नागपुर, 31 जुलाई (भाषा) ग्रैंडमास्टर दिव्या देशमुख ने कहा है कि हमवतन कोनेरू हम्पी के खिलाफ फिडे महिला विश्व कप फाइनल खेलते समय उन पर किसी भी तरह का दबाव नहीं था क्योंकि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं था।
दिव्या बुधवार को जॉर्जिया के बातुमी से यहां पहुंचीं और एक विश्व चैंपियन के तौर पर उनका भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे पर लोगों द्वारा दिखाए गए स्नेह से यह युवा खिलाड़ी अभिभूत थी।
उन्नीस साल की दिव्या ने दो बार की विश्व रैपिड चैंपियन 38 वर्षीय हम्पी को दो क्लासिकल दौर के ड्रॉ रहने के बाद समय-नियंत्रित टाई-ब्रेक में हराया। यह दिव्या के करियर की सबसे बड़ी सफलता रही।
दिव्या से जब पूछा गया कि क्या वह फाइनल में दबाव में थीं तो उन्होंने ‘पीटीआई वीडियोज’ से कहा, ‘‘मुझे नहीं लगा कि मैं मुश्किल में थी। मुझे लगता है कि उन्होंने (हम्पी) जो आखिरी गलती की, उसी ने मुझे जीत दिलाई। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं सिर्फ अपने प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश कर रही थी। मैं किसी और चीज के बारे में नहीं सोच रही थी। ’’
दिव्या ने इस प्रतियोगिता में एक छुपीरूस्तम के तौर पर प्रवेश किया था और उनका लक्ष्य ग्रैंडमास्टर नॉर्म जीतने का था और आखिरकार वह ग्रैंडमास्टर बन गईं।
दिव्या ने सिर्फ ग्रैंडमास्टर नॉर्म ही नहीं हासिल किया बल्कि टूर्नामेंट भी जीत लिया और अगले साल के कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में भी जगह पक्की की। साथ ही 50,000 अमेरिकी डॉलर की पुरस्कार राशि भी हासिल की।
इस खिलाड़ी को उम्मीद है कि उनकी सफलता के बाद भारत में महिला शतरंज काफी लोकप्रिय होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि इस सफलता के बाद महिलाएं विशेषकर युवा खिलाड़ी इस खेल को बड़े पैमाने पर अपनाएंगी और सपना देखना शुरू करेंगी कि कुछ भी असंभव नहीं है। ’’
दिव्या ने कहा, ‘‘मेरे पास युवा पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि उनके माता-पिता के लिए संदेश है कि उन्हें अपने बच्चों का पूरे दिल से समर्थन करना चाहिए क्योंकि उन्हें सफलता के समय उतनी नहीं, अपनी असफलताओं के दौरान उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। ’’
बुधवार रात हवाई अड्डे पर पहुंचने पर दिव्या ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे माता-पिता ने मेरे करियर में सबसे अहम भूमिका निभाई है। उनके बिना मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती। इस जीत का श्रेय मेरे परिवार, मेरे माता-पिता, मेरी बहन और मेरे पहले कोच राहुल जोशी सर को जाता है क्योंकि वह हमेशा चाहते थे कि मैं ग्रैंडमास्टर बनूं और यह उनके लिए है। ’’
जोशी का 2020 में सिर्फ 40 साल की उम्र में निधन हो गया था।
भाषा नमिता सुधीर
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