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Thursday, 21 November, 2024
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राहुल बजाज का मानना था कि सभी कारोबारियों का भी सार्वजनिक जीवन होता है, उन्हें सरकार के साथ जुड़ना चाहिए

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए की पढ़ाई कर चुके राहुल बजाज को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें पद्म भूषण और छह विश्वविद्यालयों के मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी.

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एक दूरदर्शी व्यक्ति जिन्होंने कभी भी शब्दों की नकल नहीं की. साथ ही एक डाउन-टू-अर्थ रवैया रखने वाले- ‘हमारा बजाज’ के निर्माता राहुल बजाज को कुछ इस तरह याद किया जाता है.

राहुल बजाज, जिन्हें भारतीय दोपहिया और तिपहिया उद्योग को खड़ा करने का श्रेय दिया जाता है, कभी भी किसी रिकॉर्ड को लेकर किसी की प्रशंसा करने के लिए नहीं जाने जाते थे. बजाज हमेशा रिकॉर्ड से हटकर सच कहने के लिए जाने जाते थे. यह आज के अधिकांश व्यापारिक नेताओं द्वारा पालन की जाने वाली प्रथा है.

उनके स्पष्टवादी चरित्र का सबसे बड़ा प्रदर्शन 2019 में मुंबई में ईटी अवार्ड्स समारोह के दौरान देखा गया था. मंच पर मौजूद नरेंद्र मोदी सरकार के शीर्ष नेताओं- अमित शाह, पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण- को संबोधित करते हुए बजाज ने बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर की नाथूराम गोडसे पर टिप्पणी, मॉब लिंचिंग और लोगों में सरकार की आलोचना करने के डर को लेकर सवाल पूछे.

बजाज, जो संसद के पूर्व सदस्य भी रह चुके थे, ने जोर देकर कहा कि वह “एंटी एस्टेब्लिशमेंट” पैदा ही हुए थे. उन्होंने पुरस्कार समारोह के दौरान कहा था, “मुझे अपनी प्रतिष्ठा के लिए जीना है. मेरे लिए किसी की प्रशंसा करना बहुत मुश्किल है. मैं उस तरह पैदा नहीं हुआ था. मुझे गरीबों, वंचितों के लिए काम करना है.”

उन्होंने बताया कि उनके दादा जमनालाल बजाज एमके गांधी के दत्तक पुत्र की तरह थे. और चाहे मंच पर बैठे लोगों को यह पसंद आए न आए, उनका नाम ‘राहुल’ जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दिया था.

स्वतंत्रता संग्राम में अपने पुरखे और परिवार के योगदान पर गर्व करते हुए, अगस्त 2012 में सार्वजनिक जीवन में उत्कृष्टता के लिए श्री प्रवीणचंद्र गांधी पुरस्कार समारोह को दौरान भाषण देते हुए राहुल बजाज ने कहा कि उन्हें भी 1970 के दशक की शुरुआत में बजाज की लाइसेंस क्षमता से अधिक स्कूटर बनाने के लिए गिरफ्तारी की धमकी दी गई थी. उन्होंने कहा था, “मुझे एमआरटीपी आयोग को यह बताना याद है कि किसी का राष्ट्रीय कर्तव्य करने के लिए जेल जाना कुछ ऐसा नहीं था जो मेरे परिवार के लिए अपरिचित था.”

सिर्फ उनके दादा ही नहीं, बजाज के पिता कमलनयन बजाज भी गांधी के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे. कई वर्षों तक वे गांधी के सेवाग्राम आश्रम में रहे. राहुल बजाज की मां सावित्री भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए जेल गईं. बजाज उस वक्त महज चार साल के थे.


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आर्थिक सुधारों के हिमायती

राहुल बजाज की अध्यक्षता के दौरान, बजाज समूह की कंपनियां एक ऑटोमोबाइल की प्रमुख कंपनी से लेकर बीमा और कंज्यूमर फाइनेंस और घरेलू उपकरण बनाने वाली बड़ी कंपनी के रूप में विकसित हुईं. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए  डिग्रीधारी बजाज को कई पुरस्कार मिले थे. उन्हें पद्म भूषण और छह विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली थी. अपने सार्वजनिक जीवन में, बजाज ने इंडियन एयरलाइंस के अध्यक्ष और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स सहित कई जिम्मेदारियां संभाली.

बजाज भारतीय उद्योग के सबसे मुखर समर्थकों में से एक थे. जब उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने के खिलाफ पैरवी की, तो उन्हें ‘संरक्षणवादी’ होने के लिए बहुत आलोचना मिली. हालांकि, गीता पीरामल द्वारा लिखित अपनी जीवनी, राहुल बजाज: एन एक्स्ट्राऑर्डिनरी लाइफ में उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें गलत समझा गया था.

बजाज ने कहा था, “मेरी बातों को पूरी तरह से बदल दिया गया. मैं 1980 के दशक में उदारीकरण के लिए चिल्ला रहा था लेकिन फिर 1993 में मैं बदनाम हो गया. जब मैंने एक समान अवसर की मांग की, तो सभी ने सोचा कि मैं अपनी सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा हूं. हम बस इतना ही कह रहे थे कि सरकार हमें विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम बनाए. किसी ने मेरी बात नहीं सुनी, मीडिया ने भी नहीं.”

बजाज एक कुशल व्यवसायी थे और बजाज समूह की सफलता इस बात का प्रमाण है, लेकिन वे आर्थिक सुधारों और सामाजिक उत्तरदायित्व की वकालत करने वाले एक प्रमुख स्वर भी थे. यही बात उन्हें सबसे अलग बनाती है. भारत के आर्थिक विकास में उनका योगदान उनकी उद्यमशीलता की सफलता से परे है. अपने पूरे करियर के दौरान, उन्होंने निडर होकर देश के आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की, भले ही वे उतने लोकप्रिय नहीं थे.

2012 के एक कार्यक्रम में ‘सार्वजनिक जीवन में व्यवसायी’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, बजाज ने कहा, “वे चाहें या न चाहें, पसंद करें या न करें, व्यवसायी, विशेष रूप से बड़े व्यवसायी, किसी भी राष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में एक तरह से होते हैं. अनजाने में उनके फैसले बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करते हैं, चाहे वह उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, शेयरधारकों या अर्थव्यवस्था में बड़े योगदानकर्ताओं के रूप में हों. अर्थव्यवस्था पर उनके विचार और फैसले मायने रखते हैं. इसके अलावा, चूंकि उनके व्यवसाय सरकारी नीतियों से प्रभावित होते हैं, चाहे वे स्थूल या सूक्ष्म नीतियां हों, उन्हें विभिन्न स्तरों पर सरकार के साथ जुड़ने की आवश्यकता होती है.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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