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रविवार, 8 जून, 2025
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ओलंपिक पदक की तलाश में तीरंदाजी कोच पूर्णिमा को रहना पड़ा परिवार से दूर

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पेरिस, 23 जुलाई (भाषा) भारतीय तीरंदाजी कोच पूर्णिमा महतो को इस बात का मलाल है कि वह राष्ट्रीय टीम के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाने में इतनी मशगूल रही कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उनका बेटा सिद्धार्थ कब 17 साल और बेटी अर्चिशा 10 साल की हो गयी।

पूर्णिमा का कोई शिष्य अगर ओलंपिक में पदक जीत ले तो कोच के तौर पर उनका 30 साल का करियर सफल होगा और परिवार तथा बच्चों से दूर रहने की पीड़ा थोड़ी कम हो जायेगी।

द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित इस कोच ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘ हमारे पास ओलंपिक पदक के अलावा सब कुछ है। तीरंदाजी मेरे लिए जीवन बन गई है। मेरे बच्चे अपने आप बड़े हो गए और मुझे पता ही नहीं चला।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ इन सभी वर्षों में मुझे अपने बच्चों के साथ घर पर समय बिताने का मुश्किल से ही मौका मिला। मैंने अपने बेटे (सिद्धार्थ) को घर पर छोड़ दिया था जब वह एक साल का भी नहीं था। वह अब बड़ा हो गया है और 17 साल का है, अपनी 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहा है। मेरी बेटी (अर्चिशा) 10 साल की है। ऐसा लगता है कि उन्होंने इस ओलंपिक पदक के लिए मुझसे कहीं अधिक बलिदान दिया है।’’

पूर्णिमा इस साल एक सप्ताह भी अपने घर पर नहीं रुक सकी।

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल मैं ट्रायल और कैंप में व्यस्त रही हूं। मुझे केवल चार दिनों के लिए घर जाने का मौका मिला। अब तक यही कहानी रही है। हमें सभी पदक मिल गए हैं लेकिन ओलंपिक पदक पर अब भी काम चल रहा है।’’

पूर्णिमा ने दीपिका कुमारी, अंकिता भकत और भजन कौर की भारतीय तिकड़ी को पदक के लिए दबाव लेने की जगह प्रक्रिया पर ध्यान देने की सलाह दी।

उन्होंने कहा, ‘‘पदक लायेंगे यह बात तुम (भारतीय खिलाड़ी) दिमाग से निकाल दो और प्रक्रिया पर ध्यान दो।’’

राष्ट्रमंडल खेलों की इस स्वर्ण पदक विजेता ने कहा, ‘‘ भारतीय खिलाड़ी अब अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने और बड़े मैचों में घबराहट पर काबू पाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। यह (ओलंपिक पदक) अब बस समय की बात है।’’

पूर्णिमा 1990 के दशक के आखिर में खेल को अलविदा कहने के बाद से कोचिंग दे रही हैं।

भाषा आनन्द सुधीर

सुधीर

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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