्वीट नहीं किया, और न ही गुजरात में मेजबानी की. आलोचकों का कहना है कि जस्टिन ट्रूडो का कनाडा में खालिस्तानी सिखों को समर्थन देना इसका प्रमुख कारण है.

दिप्रिंट पूछता है: क्या मोदी का ट्रूडो को उनकी खतरनाक वोट बैंक राजनीति के लिए फ़ीका स्वागत करना सही है?
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खालिस्तानियों का राजनैतिक मेल-जोल जस्टिन ट्रूडो के संरक्षण में बहुत बढ़ गया है


विष्णु प्रकाश
कनाडा में भूतपूर्व भारतीय उच्चायुक्त, साउथ कोरिया में पूर्व दूत

इस प्रश्न पर अभिभाषण करने से पहले हमें भारत व कनाडा के आपसी संबधें का संदर्भीकरण करना पड़ेगा. हम दोनों अंग्रेजी बोलने वाले लोकतांत्रिक देश हैं जहाँ विभिन्न संजाति और संस्कृति के लोग रहते हैं, जहाँ कानून का राज्य है और हम एक-दूसरे के पूरक अर्थव्यवस्थाएं हैं. कनाडा में लगभग 14 लाख प्रवासी भारतीयों का रहना एक और समानता है.

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दोनों देशों ने बहुत सारे क्षेत्रों में मिलजुल कर बहुत अच्छा काम किया है. जिसमें मुख्य क्षेत्र – अर्थव्यवस्था, ऊर्जा और शिक्षा शामिल है. इस सहयोग का आगे विस्तार और गहरा करने की गुंजाइश है. फिर भी एक मुद्दा है जो हमारे संबंधों पर छाया डालता है.

इन वर्षों में कनेडियन राजनीतिक संस्थान, फिर चाहे वो एनडीपी हो, परंपरावादी हो या उदारवादी, सभी खालिस्तानी तत्वों से मुलायमी से निपट रही हैं. ट्रूडो की सरकार में यह बढ़ गया है. पिछले अप्रैल में टोरंटो में एक खालिस्तानी मंच पर स्वंय ट्रूडो दिखाई दिए थे.

किसी भी प्रजातंत्र में वोट बैंक की राजनीति होती है. एक कनेडियन राजनीतिक नेता सफल होने के लिए प्राकृतिक रूप से समाज के विभिन्न वर्गों को आमंत्रित करेगा. सिख एक गतिशील, जीवंत और उदार समुदाय है और उन्हें आमंत्रित करना सही है.

लेकिन कटृरपंथी प्लेटफार्म पर दिखाई देना एक समस्या है. यह उनको वैधता व प्रचार की आक्सीजन प्रदान करता है. खालिस्तानी संप्रदायवादी ऐसे मंचों का इस्तेमाल भारत विरोधी भावनाओं और अंसतोष फैलाने के लिए करते हैं. भारत इस मुद्दे को हर स्तर पर उठाता रहता है.

इस सब के बाद मैं मीडिया रचित प्रधानमंत्री ट्रूडो को कम महत्व देने की बात से पूरी तरह असमहत हूँ. वे एक सम्मानित अतिथि हैं और दोनों पक्षों ने इस संबंध में बहुत निवेश किया है. वह यहां प्रधानमंत्री के निमंत्राण पर हैं, उन्हे हर शिष्टाचार प्रदान किया गया है.

उनका हवाई अड्डे पर स्वागत कूटनीतिक प्रोटोकॉल के अनुसार ही किया गया. हम इस सम्बन्ध में पूर्णतयः प्रोटोकॉल नियम पर चले हैं. कनाडा व भारत में मीडिया के वर्ग इस में कुछ ज्यादा ही देख रहे हैं.

एन्गेजमैंट डे 23 फरवारी है, और सारे कार्यक्रम आपसी सुविधा से रखे गए हैं. ट्रूडो योजना के अनुसार 23 को प्रधानमंत्री से मिलेंगे. मेरा विचार है कि हम वह स्वागती ट्वीट तब देखेंगे जो बहुतों ने लुप्त मानी व असंतोष प्रकट किया.

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मीडिया व मोदी ट्रूडो को असमंजस में डालने में साथ साथ हैं

कंवर पाल सिंह
प्रवक्ता, दल खालसा
दुर्भाग्य से, परन्तु अकस्मात नहीं, देश जिसका नाम भारत है, जिसकी राजनीति जाति व समुदाय पर निर्भर हैं, कनेडियन प्रधानमंत्री ट्रूडो के तथाकथित वोट बैंक राजनीति पर सवाल खड़ा कर रही है.

कनेडियन प्रधानमंत्री व उनके सहयोगियों की भारत यात्रा पर प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया, एक स्तर पर सिखों की प्रति नीति का प्रदर्शन है जिसकी राजनीति 1984 के स्वर्ण मंदिर परिसर पर सेना के हमले आपरेशन ब्लू स्टार तक जाती है.

भारतीय मीडिया ने तब सवाल उठाए थे जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कनाडा के डिक्सी रोड़ गुरूद्वारे में कुछ साल पहले खालिस्तानी बैनर की पृष्ठभूमि में सिख संगत को संबोधित किया था. इसी मीडिया ने उनका स्वागत किया जब उन्होनें कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन से मिलने से इन्कार कर दिया क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर खालिस्तानी संघर्ष का सर्मथन किया था. वही मीडिया अब जब ट्रूडो उन्हें अपनी अमृतसर यात्रा के दौरान नहीं मिल रहे तो उनसे अलग ढंग से व्यवहार कर रहा है.

क्या मोदी ने पत्रकार शेखर गुप्ता या गुप्ता द्वारा व्यक्त मोदी की मन की बात को सुना है या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता, परन्तु एक बात साफ है कि मीडिया व मोदी ट्रूडो को उलझाने में साथ हैं.

कट्टरपंथी भारतीय मीडिया जानबूझ कर इस सच्चाई को नजर अदांज करता है कि कनाडा एक बहुत प्रजातान्त्रिक देश है जहां हर कोई आजादी से अपनी राय प्रकट कर सकता है, और रिफ़रेंडम की मांग करना कोई जुल्म नहीं है. क्युबेक रिफ़रेंडम एक उदाहरण है. जो सिख अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं उन्हें इस पृष्ठभूमि में देखना चाहिए. लोकतांत्रिक आजादी के मसले पर भारत कनाडा की बराबरी नहीं कर सकता.

पहले पाकिस्तान को खालिस्तान का प्रचारक चित्रित किया जाता था. अब कनाडा को किया जाता है.

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भारत व पंजाब की सरकारें आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर समझौता नहीं करेंगी

सुनील कुमार जाखर
अध्यक्ष, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी

मैं पंजाब में कांग्रेस सरकार की ओर से बोल सकता हूं कि हमारे आपसी मुद्दे से अलग, हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में केन्द्र के साथ हैं. हम भारत का हिस्सा है और हमें आतंकवादी पृष्ठभूमि वाले पहले मंत्री जो पंजाब आए थे, के बारे में गम्भीर संदेह है.
आतंकवाद एक अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा है. इसका न कोई धर्म है न कोई क्षेत्र और पूरे विश्व में इसे संगठित रूप से संबोधित किया जाना चाहिए. कनाडा बहुत भाग्यशाली है कि इसने शायद ही कोई आतंकवादी हमला देखा. पंजाब आतंकवाद का शिकार रहा है.

जस्टिन ट्रूडो की यात्रा एक राजकीय यात्रा है. केन्द्र द्वारा लिये गए आतंकवाद विरोधी स्वरूप के साथ हम पूरी तरह सहमत हैं. विश्व भर में आतंकवाद से लड़ाई में भारत ने वर्षों से काम किया है. हम कनेडियन सरकार की उदार नीतियों की सराहना करते हैं, पर आतंकवाद के मामले में हमारी संवेदनशीलता से उन्हें अवगत होना चाहिए.

मेरा विश्वास है कि हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है और हम महसूस करते हैं कि कनेडियन प्रधानमंत्री भी इसका एहसास करते हैं.

भारत सरकार या उच्चायोग की तरफ से पंजाब सरकार को उनकी यात्रा के प्रबंध के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिली है. हम हरजीत सिंह साजन से भिन्न, ट्रूडो का स्वागत खुशी से करते हैं व गणमान्य व्यक्ति का आदर करते हैं. प्रवासी भारतीय कनाडा में भारी संख्या में रह रहे हैं इसलिए सांझेदारी में बहुत कुछ किया जा सकता है. हम हमारे सबंधों की प्रबलता के लिए कार्य करने की आशा करते हैं. परन्तु हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है और हम आशा करते हैं कि कनेडियन सरकार इसे समझे. भारत व पंजाब की सरकारें अपनी आतंकवाद विरोधी स्थिति पर कोई समझौता नहीं करेंगी.

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